केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोनावायरस महामारी के प्रसार को कम करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भारत की प्रमुख नदियों के पानी की गुणवत्ता में खास सुधार नहीं हुआ।
16 सितंबर, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी गई सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च से अप्रैल के बीच देश की 19 प्रमुख नदियों के पानी की गुणवत्ता पर नजर रखी गई और इसकी तुलना की गई। एनजीटी ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसा करने को निर्देश दिया था ताकि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों, एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट और सेंट्रल एफ्लुएंट प्लांट के लिए कार्यान्वयन योजनाएं सुनिश्चित की जा सकें।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समितियों ने ब्यास, ब्रह्मपुत्र, बैतमी व ब्राह्मणी, कावेरी, चंबल, गंगा, घग्गर, गोदावरी, कृष्णा, महानदी, माही, नर्मदा, पेनर, साबरमती, सतलुज, स्वर्णरेखा, तापी और यमुना के पानी की गुणवत्ता का आकलन किया।
रिपोर्ट के अनुसार, मार्च में नदियों के पानी के कम से कम 387 और अप्रैल में 365 नमूने एकत्र किए गए। मार्च के दौरान 387 (77.26 प्रतिशत) निगरानी स्थानों में से कम से कम 299 में आउटडोर स्नान के लिए सूचीबद्ध मापदंडों का पालन किया। वहीं अप्रैल में 365 (75.89 प्रतिशत) स्थानों में से 277 में मापदंडों का अनुपालन किया गया था।
रिपोर्ट के अनुसार, उद्योग बंद होने, बाहरी स्नान और कपड़ा धोने जैसी गतिविधियों में कमी के कारण ब्राह्मणी, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, तापी और यमुना नदी में पानी की गुणवत्ता में सुधार देखा गया। दूसरी ओर ब्यास, चंबल, सतलुज, गंगा और स्वर्णरेखा में सीवेज का बहाव अधिक होने और पानी की मात्रा कम के कारण गुणवत्ता खराब हो गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन का असर दिल्ली से बहने वाली यमुना के 22 किलोमीटर के हिस्से पर ज्यादा साफ झलक रहा था। हालांकि पानी की गुणवत्ता में हुआ सुधार शहर में बेमौसम बारिश का नतीजा हो सकता है। नदी के पानी की गुणवत्ता का आकलन पीएच, घुलित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और फीकल कॉलीफॉर्म (एफसी) के मापदंडों के आधार पर किया गया। इसके परिणामों की तुलना पर्यावरण (संरक्षण) नियमों, 1986 के तहत अधिसूचित आउटडोर स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंडों से की गई थी।