संसद में आज: आदिवासियों के विस्थापन के बारे में मंत्रालय के पास कोई जानकारी नहीं

पेट्रोलियम और प्राकृतिक मंत्रालय में राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने राज्यसभा में बताया कि सरकार ईंधन के रूप में हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है
संसद में आज: आदिवासियों के विस्थापन के बारे में मंत्रालय के पास कोई जानकारी नहीं
Published on

जनजातीय मामलों के मंत्री ने आज लोकसभा में बताया कि कोयला मंत्रालय (एमओसी) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कोयला खनन के लिए दिए गए व्यावसायिक लाइसेंस के परिणामस्वरूप विस्थापन के खतरे का सामना कर रहे परिवारों की संख्या के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

कोयला मंत्रालय (एमओसी) ने आगे सूचित किया है कि 2015 से अब तक कुल 29 कोयला खदानों को कोयला मंत्रालय द्वारा छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में कोयले के व्यवसायिक बिक्री के लिए आवंटित किया गया है। मंत्री ने कहा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

पेयजल की कमी

किसी भी राज्य सरकार ने किसी भी शहर में पेयजल की अत्यधिक कमी के बारे में जल शक्ति मंत्रालय को कोई रिपोर्ट नहीं भेजी है। हालांकि, मंत्रालय ने 255 जिलों में 1,597 ब्लॉकों को पानी की कमी वाले जगहों  के रूप में चिह्नित किया है। उपलब्ध जानकारी के आधार पर 756 शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को पानी की कमी वाले जगहों के रूप में पहचान की गई है, जिनमें से 84 यूएलबी उत्तर प्रदेश में हैं। यह जानकारी जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्यसभा में दी।

मानवजनित सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में बताया कि कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट मानवजनित सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) के प्रमुख स्रोत हैं, जो वायु प्रदूषण की बढ़ोतरी के लिए जिम्मेवार हैं।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना दिनांक 07 दिसंबर 2015 के आधार पर अन्य प्रदूषकों के अलावा ताप विद्युत संयंत्रों से एसओ2 के उत्सर्जन के लिए मानदंड निर्धारित किए हैं। चौबे ने कहा कि इस अधिसूचना से पहले कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों के लिए कोई एसओ2 उत्सर्जन मानदंड नहीं था और चिमनी की ऊंचाई तय करके गैस निकलने / उत्सर्जन की ऊंचाई निर्धारित करके नियंत्रित किया जाता था।

दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण

दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत जो प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों के कारण सर्दियों के दौरान बढ़ जाता है, उनमें औद्योगिक प्रदूषण, वाहनों का प्रदूषण, निर्माण और विध्वंस गतिविधियों से धूल, सड़क और खुले क्षेत्रों की धूल, बायोमास का जलाना, पराली जलाना, नगरपालिका का ठोस कचरा जलाना, सैनिटरी लैंडफिल आदि में आग लगना शामिल हैं। यह आज केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में कहा में बताया।

सरकार एनसीआर के राज्यों जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और एनसीटीडी के साथ-साथ पंजाब आदि राज्य की सरकारों सहित संबंधित विभिन्न हितधारकों के साथ लगातार मामले को देख रहे हैं।

वर्ष 2018 में टेरि-एआरएआई  द्वारा दिल्ली-एनसीआर के लिए प्रदूषण स्रोत के बारे में जानने के लिए अध्ययन किया गया, जिससे पता चलता है कि सर्दियों के महीनों के दौरान, उद्योग से क्रमशः 27 फीसदी और 30 फीसदी पीएम 10 और पीएम 2.5, धूल (मिट्टी, सड़क और कास्ट) में योगदान करते हैं। चौबे ने कहा कि पीएम10 और पीएम2.5 में क्रमश: 25 फीसदी और 17 फीसदी का योगदान है और पीएम10 और पीएम 2.5 में गाड़ीयो का योगदान क्रमशः 24 फीसदी  और 28 फीसदी है।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 15 नवंबर 2021 द्वारा विशेष रूप से निर्माण गतिविधियों, उद्योगों, परिवहन, थर्मल पावर प्लांट आदि के कारण एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने और केंद्र सरकार द्वारा 'वर्क फ्रॉम होम' पर विचार करने के निर्देश दिया। चौबे ने कहा कि राज्य सरकारों/जीएनसीटीडी को एनसीआर में मामले की समय-समय पर सुनवाई के माध्यम से की गई कार्रवाई की स्थिति की समीक्षा की जा रही है।

विभिन्न बिजली कंपनियों में ई-कचरे का निपटान

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में बताया कि देश भर में विभिन्न बिजली कंपनियों में निपटाए जाने वाले जहरीले ई-कचरे की मात्रा के बारे में मंत्रालय के पास जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि यह जानकारी उपयोगकर्ता के अनुसार एकत्र नहीं की जाती है।

फिर भी, बिजली उत्पादन इकाइयों में इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उपकरण लगाए जाते हैं जो अंततः खराब हो जाते हैं और ई-कचरे में बदल जाते हैं। चौबे कहा ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, सभी बिजली फर्म इलेक्ट्रॉनिक और बिजली के उपकरणों के थोक उपभोक्ता होने के कारण ई-कचरे को केवल अधिकृत रिसाइकिलर्स/डिसमेंटलर को सौंपकर निर्धारित तरीके से निपटाने के लिए बाध्य हैं।

विभिन्न बिजली कंपनियों में ई-कचरे का निपटान

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में बताया कि देश भर में विभिन्न बिजली कंपनियों में निपटाए जाने वाले जहरीले ई-कचरे की मात्रा के बारे में मंत्रालय के पास जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि यह जानकारी उपयोगकर्ता के अनुसार एकत्र नहीं की जाती है।

फिर भी, बिजली उत्पादन इकाइयों में इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उपकरण लगाए जाते हैं जो अंततः खराब हो जाते हैं और ई-कचरे में बदल जाते हैं। चौबे कहा ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, सभी बिजली फर्म इलेक्ट्रॉनिक और बिजली के उपकरणों के थोक उपभोक्ता होने के कारण ई-कचरे को केवल अधिकृत रिसाइकिलर्स/डिसमेंटलर को सौंपकर निर्धारित तरीके से निपटाने के लिए बाध्य हैं।

कार्बन उत्सर्जन

संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) को प्रस्तुत दूसरी और तीसरी द्विवार्षिक रिपोर्ट (बीयूआर) के अनुसार, 2014 में भारत के ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन, जिसमें भूमि उपयोग, भूमि-उपयोग परिवर्तन और वानिकी (एलयूएलयूसीएफ) शामिल हैं, 2306.3 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर था, 2016 में 2531.07 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर था, यह आज केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में बताया।

 चौबे ने कहा हालांकि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता में 2005 और 2016 के बीच 24 प्रतिशत की कमी आई है।

पेट्रोल के स्थान पर ग्रीन हाइड्रोजन का प्रयोग

पेट्रोलियम और प्राकृतिक मंत्रालय में राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने राज्यसभा में बताया कि सरकार ईंधन के रूप में हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है लेकिन इसकी लोकप्रियता अभी भी कीमतों में कमी और प्रौद्योगिकी के विभिन्न विकास पर निर्भर करती है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) द्वारा 50 बीएस-IV अनुपालन वाणिज्यिक सीएनजी बसों के बेड़े में सीएनजी (एच-सीएनजी) ईंधन के साथ हाइड्रोजन का परीक्षण किया गया था। तेल और गैस पीएसयू द्वारा ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करके ईंधन सेल आधारित गतिशीलता के लिए ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करने के हेतु कुछ आर एंड डी परियोजनाएं शुरू की गई हैं।

गंगा नदी की सफाई

भारत सरकार गंगा नदी कायाकल्प कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के लिए धन राशि जारी की है। तत्पश्चात, उक्त कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए एनएमसीजी द्वारा निधियां जारी की गई हैं। एनएमसीजी द्वारा राज्य सरकारों/कार्यकारी अधिकारियों को जारी की गई राशि

पिछले पांच वित्तीय वर्षों (यानी वित्त वर्ष 2016-17, 2017-18, 2018-19, 2019-20 और 2020-21) के दौरान और चालू वित्तीय वर्ष में 31 अक्टूबर 2021 तक 9,933.43 करोड़ रुपये आवंटित किए गए यह आज राज्य जल शक्ति मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने राज्यसभा में बताया।

2021 (जनवरी से मई) के लिए सीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, गंगा नदी की पानी की गुणवत्ता यह दर्शाती है कि घुलित ऑक्सीजन जो नदी के स्वास्थ्य का एक संकेतक है, अधिसूचित प्राथमिक स्नान जल गुणवत्ता मानदंड की स्वीकार्य सीमा के भीतर पाया गया है। टुडू ने कहा कि सभी मौसमों में नदी का पारिस्थितिकी तंत्र और गंगा नदी के लगभग पूरे हिस्से में संतोषजनक पाई गई।

बढ़ता भूजल प्रदूषण

केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) भूजल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम और विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के हिस्से के रूप में क्षेत्रीय स्तर पर देश के भूजल गुणवत्ता के आंकड़े तैयार करता  है। जल शक्ति राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने राज्यसभा में बताया कि ये अध्ययन विभिन्न राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में अनुमेय सीमा से अधिक फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट, लौह और भारी धातु जैसे दूषित पदार्थों के बारे में जानकारी प्रदान करती है।

भूजल संदूषण ज्यादातर प्रकृति में भूगर्भीय है और पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं दिखा है। टुडू ने कहा हालांकि, नाइट्रेट संदूषण ज्यादातर होता है

मानवजनित और इसके प्रसार को कुछ क्षेत्रों, विशेषकर बस्तियों से सटे क्षेत्रों में देखा गया है। इसके अलावा, नाइट्रेट संदूषण उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण भी हो सकता है।

यमुना में बढ़ते प्रदूषण जल को नियंत्रित करना

दिल्ली में 3270 एमएलडी का अनुमानित सीवेज प्रवाह उत्पन्न हो रहा है, जिसके विरुद्ध दिल्ली सरकार 2340 एमएलडी सीवेज को 89 फ़सदी के औसत उपयोग के साथ 2624 एमएलडी के कुल क्षमता वाले 34 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) में उपचारित किया जा रहा है। साथ ही दिल्ली 61.9 एमएलडी का उपचार भी कर रही है। औद्योगिक अपशिष्ट 212.3 एमएलडी क्षमता के 13 कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) स्थापित किए जा रहे हैं, यह आज जल शक्ति राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने राज्यसभा में बताया।

वर्तमान में, भारत सरकार/राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत 4290 करोड़ की 23 परियोजनाओं को मंजूरी दी है। यमुना नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत हिमाचल प्रदेश में एक परियोजना, हरियाणा में दो परियोजनाओं, दिल्ली में बारह परियोजनाओं और उत्तर प्रदेश में आठ परियोजनाओं को लागु किया है। इन परियोजनाओं से 534 एमएलडी एसटीपी के उपचार के साथ ही 1840 एमएलडी एसटीपी क्षमता का निर्माण होगा। टुडू ने कहा कि इन 23 परियोजनाओं में से कुल पांच परियोजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं।

कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना

कोयला भारत में सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है जोकि देश की ऊर्जा आवश्यकता का 55 फीसदी हिस्सा को पूरा करता है। पिछले चार दशकों में भारत में व्यावसायिक प्राथमिक ऊर्जा खपत में लगभग 700 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत में वर्तमान प्रति व्यक्ति व्यावसायिक प्राथमिक ऊर्जा खपत लगभग 350 किग्रा/वर्ष है। कोयला देश में न केवल ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है, बल्कि कई उद्योगों जैसे स्टील, स्पंज आयरन, सीमेंट, कागज, ईंट-भट्ठों आदि द्वारा भी एक मध्यस्थ के रूप में उपयोग किया जाता है। इसी तरह, कोयले का उपयोग करने वाले उद्योगों के विकास में वृद्धि के साथ, कोयले की मांग भी बढ़ रही है। संसदीय मामलों के मंत्री, कोयला और खान मंत्री प्रह्लाद  जोशी ने राज्यसभा में बताया कि पिछले कुछ वर्षों में कोयले की मांग में समग्र वृद्धि हुई है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in