एनजीटी ने झारखंड की बालू खनन नीति की वैधता पर उठाया सवाल

ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय से पूछा है कि क्या रेत खनन को लेकर झारखंड द्वारा बनाई नीति, मंत्रालय द्वारा 2016 और 2020 में रेत खनन को लेकर जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप है
एनजीटी ने झारखंड की बालू खनन नीति की वैधता पर उठाया सवाल
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 22 अप्रैल 2024 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से झारखंड राज्य रेत खनन नीति, 2017 की वैधता के संबंध में विस्तृत प्रतिक्रिया देने को कहा है।

ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय से पूछा है कि क्या रेत खनन को लेकर झारखंड द्वारा बनाई नीति मंत्रालय द्वारा 2016 और 2020 में रेत खनन को लेकर जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप है। मामला झारखंड के बोकारो में हो रहे अवैध बालू खनन से जुड़ा है।

इस मामले में बोकारो के उपायुक्त ने एक हलफनामा प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि झारखंड में रेत खनन सम्बन्धी गतिविधियां झारखंड राज्य रेत खनन नीति, 2017 द्वारा विनियमित हैं। वहां घाटों को दो श्रेणियों:  श्रेणी -1 और श्रेणी -2 में विभाजित किया गया है।

इनमें से श्रेणी-1 के रेत घाट घरेलू और सामुदायिक उद्देश्यों जैसे गैर-व्यावसायिक उपयोग के साथ-साथ सरकारी योजनाओं के लिए आरक्षित हैं। वहीं श्रेणी-2 घाटों का प्रबंधन झारखंड राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड (जेएसएमडीसी) द्वारा किया जाना है और इनका उपयोग वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

मानव अपशिष्ट के अनुचित निपटान और उससे होने वाले नुकसान के लिए सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को भरना होगा मुआवजा

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को पर्यावरण संबंधी नियमों के साथ-साथ नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2016 के उल्लंघन के लिए जिम्मेवार पाया है। कोर्ट के अनुसार वो इसके लिए पर्यावरणीय मुआवजे के भुगतान के लिए उत्तरदायी है।

गौरतलब है कि सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को बारासात में एक मेडिकल कॉलेज के निर्माण के दौरान मानव अपशिष्ट के अनुचित निपटान के लिए जिम्मेदार पाया है। ट्रिब्यूनल द्वारा नियुक्त समिति ने इस मामले में अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में जानकारी दी है कि सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर ने मजदूरों के लिए परियोजना स्थल के विभिन्न स्थानों पर अस्थाई शौचालय स्थापित किए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक चारदीवारी के पास साथ से आठ अस्थाई शौचालय बनाए गए हैं। ये शौचालय किसी सेप्टिक टैंक से नहीं जुड़े हैं। इसके बजाय, वे जमीन में खोदे गए भंडारण गड्ढों से जुड़े हैं।

एनजीटी का कहना है कि रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि निरीक्षण के दौरान कुओं में मानव मल पाया गया और उन्हें ठीक से नहीं ढंका गया था। इसकी वजह से आसपास दुर्गन्ध आ रही थी।

समिति ने सिफारिश की है कि मानव मल के किसी भी अतिप्रवाह को रोकने के लिए कुओं को तुरंत साफ किया जाए और शौचालयों को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए ताकि संबंधित क्षेत्र को दोबारा बहाल किया जा सके। रिपोर्ट में हर कीमत पर मानव अपशिष्ट के अनुचित निपटान से बचने की सलाह दी गई है और कहा है कि इसके लिए किसी भी अवैज्ञानिक तरीकों को नहीं अपनाया जाना चाहिए।

ऐसे में एनजीटी ने पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण संबंधी नियमों और 2016 के नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम के उल्लंघन के लिए पर्यावरणीय मुआवजे की गणना करने का निर्देश दिया है। इस मुआवजे को सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर से वसूले जाने की बात भी ट्रिब्यूनल ने कही है। साथ ही अदालत ने मुआवजे की वसूली से पहले सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को जवाब देने के लिए दो महीनों का समय दिया है।

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