दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को कोंडली में एसटीपी लगाने संबंधी रिपोर्ट सौंपी। डीजेबी ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) या प्लांट के प्रस्तावित स्थानों में दो जैविक दुर्गंध नियंत्रण इकाइयों (ओसीयू) की आपूर्ति, स्थापना, परीक्षण और चालू करने (एसआईटीसी) में 5 महीनों का समय लगेगा। इस कार्य में मौजूदा संयंत्र की ऑनलाइन निगरानी प्रणाली और सभी संबद्ध कार्यों के साथ कनेक्शन पूरा करना शामिल है। एनजीटी के समक्ष यह मुद्दा कोंडली में एसटीपी से आ रही दुर्गंध के खिलाफ उठाए गए उपचारात्मक कदमों के बारे में था।
एनजीटी ने 27 सितंबर, 2019 के अपने आदेश में दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के मद्देनजर उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। डीपीसीसी की रिपोर्ट ने अदालत को सूचित किया था कि प्रतिदिन 25 मिलियन गैलन (एमजीडी) एसटीपी और 45 एमजीडी एसटीपी निर्धारित मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं। डीजेबी को प्रभावी दुर्गंध नियंत्रण तंत्र लगाने और कोंडली में एसटीपी के उचित संचालन, रखरखाव और कमियों को सुधारने का निर्देश दिया गया था।
डीजेबी द्वारा 15 जनवरी 2020 को एक प्रगति रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें उठाए गए कदमों का उल्लेख किया गया था। डीजेबी की रिपोर्ट के जवाब में 26 अगस्त को एनजीटी ने डीजेबी को निर्देश दिया कि वह आवश्यक काम को तेजी से पूरा करे और 5 जनवरी, 2021 से पहले एक कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
सचिव ने जल संरक्षण और जल उपयोग में सुधार के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कार्रवाई रिपोर्ट सौंपने को कहा
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प विभाग के सचिव ने जल संरक्षण और जल उपयोग में सुधार के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से रिपोर्ट और कार्रवाई की योजना सौंपने को कहा है।
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा एनजीटी के समक्ष जल संसाधनों को लेकर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों, सांविधिक निकाय और जिला प्रशासन को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 और जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत आवश्यक उपायों को करने के लिए सशक्त किया है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भूजल की बर्बादी या दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिए सार्वजनिक सूचना का मसौदा तैयार किया गया है जिसमें पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत निर्देश दिए गए थे। यदि एनजीटी ने इसे मंजूरी दे दी है, तो सार्वजनिक सूचना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत जारी की जा सकती है।
यह रिपोर्ट 15 अक्टूबर, 2019 के एनजीटी के आदेश के अनुपालन में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा सोंपी गई थी, जिसमें आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों में छतों में लगे (ओवरहेड) टैंक से बह निकलने (ओवरफ्लो) के कारण भूजल की बर्बादी और दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।
वलसाड में केमिकल फैक्ट्री में लगी आग, बिना सूचना दिए निर्माण गतिविधियों को फिर से किया था शुरू
गुजरात के वलसाड जिले के जीआईडीसी, वापी में स्थित केमिकल फैक्ट्री- शक्ति बायो साइंस लिमिटेड ने 2013 में अपनी गतिविधियों को बंद कर दिया था। कुछ सालों बाद वर्ष 2020 में फैक्ट्री ने अपनी निर्माण गतिविधियों को फिर से शुरू कर दिया। हालांकि गतिविधि को दोबारा संचालित करने से पहले इसके बारे में औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य को सूचित नहीं किया, जो करना चाहिए था।
8 अगस्त, 2020 को वलसाड में केमिकल फैक्ट्री में भीषण आग लगने पर एनजीटी के समक्ष निदेशक, औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, अहमदाबाद द्वारा प्रस्तुत तीन-पेज की रिपोर्ट में यह कहा गया।
जानकारी के अनुसार, शक्ति बायो साइंस लिमिटेड ने 2013 में अपनी निर्माण गतिविधि को रोक दिया था। बंद करते समय, उन्होंने मेटा फेनोक्सी बेंजाल्डिहाइड (एमपीबीडी) उत्पादों के निर्माण के 5वें चरण को पूरा कर लिया था और इसे 200 लीटर के लगभग 150 उच्च घनत्व वाले पॉलीथीन (एचडीपीई) ड्रम में संग्रहीत किया गया था।
8 अगस्त को इकाई ने 4 रिएक्टरों के साथ एमपीबीडी को फिर से प्राप्त करने के लिए ऑपरेशन शुरू किया। निर्माण प्रक्रिया के दौरान लगभग 11:30 बजे, थर्मोकोल प्लास्टिक / रबर / पेपर कचरे में आग देखी गई जो कुछ देर बाद फार्मा डिवीजन के पूरे भवन में फैल गई।
घटना का संभावित कारण, फार्मा प्लांट में इलेक्ट्रिक पैनल या केबल में शॉर्ट सर्किट होना प्रतीत होता है। इसके बाद बरामद सॉल्वैंट्स के लिए इस्तेमाल होने वाले कॉमन स्टोरेज एरिया में आग लग जाती है। आग सामग्रियों से लेकर एपीआई प्लांट तक पहुंच जाती है। अब एफएसएल, विद्युत निरीक्षक और अन्य संबंधित एजेंसियों की रिपोर्ट के बाद आग लगने के वास्तविक कारण के बारे में पता लगेगा।
विभिन्न सुरक्षा प्रावधानों के अनुपालन हेतु निर्माण गतिविधियों को रोकने के लिए 10 अगस्त को कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 40 (2) के तहत निषेधात्मक आदेश जारी किया गया था।
शक्ति बायो साइंस लिमिटेड ने एनजीटी से जीपीसीबी द्वारा जारी किए गए क्लोजर नोटिस को रद्द करने की अपील की
मेसर्स शक्ति बायो साइंस लिमिटेड ने एनजीटी से अपील की है कि वापी, वलसाड में अपने रासायनिक कारखाने में आग लगने के लिए गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) द्वारा जारी किए गए क्लोजर नोटिस को रद्द कर दिया जाए क्योंकि इकाई द्वारा सभी निर्देशों का पालन किया गया था।
इसके अलावा, कारखाना मजदूर और कर्मचारियों दोनों को मिलाकर 75 लोगों के साथ काम कर रहा था और उसे फिर से शुरू करना समुदाय और कर्मचारियों के हित में है। यह संयंत्र फार्मास्युटिकल और विशेष केमिकल का निर्माण करता था। फैक्ट्री ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कंपनी के पास प्लांट को चलाने के लिए सभी अनुमतियां और प्रमाणपत्र हैं।
संयंत्र में आग की घटना शॉर्ट-सर्किट के कारण हुई और संयंत्र के कामकाज में प्रक्रिया के मानकों को बनाए रखने में कंपनी की ओर से कोई लापरवाही या चूक नहीं हुई। 8 अगस्त, 2020 को आग लगने की घटना को कंपनी के कर्मचारियों और दमकल विभाग की मदद से 2/3 घंटे के भीतर तुरंत बुझा दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, तत्काल कार्रवाई के कारण, पड़ोसी, पौधों / पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ। कंपनी द्वारा पहले ही जीपीसीबी द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि 25,00,000 / - (पच्चीस लाख रुपए) जमा कर दिए गए हैं।