नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने वर्ष 2019 में 7 अप्रैल 2019 तक 2018 में लगाए गए जुर्माने से लगभग दोगुना जुर्माना लगा चुका है। जिसमें प्रमुख कार निर्माता फॉक्सवैगन पर लगाया गया 500 करोड़ रुपये का जुर्माना भी शामिल है। यहां तक कि एनजीटी ने सरकारों को भी नहीं बख्शा है, और उन पर भी कड़ा जुर्माना लगाया है।
इस वर्ष में 1 जनवरी से 7 अप्रैल के बीच एनजीटी ने 'पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल' (ऐसा सिद्धांत, जिसमें प्रदूषण फैलाने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है) के तहत करीब 873 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है। जबकि वर्ष 2018 में केवल 477 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया था (जिसमें कर्नाटक सरकार पर लगाया गया 500 करोड़ रुपये का जुर्माना शामिल नहीं है, जिसे निलंबित रखा गया है)।
बहुराष्ट्रीय कार निर्माता कंपनी फॉक्सवैगन की भारतीय इकाई, आंध्र प्रदेश, मेघालय और तमिलनाडु पर 2019 में सबसे अधिक जुर्माना लगाया गया है। गौरतलब है कि फॉक्सवैगन पर एक ऐसे चीट डिवाइस लगाने के लिए 500 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया था, जिसकी सहायता से वह कारों से होने वाले प्रदूषकों के उत्सर्जन को अनुमेय सीमा के अंदर दिखा रहा था।
जबकि रेत और कोयले के अवैध खनन को रोकने में असफल रहने पर एनजीटी ने आंध्र प्रदेश और मेघालय सरकार पर 100-100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। इसके साथ ही प्रदूषण को रोकने में विफल रहने और चेन्नई के जलमार्गों को नहीं सुधारने के लिए तमिलनाडु सरकार पर 100 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।
यदि हम 2018 की बात करें तो, इस वर्ष पुणे स्थित गोयल गंगा डेवलपर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (जो की एक निर्माण कंपनी है), फॉक्सवैगन और कर्नाटक सरकार पर सबसे अधिक जुर्माना लगाया गया था। 16 नवंबर, 2018 को, एनजीटी ने फॉक्सवैगन को डीजल कारों में चीट डिवाइस का उपयोग करने का आरोपी पाया था (जो कि मार्च 2019 में साबित हुआ था) । जिसके आधार पर फॉक्सवैगन को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास 100 करोड़ रुपए की अंतरिम राशि जमा करने का आदेश दिया था।
अगस्त 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने पुणे रियल एस्टेट फर्म को सिंहगढ़ रोड पर गंगा भाग्योदय, अमृत गंगा और गंगा टावर्स नामक परियोजनाओं के निर्माण में पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के लिए 105 करोड़ रुपए का जुर्माना जमा कराने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने एनजीटी के उस आदेश को पलटते हुए यह आदेश दिया, जिसमें एनजीटी ने निर्माण कंपनी को 195 करोड़ रुपए भुगतान करने के लिए कहा था।
दिसंबर 2018 में, कर्नाटक सरकार और बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) को सीपीसीबी के पास अंतरिम मुआवजे के रूप में 75 करोड़ रुपए जमा करने के लिए कहा गया, क्योंकि वे बेंगलुरु की प्रदूषित झीलों - बेलंदूर, अगारा और वरथुर का पुनरुद्धार करने में असफल रहे थे। इसके साथ ही उन्हें झीलों को साफ करने के लिए 500 करोड़ रुपए की एस्क्रो राशि जमा करने के लिए भी कहा गया था ।
2018 के बाद से, एनजीटी ने पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल के तहत लगभग 50 आदेश दिए हैं। उनमें से 21 मामलों (या ये कहें की 42 प्रतिशत मामलों) में 1 लाख रुपये से 3 करोड़ रुपये की सीमा के बीच जुर्माना लगाया गया था। इनमें अधिकांशतः आवास और निर्माण सम्बन्धी परियोजनाएं शामिल हैं। उदाहरण के लिए, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आइजीएमसी) डॉक्टर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड को निर्माण के लिए अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी (एनवायरनमेंट क्लीयरेंस) नहीं लेने पर 3.2 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया था।
वहीं 50 आदेशों में से 15 आदेशों (या ये कहें 30 प्रतिशत आदेशों) में दंड की राशि 5 करोड़ से 75 करोड़ के बीच थी। इस सीमा में चार राज्यों - कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली - को औद्योगिक और जल प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जुर्माना अदा करने के लिए कहा गया।
कॉरपोरेट्स पर लगा कम जुर्माना
जहां 2019 में राज्य सरकारों को सबसे अधिक दंडित किया गया, वहीं कॉरपोरेट्स पर मामूली राशि का जुर्माना लगाया गया। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड को फ्यूल स्टेशनों में प्रदूषण रोधी प्रणाली के तहत वेपर रिकवरी यंत्र स्थापित करने में विफल रहने के लिए 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया। इसी तरह, उडुपी पावर कॉरपोरेशन जो की अडानी समूह के स्वामित्व वाली 1,200 मेगावाट की कोयला आधारित बिजली संयंत्र परियोजना है, को सीपीसीबी को 5 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया।
दिल्ली स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, जुर्माने की यह राशि इस तरह के प्लांट्स के मुनाफे के सामने कुछ भी नहीं है, और शायद ही किसी प्लांट के मालिक को इतना जुर्माना चुकाने में कोई गुरेज हो। इस खेल के बड़े-बड़े खिलाड़ियों के लिए इस जुर्माने को चुकाना तो मामूली सी बात है।
इसके बावजूद सच यही है कि न तो कॉरपोरेट्स और न ही राज्य सरकारें इस जुर्माने का भुगतान करने के मूड में हैं। जहां फॉक्सवैगन अमेरिकी उपभोक्ताओं और नियामकों के साथ उत्सर्जन सम्बन्धी धोखाधड़ी के दावों का निपटान करने के लिए 14.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (1 लाख करोड़ रुपये से अधिक) का भुगतान करने के लिए सहमत हो चुकी है, वहीं वह भारत में जुर्माने का भुगतान करने में हिचकिचा रही है। जर्मन की इस कंपनी ने अब एनजीटी के सबसे हालिया आदेश को सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनौती देने का फैसला किया है। इसी तरह, कर्नाटक सरकार ने भी झीलों पर एनजीटी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
सीएसई द्वारा पिछले वर्ष किये गए विश्लेषण से पता चला है कि एनजीटी द्वारा लगाए गए जुर्माने, जो कि पर्यावरण राहत कोष में जमा किए जाने हैं, का भुगतान नहीं किया जा रहा है। जिसके लिए एनजीटी के आदेशों का जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन और उसकी निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत तंत्र का अभाव है, जिसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है।