नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने नॉर्दर्न कोलफील्ड्स को 10 करोड़ रुपए का मुआवजा भरने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने नॉर्दर्न कोलफील्ड्स पर यह जुर्माना अपनी जमीन पर भारी मात्रा में किए जा रहे कोयले की डंपिंग के लिए लगाया है। कोयला डम्पिंग की यह साइट उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में कृष्णाशिला रेलवे साइडिंग के पास है।
पता चला है कि वहां करीब तीन लाख टन कोयला डंप किया गया था, जिसमें से करीब 50 फीसदी उठा लिया गया है, जबकि बाकी अभी भी पड़ा है। कोर्ट ने 2 मई, 2023 को अपने आदेश में कहा है कि अगर कोयले की कीमत 10,000 रुपए प्रति टन के हिसाब से जोड़ी जाए तो इसकी कुल कीमत करीब 30,000 करोड़ रुपए बैठती है।
कोर्ट के मुताबिक कोयले के ऐसे अवैज्ञानिक तरीके से भंडारण करने से न केवल वायु प्रदूषित होती है साथ ही भूजल और सतह पर मौजूद जल भी दूषित होता है। इतना ही नहीं यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है।
देखा जाए तो बहाली की लागत, लेन-देन और टर्नओवर को ध्यान में रखते हुए, एनजीटी ने यह मुआवजा तय किया है। कोर्ट के मुताबिक एनसीएल मुआवजे के इन 10 करोड़ रुपयों को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करा सकता है। साथ ही उसे पर्यावरण की बहाली के लिए कार्य योजना तैयार करनी है। इस कार्रवाई में कोयले का उचित भण्डारण और रखरखाव, धूल को नियंत्रित करने के उपाय और निर्धारित समय में इसका उपचार किया जाना है।
कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सोनभद्र के जिलाधिकारी और वन विभाग की एक संयुक्त समिति को दो महीनों के भीतर इसकी योजना तैयार करने के लिए कहा है।
साइट पर अभी भी मौजूद है 1.29 लाख मीट्रिक टन कोयला
कोर्ट ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए समिति को कोयले के स्टॉकिंग और हैंडलिंग सुनिश्चित करने के लिए करने के लिए कहा है जिससे वायु सूचकांक को नीचे लाया जा सके। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि बहाली के लिए और पैसे की जरूरत होती है तो उसके भुगतान के लिए एनसीएल जिम्मेवार होगा।
गौरतलब है कि इस बारे में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 25 मार्च, 2023 को सबमिट अपनी रिपोर्ट में कहा है कि माजूदा समय में साइट पर अभी भी 1,29,236.85 मीट्रिक टन कोयला मौजूद है। गूगल सैटेलाइट की छवियों से पता चला है कि 2017 में कृष्णाशिला रेलवे साइडिंग में कोयले की डंपिंग नहीं देखी गई थी। वहीं 2018 में उस स्थान पर दो छोटे पैच देखे गए जो 2020 तक लगातार बढ़ रहे थे।
रिपोर्ट के मुताबिक यह स्पष्ट है कि कोयले की डंपिंग में पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन किया गया था, जिससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा है। जानकारी दी गई है कि जिस भूमि पर कोयले को डंप किया गया है वह नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) की है, जो उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले में है। रिपोर्ट में यह बात भी कही गई है कि कंपनी वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी उपाय करने में विफल रही है।
देखा जाए तो इस मामले में पहले उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनसीएल पर 30,000 रुपए प्रति दिन के हिसाब से जुर्माना लगाया था जो करीब 4.43 करोड़ रुपए बैठता है। हालांकि कोर्ट का कहना है कि मुआवजे की यह रकम किसी भी तरह उच्चतम न्यायालय द्वारा मुआवजे के लिए निर्धारित वैज्ञानिक मानदंडों से मेल नहीं खाती है। जो इसके लिए पर्याप्त नहीं है।