नदियों को बीमार बना रहे एसटीपी, देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित

एनजीटी ने केंद्र को एक महीने के भीतर एसटीपी के लिए 1986 से भी कमजोर मानकों वाली 2017 की अधिसूचना में बदलाव कर नई अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया है।
नदियों को बीमार बना रहे एसटीपी, देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने देशभर में नदियों और जलाशयों को बीमार और प्रदूषित बना रहे कमजोर मानकों वाले सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) के संचालन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। एनजीटी ने कहा है कि नदियों और जलाशयों में प्रदूषण रोकने के लिए सख्त और वैज्ञानिक मानक के साथ ही नए एसटीपी लगाए जाएं। इसके अलावा देशभर में जो भी एसटीपी लगे हुए हैं या निर्माणाधीन हैं उन पर बिना किसी देरी के नए और सख्त शोधन मानकों को लागू किया जाए। पीठ ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को एसटीपी के नए मानकों वाली अधिसूचना एक महीने में जारी करने का आदेश दिया है।

 एनजीटी के अध्यक्ष और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद याची नितिन शंकर देशपांडे के मामले में 30 अप्रैल को विस्तृत आदेश दिया है। इस विशेषज्ञ समिति में आईआईटी कानपुर, आईआटी रुड़की, नीरी और सीपीसीबी के सदस्य व वैज्ञानिक शामिल थे।

याची नितिन शंकर देशपांडे ने अपनी याचिका में पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना पर सवाल उठाया था। अधिसूचना में कहा गया था कि गंगा-यमुना समेत देश की तमाम नदियों और जलाशयों में सीवेज और औद्योगिक प्रवाह रोकने के लिए एसटीपी को समाधान माना गया है। हालांकि, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से 13 अक्तूबर 2017 को जारी की गई एक बेहद खराब अधिूसचना के कारण एसटीपी समाधान के बजाए समस्या बन चुके हैं। वहीं, बेहद कमजोर मानकों पर ही नए एसटीपी के टेंडर निकाले जा रहे हैं।

याची नितिन शंकर देशपांडे ने अधिसूचना के प्रारूप और बाद में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से एसटीपी के मानकों को लेकर अधिसूचना के हवाले से कहा था कि नदियों और जलाशयों को बीमार और प्रदूषित बनाने वाले प्रदूषक तत्वों को 1986 में तय की गई मात्रा के मुकाबले सख्त बनाए जाने के बजाए कमजोर बना दिया गया है। कुछ प्रदूषक तत्वों की न्यूनतम या अधिकतम मात्रा को ही खत्म कर दिया गया है। इसके चलते न तो एसटीपी कारगर रह गए और न ही नदियों में प्रदूषण करने वालों के लिए कोई सीमा रेखा रह गई।

इस सारिणी में देखिए 1986 के मानक से भी कमजोर मानक 2017 में एसटीपी के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने तैयार किए -  

  मानक  1986 की अधिसूचना    13 अक्तूबर 2017 को जारी एसटीपी के नए मानकों की अधिसूचना
1 जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी)  30 मिली ग्राम प्रति लीटर (एमजी प्रति लीटर) से कम 30 और 20 से कम -मेट्रो शहर (एमजी प्रति लीटर)
2 रसायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी) 250 एमजी प्रति लीटर से कम  कोई सीमा नहीं 
3 फीकल कोलीफॉर्म  कोई सीमा नहीं 1000 ॰एमपीएन से कम 
4 कुल नाइट्रोजन  100 एमजी प्रति लीटर से कम  कोई सीमा नहीं
5 कुल ठोस निलंबित कण (टीएसएस) 20 एमजी प्रति लीटर से कम  100 और 50 एमजी प्रति लीटर से कम (मेट्रो शहर)
6 कुल फास्फोरस  कोई सीमा नहीं  कोई सीमा नहीं 
7 अमोनिकल नाइट्रोजन 50 एमजी प्रति लीटर से कम कोई सीमा नहीं
       
  ॰सारिणी में सिर्फ फीकल कोलीफोर्म की मात्रा एमपीएन से प्रदर्शित है। इसका आशय है कि कितना बैक्टीरिया पानी में है। एमपीएन यानी मोस्ट प्रोबेबल नंबर पर 100 मिलीलीटर।     

एनजीटी की गठित विशेषज्ञ समिति ने 2017 की कमजोर अधिसूचना पर गौर व विश्लेषण करने के बाद 30 अप्रैल को एसटीपी के मौजूदा मानकों और उनमें उपलब्ध कमियों को लेकर अपनी रिपोर्ट एनजीटी में दाखिल की थी। इस रिपोर्ट में एसटीपी के कमजोर मानकों के अलवा कई चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। एनजीटी की पीठ ने सीपीसीबी और विशेषज्ञ रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि इस वक्त देश में कुल 323 नदियों में 351 नदी के हिस्से प्रदूषित हैं। इसलिए बीओडी, सीओडी और टीएसएस, नाइट्रोजन, अमोनिया जैसे अन्य प्रदूषक मानकों को सख्त बनाया जाना चाहिए ताकि एसटीपी की निकासी से नदियां प्रदूषित न हों।

एनजीटी की गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि  यदि शोधन के दौरान सीओडी की मात्रा का कोई मानक नहीं तय होगा तो इससे नदी या जलाशय बेहद प्रदूषित हो जाएंगे। वहीं, ऑनलाइन निगरानी में सीओडी की मात्रा को आसानी से रिकॉर्ड किया जा सकता है जबकि बीओडी सेंसर्स के साथ ऐसा नहीं है। भविष्य में ऑनलाइन निगरानी को ध्यान में रखते हुए भी सीओडी का मानक तय होना चाहिए। नदी या जलाशय के पानी में सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति और गुणवत्ता के लिए भी टीएसएस को नियंत्रित किया जाना चाहिए। इसके अलावा नाइट्रोजन और फास्फोरस की उपस्थिति नदी और जलाशय में मौजूद एल्गी, वेजिटेशन और मछलियों के लिए काफी नुकसानदायक है।

वहीं, एनजीटी ने कहा कि मेट्रो और बड़े शहरों में पानी के फिल्टर की मशीनें तो उपलब्ध हैं लेकिन गांव और कस्बों में यह मशीने नहीं हैं। ऐसे में मेगा और मेट्रोपोलिटन शहरों में बीओडी, सीओडी, फीकल कोलीफॉर्म, नाइट्रोजन-फास्फोरस आदि के जो भी सख्त शोधन मानक तय हों वह सभी जगह के लिए होने चाहिए। गांव और कस्बों में शोधन के मानकों को कमजोर करना किसी भी तरह से उचित नहीं है। देश की बड़ी आबादी इन जगहों पर रहती है।  विशेषज्ञ समिति  की सिफारिशों में गांव-कस्बों के नए मानकों को कमजोर करने के बजाए एक जैसे मानक पर जोर दिया जाना चाहिए। यह बात भी उचित नहीं है कि सात वर्षों तक मौजूदा एसटीपी में मानकों को बदला नहीं जा सकता है।

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