नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अपने एक फैसले में कहा है कि अदालत और एनजीटी के निर्देशों की निगरानी की जिम्मेवारी उत्तर प्रदेश द्वारा स्थापित त्रिस्तरीय निगरानी तंत्र और जवाबदेही समिति को दी जानी चाहिए। इन परिस्थितियों में ट्रिब्यूनल द्वारा नियुक्त ओवरसाइट कमेटी को बनाए रखने का औचित्य नहीं है।
कोर्ट ने आदेश दिया है कि जिला स्तरीय समितियां प्रत्येक माह के अंत तक अपनी मासिक रिपोर्ट राज्य स्तरीय समिति को भेजेंगी। इसके बाद राज्य स्तरीय समिति हर तिमाही निगरानी और अनुपालन के संबंध में एक रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपेगी।
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव इन रिपोर्टों को प्राप्त होने के एक महीने के भीतर समीक्षा और संकलित करेंगे और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगे कि सभी लोग नियमों का पालन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, मुख्य सचिव हर छह महीने में एनजीटी के रजिस्ट्रार जनरल को इस बारे में एक कार्रवाई रिपोर्ट सौंपेंगे।
गौरतलब है कि 29 जून 2023 में मुख्य सचिव की ओवरसाइट कमेटी के अध्यक्ष एवं सदस्यों के साथ हुई बैठक में यह तय किया गया था कि ओवरसाइट कमेटी से त्रिस्तरीय तंत्र में जिम्मेदारियों के हस्तांतरण एक सितंबर, 2023 तक हो जाना चाहिए। हालांकि अब तक ऐसा नहीं हुआ है और यह समय सीमा पहले ही बीत चुकी है।
एनजीटी ने निर्देश दिया है कि अब आगे से त्रिस्तरीय तंत्र, उसके तहत गठित समितियों और जवाबदेही समिति, एनजीटी और अदालतों के निर्देशों का पालन हो रहा है, यह सुनिश्चित करने के साथ-साथ परियोजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेवार होंगें। जब तक कि विशेष मामले में किसी अन्य को निर्देशित न किया जाए।
सरकार के अनुरोध पर कोर्ट ने गठित की थी यह निरीक्षण समिति
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यदि ओवरसाइट कमेटी के पास कोई रिपोर्ट लंबित है, तो उन्हें 30 नवंबर, 2023 तक संबंधित अदालतों या न्यायाधिकरण को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसके बाद, ओवरसाइट कमेटी को भंग कर दिया जाएगा, और उत्तर प्रदेश से प्राप्त सभी संपत्तियां और संसाधन वापस यूपीपीसीबी को उसके कार्य हेतु उसी तिथि तक वापस राज्य/ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को हस्तांतरित कर दिया जाएगा।
बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध पर कोर्ट ने इस निरीक्षण समिति का गठन किया था। अब, राज्य ने विभिन्न स्तरों पर समितियों का गठन करके अपना त्रिस्तरीय निगरानी तंत्र स्थापित किया है। इसके साथ ही जवाबदेही समितियों का भी गठन किया गया है। इस तरह उत्तरप्रदेश में उचित निगरानी तंत्र स्थापित किया गया है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश ने 20 जुलाई, 2023 के आदेश की समीक्षा के लिए कोर्ट में आवेदन किया था। इसमें विशेष रूप से निगरानी समिति को भंग करने का अनुरोध किया था। इसका उद्देश्य राज्य निगरानी तंत्र को पर्यावरण संबंधी नियमो के पालन और संबंधित मुद्दों की निगरानी करने में सक्षम बनाना है।
इस बाबत उत्तर प्रदेश ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से एनजीटी को 28 नवंबर, 2022 का भेजे एक पत्र को रिकॉर्ड पर रखा है। इसमें खुलासा किया गया है कि “एनजीटी द्वारा नियुक्त निरीक्षण समिति, अपने भर्ती किए गए कर्मचारियों के साथ, बोर्ड पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाल रही है।“