अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस: 2030 में आठ करोड़ टन सालाना पैदा होगा इलेक्ट्रॉनिक कचरा

साल 2022 में दुनिया भर में लगभग 6.2 करोड़ टन ई-कचरा पैदा हुआ, जिसमें से केवल 22.3 फीसदी को औपचारिक रूप से एकत्र और रीसायकल किया गया।
इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा उन सभी विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनके हिस्सों से आता है जिन्हें बिना उपयोग के कचरे में फेंक दिया जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा उन सभी विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनके हिस्सों से आता है जिन्हें बिना उपयोग के कचरे में फेंक दिया जाता है।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, जेमिमुस
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अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस 14 अक्टूबर को मनाया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा उन सभी विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनके हिस्सों से आता है जिन्हें बिना उपयोग के कचरे में फेंक दिया जाता है। ई-कचरे में फेंके गए कंप्यूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, मोबाइल फोन और चार्जर, सीडी, हेडफ़ोन, टेलीविजन सेट, एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर और प्लग, केबल या बैटरी, यूएसबी, कार्ड रीडर, गेम कंसोल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसी कई चीजें शामिल हैं।

साल 2024 की थीम - "ई-कचरे की खोज अभियान में शामिल हों- दोबारा हासिल करें, रीसायकल करें और दोबारा उपयोग करें" ई-कचरा प्रबंधन के जरिए, हर कोई प्रदूषण में कमी, संसाधन संरक्षण और ऊर्जा और कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के उत्सर्जन पर लगाम लगा सकता है।

जब इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सही तरीके से निपटान नहीं किया जाता है, तो वे अक्सर लैंडफिल में जाकर मिल जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक सामानों में सीसा, पारा, कैडमियम और ज्वलनशील जैसे विभिन्न खतरनाक पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और जल स्रोतों में घुल सकते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित कर सकते हैं और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरे पैदा कर सकते हैं। पारा इंसान के मस्तिष्क को भारी नुकसान पहुंचाता है।

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में दुनिया भर में प्रति व्यक्ति आठ किलोग्राम ई-कचरा पैदा हुआ। इसका मतलब है कि एक साल के भीतर 6.13 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा फेंका गया, जो चीन की सबसे बड़ी दीवार के वजन से भी अधिक है। इस कचरे का केवल 17.4 प्रतिशत, जिसमें हानिकारक पदार्थ और कीमती सामग्री का मिश्रण है, दुनिया भर में ठीक से एकत्र, उपचारित और पुनर्चक्रित किए जाने के रूप में दर्ज किया जाता है। शेष 5.06 करोड़ टन को या तो लैंडफिल में डाल दिया जाता है, या जला दिया जाता है, या इसका अवैध रूप से व्यापार किया जाता है।

यहां तक कि यूरोप में, जो ई-कचरा रीसाइक्लिंग में दुनिया में सबसे आगे है, केवल 54 प्रतिशत ई-कचरा आधिकारिक तौर पर एकत्र और रीसायकल होने की रिपोर्ट है। सार्वजनिक जागरूकता की कमी देशों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए सर्कुलर अर्थव्यवस्था विकसित करने से रोक रही है।

ई-कचरे में सोना, चांदी और तांबा जैसे मूल्यवान और दुर्लभ तत्व भी होते हैं, जिन्हें क्रिटिकल रॉ मटेरियल कहा जाता है, जो पर्यावरण के हिसाब से अनुकूल और नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं। जब ई-कचरे को ठीक से रिसाइकिल नहीं किया जाता है, तो ये मूल्यवान सामग्री बेकार हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, ई-कचरा दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले ठोस कचरे में से एक है। साल 2022 में दुनिया भर में लगभग 6.2 करोड़ टन ई-कचरा उत्पादित किया गया। केवल 22.3 फीसदी को औपचारिक रूप से एकत्र और रीसायकल किया गया था।

सीसा एक सामान्य पदार्थ है जो पर्यावरण में तब निकलता है जब ई-कचरे को खुले में जलाने सहित सही तरीके से रीसायकल नहीं किया जाता है, सही तरह से एकत्रित या डंप नहीं किया जाता है। सही तरीके से ई-कचरे का रीसायकल न होने पर इसके स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं। बच्चे और गर्भवती महिलाएं विशेष रूप से इसके कारण असुरक्षित हैं।

आईएलओ और डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया भर में सही तरीके से रीसायकल न करने से क्षेत्र में काम करने वाली लाखों महिलाएं और बाल मजदूर खतरनाक ई-कचरे के संपर्क के खतरे में हैं।

यूनाइटेड नेशन इंस्टीट्यूट फॉर ट्रेनिंग एंड रिसर्च (यूनिटार) की मानें तो 2030 तक इलेक्ट्रॉनिक कचरे में 32 फीसदी की बढ़ोतरी होकर 8.2 करोड़ टन होने के आसार हैं।

अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस सबसे पहले 2018 में मनाया गया था, जब इस कार्यक्रम की शुरुआत इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपशिष्ट (डब्ल्यूईईई) फोरम द्वारा की गई थी।

इस दिन को शुरू करने का उद्देश्य ई-कचरे को कम करने और रीसायकल करने के बारे में लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाना था, जिससे लोगों और कंपनियों को पर्यावरण की रक्षा के लिए और अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

डब्ल्यूईईई फोरम एक अंतरराष्ट्रीय संघ है जो दर्जनों विभिन्न ई-कचरा एकत्र करने वाली योजनाओं से बना है जो दुनिया भर के कम से कम 20 अलग-अलग देशों में एक साथ काम कर रहे हैं।

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