एचआईएल लिमिटेड ने एनजीटी के समक्ष जो रिपोर्ट पेश की है उसमें जानकारी दी है कि झारखंड सरकार द्वारा जो एस्बेस्टस खानों पर जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है उसमें कई खामियां हैं| यह खानें पश्चिम सिंहभूम में चाईबासा की रोरो पहाड़ियों पर स्थित हैं|
इस रिपोर्ट के अनुसार 9 अगस्त को जो सरकारी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, उसमें गलत जानकारी दी गई है| रिपोर्ट के अनुसार एचआईएल द्वारा इन एस्बेस्टस खानों की बहाली के लिए जरुरी कदम नहीं उठाए गए हैं| साथ ही पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया गया था| उदाहरण के लिए इन खानों से एस्बेस्टस धूल का प्रदूषण जारी था जिसके चलते स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा था और तालाबों और नदियों का पानी दूषित हो गया था|
रिपोर्ट में कहा गया है कि एस्बेस्टस खानों को 1983 में बंद कर दिया गया था, साथ ही जिन्हें 1984 में एचआईएल ने सरेंडर कर दिया था| जिसपर 1985 में बिहार सरकार की स्वीकृति भी मिल गई थी| इसके बाद बिहार सरकार ने इस फिर से पट्टे पर देने के लिए खदान का नाम भी बदल दिया था।
एचआईएल के अनुसार उसने इन खानों को बिहार सरकार (अब झारखंड) को क़ानूनी तौर पर सौंप दिया था| 1985 के बाद जब खानों का समर्पण कर दिया था, उसके बाद खानों पर केवल बिहार सरकार का अधिकार था। इसलिए उसे प्रदूषक नहीं कहा जा सकता है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने 28 सितंबर को इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट पर एनजीटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है| जिसमें सिफारिश की गई है कि केवल गाजियाबाद के लोनी में ही नहीं पूरे देश में इलेक्ट्रॉनिक कचरे की मात्रा को देखते हुए उत्पादकों को पकड़ा जा सकता है| उसके अनुसार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा ऐसा उत्पादकों की जिम्मेवारी निर्धारित करने वाले खंड (इपीआर) के तहत किया जा सकता है|
रिपोर्ट में देश भर में बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक कचरे का डंपिंग के लिए उत्पादकों को जिम्मेवार माना है| जिसके अनुसार इलेक्ट्रॉनिक कचरे का डंपिंग और चैनलाइजेशन के लिए इसका सही तरह से संग्रह न करना जिम्मेवार है, जिसके लिए ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत उत्पादकों की विफलता भी जिम्मेवार है| पॉलीक्लोरिनेटेड बाइफिनाइल्स (पीसीबी) वेस्ट के निपटान के लिए सीपीसीबी एक पायलट फाइन पलवराइजेशन यूनिट या फिर किसी अन्य तकनीक पर आधारित इकाई स्थापित कर सकता है, जिससे उसका निपटान किया जा सके|
रिपोर्ट ने ट्रिब्यूनल को सूचित किया है कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) और लोनी के अधिकारियों ने उस क्षेत्र का निरीक्षण किया था| जिस क्षेत्र पर जीडीए के मास्टर प्लान के खिलाफ अवैध ई-कचरा उद्योग लगाए गए थे। सर्वेक्षण में 80 अवैध इकाइयों की पहचान की गई है और उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश टाउन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट 1973 की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की गई है।
साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोनी में लगाई गई यह अनधिकृत इकाइयां केवल जलाने, नक़्क़ाशी करने या गलाने में लगे छोटे उद्योग थे।
एनजीटी के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और सोनम फेंटसो वांग्डी की बेंच ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर याचिका को ख़ारिज कर दिया है| गौरतलब है कि इस याचिका में दिल्ली पुलिस ने यमुना नदी बाढ़ के मैदान पर पुलिस प्रशिक्षुओं के आवास के निर्माण की अनुमति मांगी थी| जिसे एनजीटी द्वारा दिए आदेश (मूल आवेदन संख्या 06/2012, मनोज मिश्रा बनाम भारत संघ और अन्य) के तहत रोक दिया गया था|
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यह परियोजना बाढ़ के मैदान के ठीक ऊपर है, इसके साथ ही इससे ठोस अपशिष्ट और सीवेज भी उत्पन्न होगा जिस वजह से यह बाढ़ के मैदान पर निर्माण के लिए ठीक नहीं है|