हरदा विस्फोट: अब तक 13 की मौत, कचरे का वैज्ञानिक निपटान न होने से चिंतित हैं लोग

मध्य प्रदेश के हरदा जिले में छह फरवरी को पटाखा फैक्ट्री में आग लग गई, जिससे जान माल का बड़ा नुकसान हुआ
हरदा में पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट के बाद मलबे व कचरे को भारी इंतजाम किया गया। फोटो: पूजा यादव
हरदा में पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट के बाद मलबे व कचरे को भारी इंतजाम किया गया। फोटो: पूजा यादव
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“मेरे खेत से पटाखा फैक्ट्री बिल्कुल लगी हुई थी। जब आग लगी, खतरे को तुरंत भांपते हुए हमारा पूरा परिवार घर छोड़कर भाग गया।जब घर लौटे तो दीवारों में दरारें आ चुकी थी, खिड़की दरवाजे टूटे थे, घर का सामान बिखरा था। रस्सी से बंधे हुए मवेशी जख्मी थे। खेतों में सीमेंट, लोहे, सुतली बम के अवशेष, जली हुई गाड़ियां पड़ी थी। भागते समय मेरे बेटे हिमांशु कुशवाहा के पैर में लोहे की रॉड आकर लगी। किसी तरह हमारी जान तो बची लेकिन बहुत नुकसान हुआ। अब चिंता भविष्य की सता रही है, क्योंकि हम कुएं का पानी पीते हैं और पटाखा फैक्ट्री में आग पर लाखों लीटर पानी की बौछारे करके काबू पाया गया। अब वह पानी बारूद, सुतली बम के अवशेषों के साथ जमीन के अंदर रिस रहा है, ऐसा न हो कि आने वाले दिनों में रिसते हुए हमारे कुएं तक पहुंच जाए। ऐसा हुआ तो हम जीवित ही मर जाएंगे”। यह चिंता मध्य प्रदेश के हरदा जिला मुख्यालय पर बैरागढ़ क्षेत्र में रहने वाले राकेश कुशवाहा की ही नहीं, बल्कि आसपास रह रहे सैकड़ों परिवारों की भी है। 

6 फरवरी 2024 को बैरागढ़ स्थित पटाखा फैक्ट्री में आग लग गई थी। इस वजह से 13 लोगों की मौतें हो चुकी है। कई लोगों का अब तक पता नहीं चल पाया है। धमाकों की आवाज 35 से 40 किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। फैक्ट्री से लगे घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए। वाहनों का भी नुकसान हुआ है, लेकिन अब पर्यावरण, रसायन व आयुध निर्माण के जानकारों का अंदेशा है कि फैक्ट्री से निकलने वाले कचरे व मलबे का निस्तारण वैज्ञानिक तरीके से नहीं हो रहा है।

पर्यावरणविद् व प्रसिद्ध रसायनज्ञ सुभाष सी पांडेय का कहना है कि प्रशासन कचरे का निपटान वैज्ञानिक तरीके से नहीं कर रहा है, बल्कि बारूदी कचरे पर पानी डालने और उसे मशीनों से जमीन में समतल करके दबाया जा रहा है। पांडेय कहते हैं कि यदि इस फैक्ट्री में सुतली बम ही बनाए जा रहे थे तो भी उसके लिए सबसे कम गुणवत्ता वाले बारूद का उपयाेग होता है, जिसमें पोटेशियम नाइट्रेट, चारकोल और सल्फर आदि की मौजूदगी होती है। ये पानी में मिलने और उक्त पानी के उपयोग में आने से किडनी, त्वचा, पेट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। यदि पानी आंखों में गया तो इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने के प्रयोगशाला सहायक रहे टीआर चौहान भी कहते हैं कि हरदा की पटाखा फैक्ट्री और यूनियन कार्बाइड में हुए गैस रिसाव में कोई समानता नहीं है। फिर भी वह सलाह देते हैं कि हरदा पटाखा फैक्ट्री में बारूद और पटाखों में उपयोग किए जाने वाले कैमिकल्स को देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन के अनुरूप निपटान होना चाहिए।

मध्य प्रदेश की इटारसी आर्डिनेंस फैक्ट्री से सेवानिवृत आरएन शर्मा का कहना है कि कचरे को वैज्ञानिक तरीके से नष्ट नहीं किया तो ये उस क्षेत्र की जमीन को विषाक्त करेंगे, लोगों के जीवन पर इसका विपरित प्रभाव पड़ेगा।

वहीं, भोपाल गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाली भोपाल ग्रुप फॉर इंफार्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा भोपाल गैस त्रासदी के बाद बचे कचरे का उदाहरण देखकर हरदा की पटाखा फैक्ट्री के कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटाने की सलाह दे रही हैं। 

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