कीटों के एंटीना और रिसेप्टर्स को प्रभावित कर रहे प्रदूषण के महीन कण

प्रदूषण के कण कीटों के एंटीना और रिसेप्टर्स पर असर डाल रहे हैं, जिसकी वजह से इन नन्हे जीवों को अपना आहार, साथी, या अंडे देने के लिए सुरक्षित जगह खोजने में दिक्कतें आ रही हैं
अपने घोंसले में युवा पीली ततैया, फोटो: आईस्टॉक
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गाड़ियों, फैक्ट्रियों, जंगल में धधकती आग आदि स्रोतों से निकलते प्रदूषण के महीन कण इंसानों के साथ-साथ अन्य जीवों को भी प्रभावित कर रहें है। कीटों को लेकर इस बारे में की गई एक नई रिसर्च से पता चला है कि प्रदूषण के यह कण कीटों के एंटीना और रिसेप्टर्स पर असर डाल रहे हैं, जिसकी वजह से इन नन्हे जीवों को अपना आहार, साथी, या अंडे देने के लिए सुरक्षित जगह खोजने में दिक्कतें आ रही हैं। इसका असर न केवल उनके स्वास्थ्य बल्कि आबादी पर भी पड़ रहा है।

रिसर्च के मुताबिक बढ़ता प्रदूषण ने केवल शहरों के आसपास बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों में भी इनकी आबादी को प्रभावित कर रहा है, जो वैश्विक स्तर पर इनकी घटती संख्या की वजह बन सकता है। गौरतलब है कि धरती का करीब 40 फीसदी हिस्से में प्रदूषण के यह कण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय वार्षिक औसत मानकों से ज्यादा हैं।

अध्ययन के अनुसार कीटों पर पड़ने वाला वायु प्रदूषण का असर अनुमान से कहीं ज्यादा है। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबोर्न, बीजिंग वानिकी विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया डेविस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में मेलबर्न विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता मार्क एल्गर का कहना है कि, “हम जानते हैं कि प्रदूषण के कणों का सम्पर्क कीटों सहित अन्य जीवों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। हमारे अध्ययन में सामने आया है कि यह गंध की मदद से कीटों के भोजन और साथी को खोजने की महत्वपूर्ण क्षमता को भी सीमित कम कर देता है।" उनके मुताबिक इसकी वजह से कीटों की आबादी में गिरावट आ सकती है।

इतना ही नहीं रिसर्च से पता चला है कि जंगल में लगने वाली आग और उससे होता प्रदूषण, स्रोत से दूर भी कीटों को प्रभावित कर सकती है। उन्होंने बताया कि, "आकर्षक होने के साथ-साथ यह कीट कई अन्य तरहों से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पौधों में परागण के लिए अहम होते हैं। इनमें करीब-करीब वो सभी फसलें शामिल हैं, जिन पर हम अपने आहार के लिए निर्भर करते हैं।"

इतना ही नहीं यह कीट सड़ती-गलती सामग्री के विघटन के साथ पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में भी मदद करते हैं। शोधकर्ताओं को स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के उपयोग से पता चला है कि जैसे-जैसे वायु प्रदूषण बढ़ता है, घरेलू मक्खियों के संवेदनशील एंटीना पर अधिक कण जमा होने लगते है।

कैसे प्रदूषण के यह कण कीटों की क्षमता को कर रहे हैं प्रभावित

इन कणों में हवा में मुक्त हुए ठोस कण या तरल पदार्थ होते हैं, जिनमें कोयला, तेल, पेट्रोल या आग से पैदा हुई जहरीली भारी धातुएं और कार्बनिक यौगिकों शामिल होते हैं। अध्ययन से पता चला है कि उनके एंटीना पर मौजूद इस प्रदूषण ने मक्खियों के मस्तिष्क को भेजे जाने वाले गंध-संबंधी विद्युत संकेतों की शक्ति को काफी कम कर दिया था, जो गंध का पता लगाने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।

बता दें कि कीटों के एंटीना में गंध को पकड़ने वाले रिसेप्टर्स होते हैं जो आहार स्रोत, संभावित साथी या अंडे देने के लिए एक अच्छी जगह को खोजने में कीटों की मदद करते हैं। ऐसे में यदि किसी कीट के एंटीना, पार्टिकुलेट मैटर से ढके होते हैं, तो उससे एक भौतिक अवरोध उत्पन्न जो जाता है जो गंध को पकड़ने वाले रिसेप्टर्स और हवा में मौजूद गंध के अणुओं के बीच होने वाले संपर्क को रोकता है।

प्रोफेसर एल्गर का कहना है कि, "जब उनके एंटीना प्रदूषण के कणों से भर जाते हैं, तो कीड़े भोजन, साथी या अपने अंडे देने की जगह को सूंघने के लिए संघर्ष करते हैं और इससे उनकी आबादी पर असर पड़ेगा।"

उनके अनुसार, "आश्चर्य की बात है कि हवा के जरिए हजारों किलोमीटर की दूरी तय करने वाले इन कणों के कारण सुदूर और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र भी इससे प्रभावित हो रहे हैं।"

भले ही हमें इसका अहसास न हो लेकिन यह नन्हें जीव पर्यावरण, जैवविविधता और इंसानों के लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। इनकी भूमिका को इसी से समझा जा सकता है कि यह कीट 80 फीसदी से ज्यादा पौधों को परागित करते हैं, जो इंसानों समेत अनगिनत जीवों के लिए भोजन का प्रमुख स्रोत हैं।

इसके बावजूद इन जीवों के संरक्षण के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं किए गए हैं। नतीजन विविधता से भरपूर यह जीव तेजी से घटते जा रहे हैं। एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि सभी जीवों में करीब 80 फीसदी आबादी कीटों की है। इसके बावजूद आईयूसीएन द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए जारी की जाने वाली रेड लिस्ट में कीटों की केवल आठ फीसदी प्रजातियों का ही अध्ययन है।

जर्नल साइंस में छपे एक अध्ययन के मुताबिक 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की कमी आई है। वहीं अनुमान है कि यह कीट हर दशक करीब नौ फीसदी की दर से कम हो रहे हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में छपे एक शोध में भी इस बात की पुष्टि की थी कि कीटों की आबादी तेजी से घट रही है। शोध का अनुमान है कि ऐसा हो चलता रहा तो अगले कुछ दशकों में दुनिया के करीब 40 फीसदी कीट खत्म हो जाएंगें। वैज्ञानिकों के अनुसार कीटों की घटती आबादी के लिए काफी हद कृषि, शहरीकरण, प्रदूषण, कीटनाशक और जलवायु में आता बदलाव जैसी वजहें जिम्मेवार हैं।

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