पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: एलजी पॉलिमर मामले में कंपनी को नहीं मिली राहत

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: एलजी पॉलिमर मामले में कंपनी को नहीं मिली राहत
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देश के उच्चतम न्यायलय ने 19 मई, 2020 को एलजी पॉलिमर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को निर्देश दिया कि जांच के लिए गठित समितियों के मुद्दे पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष जाए।

गौरतलब है कि 7 मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट से स्टाइरीन गैस लीक हुई थी, जिसमें 11 लोगों कि दुखद मौत हो गयी थी, जबकि  हजारों लोग प्रभावित हुए थे। इसी गैस के रिसाव की जांच करने के लिए यह समितियां गठित की गई है।

इस मामले में एलजी पोलिमर्स का पक्ष रखने वाले वकील ने कहा कि इस गैस रिसाव मामले में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर पहले ही एक समिति गठित की जा चुकी है जो इस मामले की जांच कर रही है, ऐसे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा एक अलग से जांच समिति बनाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर साफ कर दिया है कि यदि बचाव पक्ष को कुछ कहना है तो वह एनजीटी के समक्ष जाकर अपनी बात रखे। इसमें सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कर सकता।

इससे पहले एनजीटी ने नोटिस के साथ एलजी पॉलिमर्स को शुरुआती 50 करोड़ रुपए जमा करने का आदेश पहले ही दे चुका है। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की जांच रिपोर्ट में भी इस दुर्घटना के लिए कंपनी की ही जिम्मेदार माना गया है। जिसके अनुसार दुर्घटना की मुख्य वजह कंपनी की लापरवाही और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन न करना था।

प. बंगाल में कोविड-19 से जुड़े कचरे को खुले मैदान में किया जा रहा है डंप

18 मई, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बायोमेडिकल वेस्ट से सम्बन्ध्र रखने वाले मामले पर संज्ञान लिया है| यह मामला आवेदक, सुभास दत्ता ने एनजीटी के सामने रखा था| उन्होंने न्यायाधिकरण को सूचित किया है कि पश्चिम बंगाल में कोविड-19 से जुड़े कचरे को खुले मैदान में अंधाधुंध तरीके से डंप किया जा रहा है| जबकि कोविड-19 से जुड़े कचरे के हैंडलिंग, उपचार और निपटान के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग से दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं| उनके अनुसार इन दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है|

इस मामले का संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे संबंधित विभागों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर इस मामले की जांच करें| और देखें कि क्या कोविड -19 से जुड़े कचरे के निपटान के लिए सीपीसीबी के दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है| साथ ही इन दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए ठोस और तत्काल कदम उठाएं| इसके साथ ही इसपर एक रिपोर्ट भी कोर्ट के सामने प्रस्तुत करें।

इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अलग से एक रिपोर्ट दाखिल करनी के लिए कहा है| जिसमें कोविड-19 से जुड़े कचरे का निपटान किस तरह से किया जा रहा है और उसमे सीपीसीबी के दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है उसपर भी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है। कोर्ट ने इन दोनों रिपोर्ट को 8 जुलाई तक जमा करने का आदेश दिया है।

2023 तक उपचारित सीवेज का उपयोग शुरू करें राज्य

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 18 मई, 2020 को सीवेज ट्रीटमेंट से सम्बंधित एक रिपोर्ट जारी की है| जिसमें उसने 2023 तक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उपचारित सीवेज के उपयोग के लिए कार्य योजना को लागू करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही सीपीसीबी ने राज्यों को सीवेज की सही मात्रा का अनुमान लगाने का भी निर्देश दिया है|

साथ ही उसने राज्यों को सीवेज ट्रीटमेंट के लिए पर्याप्त क्षमता के विकास करने की भी बात कही है| जोकि उपचारित सीवेज के उपयोग और उसके लिए कार्य योजना को लागू करने के लिए सबसे जरुरी है| इसके साथ ही रिपोर्ट में इस उपचारित सीवेज का उपयोग करने वालों की पहचान करने को भी कहा गया है| जिसमें अधिक मात्रा में उपयोग करने वालों और औद्योगिक प्रयोग को अलग रखने को कहा गया है|

सीपीसीबी ने एनजीटी से सिफारिश की है कि राज्य या केंद्रशासित प्रदेश इस बाबत जानकारी देने में असफल रहे है, उनपर पर्यावरण की क्षतिपूर्ति के रूप में प्रति माह एक लाख रुपए की दर से जुर्माना लगाया जाए| गौरतलब है कि यह राज्य निम्नलिखित हैं:

  1. अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब इससे जुडी किसी भी जानकारी को प्रस्तुत करने में असफल रहे हैं|
  2. असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल ने कार्य योजना के विषय में बहुत ही सीमित जानकारी दी है|
  3. तीन राज्यों - केरल (तिरुवनंतपुरम), कर्नाटक (बेंगलुरु), तेलंगाना (हैदराबाद) ने केवल शहरों से जुडी विशिष्ट कार्य योजना प्रस्तुत की है। जबकि राज्य में उपचारित सीवेज के पुन: उपयोग की कार्य योजना उपलब्ध नहीं कराई गई है।
  4. लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार, सिक्किम और त्रिपुरा ने अपने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में उपचारित सीवेज के उपयोग की योजना नहीं बना पाने के लिए स्थानीय इलाकों और तकनीकी मुद्दों का हवाला दिया था।

यही वजह है कि सीपीसीबी ने इन सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर जुर्माना लगाने कि सिफारिश की है|

सीपीसीबी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश की डेयरियां और गौशालाओं को चलाने और उसके पर्यावरण सम्बन्धी दिशानिर्देशों से जुड़ी एक रिपोर्ट

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने डेयरियां और गौशालाओं को चलाने और उसके पर्यावरण सम्बन्धी दिशानिर्देशों से जुडी एक रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश की है| जिसे 18 मई, 2020 को ऑनलाइन जारी किया गया है| इसमें सभी स्थानीय निकायों/ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) / प्रदूषण नियंत्रण समितियों/ ग्राम पंचायतों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि डेयरियां और गौशालाएं पर्यावरण प्रबंधन सम्बन्धी दिशानिर्देशों का पालन करें।

रिपोर्ट में कहा गया है कि डेयरी फार्मों और गौशालाओं में जहां पशुओं की आबादी 10 या उससे अधिक है, वहां पशुपालकों को संबंधित एसपीसीबी / पीसीसी से जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के तहत उसे स्थापित करने और चलाने के लिए सहमति प्राप्त करनी होगी।

साथ ही रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि सभी स्थानीय प्राधिकरणों और निगमों को अपने क्षेत्र में मौजूद सभी डेयरी फार्मों और गौशालाओं को एक निर्धारित प्रारूप में विवरण तैयार करना होगा| इस जानकारी को उन्हें साल में एक बार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) या प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) के साथ साझा करनी होगी।

सामान्य तौर पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मवेशियों के गोबर के निपटान खेतों में खाद, वर्मी-कम्पोस्टिंग, बायोगैस, मछली के चारे और दाह संस्कार के लिए ईंधन आदि रूप में किया जाता है। एसपीसीबी और पीसीसी ने अपशिष्ट जल के निपटान और उपयोग के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। हालांकि छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम ने बताया है कि वो इस अपशिष्ट जल का उपयोग पशुओं का चारा उगाने के लिए कर रहे हैं|

बिना ट्रीटमेंट प्लांट के देश में चल रहे हैं 2,027 उद्योग

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उद्योगों से निकले अपशिष्ट जल और उसके निपटान के लिए निर्मित ट्रीटमेंट प्लांट से जुडी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है| जिसमें उद्योगों का विवरण दिया है जो इनसे जुड़े नियमों का पालन कर रहे हैं| और उन्होंने अपने अपशिष्ट जल के निपटान के लिए ट्रीटमेंट प्लांट (एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाए हैं या नहीं इस बारे में भी विवरण दिया गया है| जोकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) द्वारा साझा जानकारी पर आधारित है| जिसे मई 2020 में जारी किया गया है|

इसके साथ ही इस रिपोर्ट में नदी बेसिन के आधार पर भी उद्योगों को वर्गीकृत किया गया है| जहां अपशिष्ट जल के निपटान के लिए ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाए या नहीं लगाए गए हैं| रिपोर्ट के अनुसार कुल 65,135 उद्योगों में ईटीपी लगाना जरुरी है| और उनमें से 63,108 उद्योग कार्यरत ईटीपी के साथ चल रहे हैं| जबकि 2,027 उद्योगों को बिना ईटीपी के चलाया जा रहा है|

बिना एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट के चलाये जा रहे इन उद्योगों में से 968 को कारण बताओ नोटिस और 881 बंद करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं| जबकि 7 उद्योगों के खिलाफ मुक़दमे दायर किये गए हैं| वही 269 के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है| दिलचस्प है कि जिन 63,108 उद्योगों में फंक्शनल ईटीपी है, उनमें से भी 1616 उद्योग पर्यावरण से जुड़े मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं| जबकि बाकि बचे 61,346 उद्योगों को सही पाया गया है| 

इसके साथ ही सीपीसीबी ने एनजीटी को यह भी सूचित किया है कि नदी बेसिन के आधार पर ईटीपी और सीईटीपी से जुड़े जानकारी एकत्रित करने के लिए प्रारूप को अंतिम रूप दिया जा रहा है| जिससे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) की मदद से उनके बारे में बारीक जानकारियां भी इकट्ठी की जा सकें।

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