पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: पर्यावरण मंजूरी से जुड़े प्रावधानों और उनके संशोधन पर पुनःविचार करे मंत्रालय: एनजीटी

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें
पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: पर्यावरण मंजूरी से जुड़े प्रावधानों और उनके संशोधन पर पुनःविचार करे मंत्रालय: एनजीटी
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एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 28 मार्च, 2020 को जारी अधिसूचना पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है। इस नई अधिसूचना में 14 सितंबर, 2006 को जारी पुराने नोटिफिकेशन के कुछ प्रावधानों में बदलाव कर दिया था। यह संशोधन पर्यावरण मंजूरी से जुड़े प्रावधानों के विषय में थे।

गौरतलब है कि नए संशोधन के तहत खनन के लिए दिए नए पट्टों में पर्यावरण मंजूरी के लिए दो वर्ष का अतिरिक्त समय दे दिया है। इस तरह यदि पुराने पट्टे के लिए पर्यावरण मंजूरी ली गयी है तो पट्टे की तारीख से दो साल की अवधि के लिए फिर से पर्यावरण मंजूरी लेने की जरुरत नहीं है, चाहे वह पट्टा किसी और को दिया जा रहा हो।

इसके साथ ही इस संशोधन में कुछ अन्य कार्यों जैसे सड़क, पाइपलाइन, बांधों से गाद निकालने, जलाशयों, बैराज, नदी और नहरों को उनके रखरखाव और आपदा प्रबंधन के उद्देश्य से खनन करने पर पर्यावरण मंजूरी लेना जरुरी नहीं है। एनजीटी ने इन दो मुद्दों पर गौर करने के लिए कहा है। 

नेवेली लिग्नाइट दुर्घटना से निपटने के लिए नहीं थी पूरी तैयारी: रिपोर्ट 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड में हुए हादसे पर अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी है। यह हादसा 1 जुलाई, 2020 को हुआ था। यह थर्मल पावर स्टेशन - मेसर्स नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल), तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले के नेवेली में स्थित है। इस हादसे में बॉयलर फट गया था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 17 अन्य घायल हो गए थे। 

समिति ने इस दुर्घटना के लिए निम्न कारणों को जिम्मेवार माना है: 

  • कर्मचारियों को पर्याप्त ज्ञान न होना
  • लिग्नाइट के रासायनिक गुणों के बारे में अधूरी जानकारी, विशेषकर वाटर गैस के निर्माण के विषय में, जब गर्म होने पर लिग्नाइट पर पानी लगाया जाता है।
  • सुरक्षा के खराब प्रोटोकॉल, सुरक्षा जागरूकता की कमी
  • जोखिम का ठीक से मूल्यांकन ने करना और प्रतिक्रिया में की गई देरी
  • सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली की बेकार प्रक्रिया और
  • सुलगने वाले तत्वों के बारे में सभी कर्मचारियों और श्रमिकों के बीच जागरूकता का आभाव 

रिपोर्ट के अनुसार सुलगने से निपटने के लिए कंपनी ने कोई योजना नहीं तैयार की थी। केवल आग लगने और अन्य दुर्घटना के लिए ही ऑनसाइट आपातकालीन योजना तैयार की गई थी। साथ ही एनएलसी के पास सुलगने और पानी से गैस के निर्माण सम्बन्धी दुर्घटना से निपटने के लिए कोई आपातकालीन योजना नहीं थी। 

दिल्ली में ठोस कचरा प्रबंधन स्थल का चुनाव 

एनजीटी ने 27 अक्टूबर, 2020 को अपने 14 दिसंबर, 2017 के आदेश के खिलाफ दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन  (डीएसआईआईडीसी) के द्वारा दायर याचिका का निपटारा किया। 

दिसंबर 2017 के आदेश में निर्देश दिया गया था कि दिल्ली सरकार के साथ व्यावसायिक भवनों के लिए उपलब्ध भूमि को तब तक विकसित नहीं किया जाएगा जब तक कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भूमि उपलब्ध नहीं कराई जाती है। 

वर्तमान याचिका में, याचिकाकर्ता ने कहा कि 42.5 एकड़ भूमि के रूप में एक विकल्प है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए। 

एनजीटी ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उपयुक्त भूमि की उपलब्धता के मुद्दे को पहले मुख्य सचिव और उपराज्यपाल को सुलझाना होगा, निकले निर्णय के आधार पर डीएसआईआईडीसी अदालत का रुख कर सकता है। 

पर्यावरण नियमों की अनदेखी पर एनजीटी ने स्थगित की कार्यवाही 

पर्यावरण नियमों के पालन में की जा रही देरी के चलते एनजीटी ने 19 फरवरी, 2021 को की जाने वाली कार्यवाही को स्थगित कर दिया है| नियमों के पालन में यह देरी मैसर्स ललितपुर पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (एलपीजीसी) द्वारा की गई थी| जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और श्यो कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि उम्मीद है कि एलपीजीसी पर्यावरण और उससे जुड़े नियमों के पालन में अपनी जिम्मेदारी को समझेगा और अब इस विषय पर प्रभावी कदम उठाएगा। 

कोर्ट ने कहा है कि इस मामले पर पिछले दो वर्षों में कई मौकों पर विचार किया गया है| इसके बावजूद पर्यावरण से जुड़े कई अहम मुद्दों पर पर्यावरण से जुड़े नियमों को अनदेखा किया जा रहा था| इसमें फ्लाई एश का निपटान, हवा की गुणवत्ता की निरंतर निगरानी के लिए स्टेशनों का निर्माण, हानिकारक वेस्ट का निपटान, उत्सर्जन की रोकथाम, पर्याप्त मात्रा में पेड़ लगाना और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के उचित संचालन जैसे मुद्दे शामिल हैं| 

धामपुर झील में अवैध निर्माण के खिलाफ एनजीटी सख्त

महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में धामपुर झील है। सिंधुदुर्ग जिले के कलेक्टर द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष अनुपालन में दायर हलफनामे में सूचित किया गया कि झील में एक स्काईवॉक का अवैध निर्माण किया गया था। साइट निरीक्षण रिपोर्ट में भी अवैध निर्माण की पुष्टि हुई। 

सिंधुदुर्ग के सावंतवाड़ी में पीडब्ल्यूडी ने सिंचाई विभाग की एनओसी का उल्लंघन किया है और अवैध ढांचे का निर्माण किया है, लेकिन लगातार फॉलोअप, बार-बार मीटिंग, कार्यालय के आदेश के बाद भी सावंतवाड़ी पीडब्ल्यूडी निम्नलिखित करने में विफल रही 

  • राज्य जैव विविधता कोष में 5 करोड़ का जुर्माना जमा करने में विफल
  • 21 अक्टूबर, 2020 तक अवैध ढांचे को गिराना शुरू नहीं किया गया। 

9 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी के आदेश के अनुपालन में, सिंधुदुर्ग के कलेक्टर ने पीडब्ल्यूडी के आधिकारिक बैंक खाते पर पाबंदी लगा दी गई। 

एनजीटी और सिंधुदुर्ग के कलेक्टर के आदेशों को लागू करने में पीडब्ल्यूडी के सुस्त और लापरवाह रवैये के कारण, पीडब्ल्यूडी के अधिकरियों के खिलाफ विभागीय जांच का प्रस्ताव रखा गया, जिसके बाद अवैध ढांचे को हटाने के लिए प्रयास किए गए। 

पिपावर ओपेनकास्ट कोल माइनिंग प्रोजेक्ट में पिछले कई वर्षों से किया जा रहा था पर्यवरण नियमों का उल्लंघन 

कोयले की हैंडलिंग और परिवहन के चलते जो कोयले की धूल उड़ती है उससे वायु, जल और मिट्टी दूषित हो रही है। कोयला खनन से जुड़े इस काम के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। यह पूरा मामला पिपावर ओपेनकास्ट कोल माइनिंग प्रोजेक्ट से जुड़ा है। जो अब कोयले का खनन नहीं कर रही है। लेकिन रिपोर्ट से पता चला है कि यह प्रोजेक्ट पर्यावरण मंजूरी से जुड़ी कई शर्तों को पूरा नहीं कर रहा था। यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चल रहा था। 

यह जानकारी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा गठित संयुक्त जांच समिति की रिपोर्ट में सामने आई है, जिसे 27 अक्टूबर, 2020 को कोर्ट की साइट पर अपलोड किया गया है। एनजीटी ने इस समिति का गठन पिपावर ओपेनकास्ट कोल माइनिंग प्रोजेक्ट में हो रहे पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की जांच के लिए किया था। यह प्रोजेक्ट सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड का है। 

इस रिपोर्ट में समिति ने नीतियों से जुड़े दो मुद्दों पर जोर दिया है: 

  • पहला, इस प्रोजेक्ट में करीब दो तिहाई कोयले को सड़क मार्ग द्वारा भेजा जा रहा था। यह 'ऑन-रोड बिक्री' और ई-नीलामी की अनुमति सम्बन्धी नीति का परिणाम है। ऐसे में पर्यावरण मंजूरी से जुड़ी कोई भी शर्त जो निर्दिष्ट करती है कि इस तारीख के बाद सड़क द्वारा कोयले के परिवहन की अनुमति नहीं दी जाएगी, पूरी तरह से व्यर्थ है।
  • दूसरा, पर्यावरण मंजूरी से जुड़ी सभी शर्तें प्रदूषण की रोकथाम और उसके लिए उठाए जाने वाले क़दमों पर केंद्रित होती हैं। लेकिन पर्यावरण प्रदूषण को तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक स्थिति की अलग-अलग स्थानों पर निरंतर निगरानी न की जाए। यह स्वास्थ्य और इकोसिस्टम पर पड़ने वाले असर को जानने और उसे रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है। 

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