नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 27 अगस्त, 2020 को सांभर झील प्रदूषण मामले पर आदेश जारी कर दिया है। जिसमें राजस्थान के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वो इस मामले में जरुरी कार्रवाही करे। साथ ही कोर्ट ने उन्हें हर महीने प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए गए क़दमों की निगरानी करने के लिए भी कहा है। जिसपर मामले की अगली सुनवाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है। इस मामले पर अगली सुनवाई 22 जनवरी, 2021 को होगी।
पूरा मामला सांभर झील में बढ़ते प्रदूषण से जुड़ा है। जहां नमक शोधन इकाइयों के द्वारा उत्पन्न सोडियम सल्फेट कचरे के निपटान की समस्या बनी हुई है। वहां अभी भी इस कचरे का प्रबंधन नहीं हो रहा है। इस झील में डाला जा रहा कचरा और सीवेज भी एक समस्या है। इसके साथ ही इस झील पर हो रहा अतिक्रमण भी समस्या को बढ़ा रहा है।
एनजीटी ने यह आदेश 20 नवंबर, 2019 को प्रकाशित एक समाचार पत्र का संज्ञान लेते हुए दिया है। जिसमें सांभर झील और उसके आस-पास के इलाकों में इकोसिस्टम में आ रही गिरावट का उल्लेख किया गया था। समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट के अनुसार, वहां 18000 प्रवासी पक्षियों की मौत की घटना भी सामने आई थी।
इस घटना के लिए जलस्रोतों का ठीक से ध्यान न रखने को बताया गया था। जिसमें इस वेटलैंड के इकोसिस्टम को बनाए रखने में पर्यावरण सम्बन्धी मानदंडों के उल्लंघन की बात कही गई थी।
एनजीटी ने 24 अगस्त 2020 को प्रमोद कुमार अग्रवाल बनाम उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मामले में अपना फैसला दे दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने कहा है कि पर्यावरण और प्रदूषण के मामले में होटल किसी भी तरह अपने दायित्व से नहीं बच सकते हैं। वो इसके लिए जल अधिनियम का फायदा नहीं उठा सकते। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अधिनियम की धारा 26, 1974 से पहले स्थापित होटलों पर लागू होती है। होटल चलाने के लिए जल और वायु से जुड़े नियम सभी होटलों पर लागु होते हैं। ऐसे में उससे हो सकने वाले जल और वायु प्रदूषण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इस मामले में सुशीला टूरिंग होटल और एक अन्य आवेदक ने एनजीटी के समक्ष आवेदन किया था। जिसमें उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आदेशों को चुनौती दी गयी थी। गौरतलब है कि इस मामले में एसपीसीबी ने होटलों से सीवेज उपचार की व्यवस्था करने और साथ ही होटलों को चलाने के लिए जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के अंतर्गत सहमति लेने के लिए कहा था।
इस मामले में अपील करने वाले होटलों का तर्क था कि वे 1980 से काम कर रहे थे। ऐसे में जल अधिनियम की धारा 26 के अनुसार उन्हें सहमति के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि राज्य सरकार द्वारा कोई तारीख अधिसूचित नहीं की जाती। होटलों ने कहा था कि उनके यहां कोई संयंत्र, मशीनरी, जनरेटर सेट या बॉयलर नहीं है। ऐसे में उन पर वायु अधिनियम, 1981 भी लागु नहीं होता है। लेकिन इस मामले में कोर्ट ने उनकी अपील ठुकरा दी है। साथ ही यह फैसला दिया है कि पर्यावरण और प्रदूषण से जुड़े मुद्दे पर होटल किसी भी तरह अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को कृष्णागिरि जिले के कलेक्टर द्वारा रिपोर्ट सौंपी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु के कृष्णागिरि जिले में अफ्रीकी कैटफ़िश पालन नहीं किया जा रहा है। यदि भविष्य में इस तरह के मामले सामने आते है तो जिला प्रशासन द्वारा उन्हें नष्ट करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।
एनजीटी में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि अफ्रीकी कैटफ़िश जिसे 'अफ्रीकी मैगुर' भी कहा जाता है, इसे कृष्णागिरी जिले में अवैध तरीके से पाला जा रहा है। इस गतिविधि को जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस गतिविधि में चिकन के कचरे, अंडे के अपशिष्टों को अफ्रीकी कैटफ़िश को खिलाने से दुर्गंध और जल प्रदूषण होता है।
22 अक्टूबर, 2019 के एनजीटी के आदेश के अनुपालन में, जिला प्रशासन ने 5 दिसंबर, 2019 को 9 निरीक्षण टीमों का गठन किया था। जिसमें मत्स्य, पुलिस, ग्रामीण विकास और राजस्व विभागों के अधिकारियों को शामिल किया गया था। टीमों को निर्देश दिया गया था कि निषिद्ध अफ्रीकी कैटफ़िश पालन की पहचान करके इन्हें हाथोंहाथ नष्ट कर दिया जाए।
24 दिसंबर 2019 को कृष्णागिरि जिले के मत्स्य पालन के सहायक निदेशक द्वारा रिपोर्ट के माध्यम से बताया कि 9 निरीक्षण टीमों ने 7 से 23 दिसंबर, 2019 तक पूरे कृष्णागिरि जिले में सभी मछली के तालाबों का निरीक्षण किया। टीमों ने 259 अफ्रीकी कैटफ़िश पालन केंद्रों को प्रतिबंधित किया और जिले के सभी कैटफ़िश भण्डारों को नष्ट कर दिया गया।
रिपोर्ट 25 अगस्त, 2020 को एनजीटी की साइट पर अपलोड की गई।
भोपाल के छोटा तालाब में हो रहे प्रदूषण पर एनजीटी ने तलब की रिपोर्ट जस्टिस श्यो कुमार सिंह की बेंच ने भोपाल के कलेक्टर, नगर निगम और एमपीपीसीबी की एक संयुक्त समिति के लिए निर्देश जारी किया है। इस आदेश में उन्हें छोटा तालाब में हो रहे प्रदूषण के मामले में एक तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। एनजीटी द्वारा यह आदेश 25 अगस्त को जारी किया गया है।
गौरतलब है कि जानकारी मिली थी कि झील में मछलियों को मरने के लिए मिटटी के गोलों में हानिकारक रसायन भरकर डाला गया था। जिसकी वजह से झील का पानी प्रदूषित हो गया था। ऐसा बड़ी मात्रा में मछलियों को मारने और उन्हें खुले बाजार में बेचने के लिए किया गया था।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने प्रिंटिंग प्रेस मशीनों और इसके स्पेयर पार्ट्स से जुडी इकाई को पर्यावरण सम्बन्धी मुआवजे के 25 फीसदी का भुगतान करने का निर्देश दिया है। जोकि मुआवजे की पहली किश्त है। गौरतलब है कि इस पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए इस इकाई पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने 20 लाख का जुर्माना लगाया था।
इसके साथ ही इस यूनिट को एक अंडरटेकिंग देने के लिए भी कहा है जिसमें फिर से प्रदूषण न फैलाने और गैर-अनुरूप क्षेत्रों में निषिद्ध गतिविधि फिर से शुरू न करना का वचन देने के लिए कहा है। इस मुआवजे को तीन महीने के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और डीपीसीसी की एक संयुक्त जांच समिति द्वारा फिर से जांचा जाएगा।
साथ ही यह भी कहा है कि यदि एक महीने के भीतर जुर्माने की राशि और अंडरटेकिंग दाखिल नहीं कराई जाती, तो अगले किसी आदेश की जरुरत नहीं होगी। जबकि यदि मुआवजे के पैमाने को संशोधित किया गया तो पहले का मुआवजा उसी के अनुसार संशोधित किया जाएगा।
गौरतलब है कि 25 अगस्त, 2020 को एनजीटी द्वारा जारी यह आदेश इस यूनिट द्वारा दायर अपील के सन्दर्भ में था। यूनिट ने यह आवेदन डीपीसीसी द्वारा 17 जुलाई को लगाए 20 लाख रूपए के जुर्माने के मामले में लगाया था। जिसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए "पॉल्यूटर पे सिद्धांत" के आधार पर लगाया था।
24 अगस्त, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने टीएनपीसीबी के लिए एक आदेश जारी किया है, जिसमें उसे हानिकारक रसायनों के लिए आपातकालीन योजनाओं को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया है। अपने इस आदेश में एनजीटी ने कहा है कि यह योजनाएं ऑफ-साइट और ऑन-साइट दोनों के लिए होंगी। साथ ही इन योजनाओं के निर्माण में एमएसआईएचसी नियम 1989 का भी ध्यान रखना जरुरी है।
कोर्ट के अनुसार इन योजनाओं का निर्माण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सम्मिलित रूप से किया जाना चाहिए। साथ ही इसमें उन सभी प्राधिकरणों और संस्थाओं को शामिल किया जाना चाहिए जो इन पदार्थों के भंडारण और हैंडलिंग से जुड़े हैं। साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि इस कार्रवाई को जल्द से जल्द एक महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि एनजीटी द्वारा जारी यह आदेश 2015 से चेन्नई के गोदाम में रखे 700 टन अमोनियम नाइट्रेट के मामले पर अदालत में दायर आवेदन के जवाब में आया है।
इस मामले में तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जो रिपोर्ट सबमिट की गई है उसके अनुसार इस गोदाम से 697 टन अमोनियम नाइट्रेट वाले 37 कंटेनरों को मेसर्स साल्वो एक्सप्लोसिव्स एंड केमिकल्स प्राइवेट के पास भेज दिया गया है। जोकि तेलंगाना में एक डेटोनेटर निर्माता है और उसके पास अमोनियम नाइट्रेट के लिए वैध लाइसेंस है। इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि पहले की रिपोर्ट में इसकी मात्रा 740 टन बताई गई थी जोकि वास्तविकता में 697 टन है।