पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: पर्यावरण सम्बन्धी जांच के लिए राज्य में और अधिक प्रयोगशालाओं की है जरुरत

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें
पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: पर्यावरण सम्बन्धी जांच के लिए राज्य में और अधिक प्रयोगशालाओं की है जरुरत
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कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) ने पर्यावरण प्रयोगशालाओं के लिए मान्यता पर एनजीटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। 

कर्नाटक में केवल तीन निजी पर्यावरण प्रयोगशालाएं हैं, जिन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त की है। राज्य में 65,000 से अधिक उद्योग चल रहे हैं और उन्हें जल और वायु अधिनियम के अनुसार पानी, हवा, शोर और मिट्टी के नमूनों की निगरानी की आवश्यकता होती है। इन सीमित मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं से नमूनों का विश्लेषण कर शीघ्र परिणाम प्राप्त करना संभव नहीं है। 

इसके अलावा, उद्योग से दूर स्थित प्रयोगशाला में विश्लेषण के लिए नमूनों को ले जाना व्यावहारिक नहीं है। इस पृष्ठभूमि में केएसपीसीबी के अध्यक्ष ने नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज (एनएबीएल) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं द्वारा  केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त करने के लिए 6 महीने का समय बढ़ाया था। 

इससे उद्योगों को पर्यावरण कानूनों का पालन करने में मदद मिलेगी, जिनका पालन करना अनिवार्य हैं, जिनमें पानी, हवा, ध्वनि और मिट्टी के नमूने का विश्लेषण करना शामिल है। 

रिपोर्ट में एनजीटी से अनुरोध किया गया है कि वह पर्यावरण और जनता के हित में उचित समय में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त करने के लिए एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं को अनुमति दे। 

एनएबीएल विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है। यह परीक्षण और जांच करने वाली प्रयोगशालाओं के लिए गुणवत्ता और तकनीकी क्षमता के तीसरे पक्ष के मूल्यांकन करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। एनएबीएल प्रयोगशालाओं को प्रयोगशाला मान्यता सेवाएं प्रदान करता है जो एनएबीएल मानदंड के अनुसार परीक्षण / जांच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों और दिशानिर्देशों पर आधारित हैं। 

बांका में रेत खनन मामले पर एनजीटी ने दिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश 

एनजीटी ने 14 अक्टूबर को बिहार के बांका में रेत खनन पर एक ताजा जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया है। इस बाबत एनजीटी में दायर एक आवेदन के अनुसार बांका में रेत खनन के मामले पर 2018 में अंतरिम जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) तैयार की गई थी, लेकिन उसे आज तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है| 

इस नई डीएसआर रिपोर्ट को तैयार करने के लिए एनजीटी ने निर्देश दिया है कि इस डीएसआर को राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग या क्वालिटी कंट्रोल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त सलाहकारों के माध्यम से ही तैयार किया जाना चाहिए। 

एनजीटी ने निर्देश दिया है कि इस डीएसआर को जिला मजिस्ट्रेट के पास प्रस्तुत करना होगा, जो डीएसआर का जिले के भौतिक और भौगोलिक विशेषताओं से संबंधित तथ्यों के संबंध में सत्यापन करेंगे। सत्यापन के बाद जिला मजिस्ट्रेट इस रिपोर्ट को जांच के लिए राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (एसईएसी) के पास भेजेंगे| यदि यह रिपोर्ट सभी वैज्ञानिक और तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा करती है तो एसईएसी उसे राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) के पास विचार और अनुमोदन के लिए भेजेंगे| 

साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त सलाहकार या एजेंसी की भी मदद ली जाए| जिसे एसएसएमएमजी 2016 और इएमजीएसएम 2020 के तहत निर्धारित मानकों और प्रक्रियाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए|    

प्लास्टिक अपशिष्ट और ईपीआर के मामले में पर्यावरण मंत्रालय को मिले आम जनता के सुझाव 

पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (पीडब्लूएम नियम), 2016 के तहत उत्पादकों की जिम्मेवारी (ईपीआर) को तय करने से जुड़े फ्रेमवर्क के लिए आम जनता से उनके विचार मांगे थे। इस मामले में विभिन्न संगठनों और लोगों से करीब 160 टिप्पणियां प्राप्त हुई हैं। 

यह टिप्पणियां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, अपशिष्ट प्रबंधन पर काम कर रहे संस्थानों, उद्योग, उद्योग संघों, सामाजिक संगठनों और आम लोगों से प्राप्त हुई हैं। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इन टिप्पणियों का संकलन और समीक्षा की जा रही हैं। बाद में जिसका उपयोग ईपीआर फ्रेमवर्क  को अंतिम रूप देने के लिए किया जाएगा। 

यह जानकारी अवनि मिश्रा बनाम भारत संघ (मूल आवेदन संख्या 29/2020) के मामले में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सबमिट रिपोर्ट में दी गई है। इस रिपोर्ट को 12 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। 

50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले कैरी बैग पर 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने लगाई रोक: रिपोर्ट 

कूड़े और प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के लिए, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जरुरी और उचित कदम  उठाने के लिए कहा है। साथ ही उसके लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित करने का आदेश दिया है। जानकारी मिली है कि 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्लास्टिक की करीब 615 अवैध यूनिट चल रही हैं। 

इस कचरे से निपटने के लिए 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विशेष पर्यावरणीय दस्तों की स्थापना की गई है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक स्थानों,  नालियों, नदियों और समुद्र में प्लास्टिक कचरे की डंपिंग न की जा सके। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सके की प्लास्टिक कचरे को खुले में न जलाया जाए। 

इसके साथ ही यदि प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े नियमों का उल्लंघन हो तो उस मामले में सीपीसीबी द्वारा निर्धारित पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के नियम को लागु किया जाए। जिसे पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ईपीआर फ्रेमवर्क को अंतिम रूप देने के बाद लगाया जा सकता है। 

इस मामले में 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने जो रिपोर्ट सीपीसीबी को सबमिट की है उसमें जानकारी दी है कि उन्होंने 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले कैरी बैग और प्लास्टिक शीट्स के उत्पादन पर रोक लगा दी है। 

सीपीसीबी द्वारा यह रिपोर्ट 12 अक्टूबर एनजीटी के सामने पेश की गई है। 

गोवा में कैनाकोना राष्ट्रीय राजमार्ग बाईपास का मामला 

राष्ट्रीय राजमार्ग -17 पर कैनाकोना राष्ट्रीय राजमार्ग बाईपास बनाने वाले प्रोजेक्ट प्रस्तावक ने उस क्षेत्र में मैन्ग्रोव के वृक्ष लगाए हैं। यह 1 सितंबर, 2019 को इस प्रोजेक्ट के लिए दी गई एनओसी की शर्तों में से एक शर्त थी। 

गोवा कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी (जीसीजेडएमए) ने कहा है कि चूंकि परियोजना का एक भाग कछुओं के घोसलों के 300 से 500 मीटर के दायरे में है। ऐसे में वहां प्रकाश की व्यवस्था करने की अनुमति नहीं दी जा सकती साथ ही इस क्षेत्र में हॉर्न नहीं बजाया जा सकता। इसके साथ ही इस क्षेत्र में मैंग्रोव्स लगाने की भी शर्त रखी गई थी। 

इस मामले में दत्तप्रसाद प्रभु गोनाकर ने आपत्ति की थी। इसलिए उनके सवालों के जवाब में जीसीजेडएमए ने एनजीटी के समक्ष एक हलफनामा दायर कर निम्नलिखित बातों का जवाब दिया है। 

तटीय क्षेत्र से जुड़े नियमों (सीआरजेड) की शर्तों को पूरा ने करने के बावजूद 28 सितंबर, 2015 को इस परियोजना को मंजूरी दी गई थी। जिसमें कैनाकोना राष्ट्रीय राजमार्ग बाईपास के निर्माण को दी गई मंजूरी शामिल थी। इसके साथ ही इसमें तलपोना, गलगिबाग नदी और मैक्सिम क्रीक पर 3 पुलों के निर्माण को दी गई मंजूरी शामिल थी। 

एनओसी में 1 सितंबर, 2017 को रखी गई शर्तों पर अमल नहीं किया गया था। जिसमें मैंग्रोव्स को काटना और माशेम पल पर ध्वनि और प्रकाश को रोकने के लिए अवरोध लगाना शामिल था। इसके साथ ही 30 अप्रैल, 2019 को गल्पीबाग नदी को अस्थायी तौर पर भरने के लिए जो शर्त रखी थी उसका पालन भी नहीं किया गया था। 

इस मामले में जीसीजेडएमए ने एनजीटी के समक्ष जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसमें जानकारी दी है कि यह परियोजना 29 नवंबर, 2019 को पूरी हो गई थी। इसके बाद भी जीसीजेडएमए माशीम पल के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए है। परियोजना के प्रस्तावक ने पुल के निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए वहां से मिट्टी को हटाया था। 

अवैध खनन मामले में 31 जनवरी तक रिपोर्ट प्रस्तुत करे राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: एनजीटी 

एनजीटी ने अवैध विस्फोट और खनन के खिलाफ कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) को 31 जनवरी, 2021 तक का समय दिया है| मामला राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के पुर गांव का है| जहां मेसर्स जिंदल सॉ लिमिटेड द्वारा अवैध विस्फोट और खनन किया गया था| 

इस मामले में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 19 अगस्त, 2019 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें खनन के चलते आसपास की इमारतों में कंपन की बात को स्वीकार किया गया था। साथ ही रिपोर्ट में भवनों और अन्य जगहों पर पड़ने वाले असर की बात को स्वीकार किया था। इस रिपोर्ट में वहां पर 'टेल-टेल्स' (दरारों पर नजर रखने के लिए उपकरण) को लगाने की सलाह दी गई थी। इसके साथ ही खनन क्षेत्र को गांव से पहले ही अलग कर दिया गया है। साथ ही इस बाबत विशेषज्ञों की एक टीम को नियुक्त किया गया है। 

इस मामले में 10 अक्टूबर, 2019 को एनजीटी ने भीलवाड़ा के जिला मजिस्ट्रेट को एक और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। 

1 अक्टूबर 2020 को राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि इस मामले में भीलवाड़ा के जिला अध्यक्ष से एक और रिपोर्ट मिली है, जिसे सीएसआईआर - सीआईएमएफआर, बिलासपुर (सीजी), सीएसआईआर-सीबीआरआई, रुड़की और जल विज्ञान विभाग, आईआईटी, रुड़की द्वारा तैयार किया गया है। 

वर्तमान में, सीएसआईआर-सीबीआरआई, रुड़की की टीम ने 28 सितंबर से गांव पुर के घरों में भू-तकनीकी जांच और दरार की निगरानी का काम फिर से शुरू किया है जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। रिपोर्ट में अनुरोध किया गया कि इस मामले में जारी अंतरिम रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा जाए। साथ ही यह भी कहा है कि वर्तमान में महामारी के चलते अंतिम रिपोर्ट को प्रस्तुत करने करने में देरी हो रही है। 

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