पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: उत्तरप्रदेश में कैसे चल रहा है रेत खनन का गोरखधंधा

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें
पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: उत्तरप्रदेश में कैसे चल रहा है रेत खनन का गोरखधंधा
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यह साबित करने के लिए कि उत्तर प्रदेश में अवैध खनन हो रहा था, आवेदक अजय पांडे ने अतिरिक्त सबूत के रूप में एक हलफनामा कोर्ट में दायर किया है। जिससे यह साबित हो सके कि पंचनाद क्षेत्र में यमुना और उसकी सहायक नदियों से रेत का अवैध खनन किया जा रहा था। अवैध खनन का यह मामला उत्तरप्रदेश के औरैया, जालौन और कानपुर देहात एवं मध्य प्रदेश के भिंड जिले का है।

इसमें जानकारी दी गई है कि मानसून से पहले रेत माफिया रेत के विशाल भंडार को स्टोर करते हैं और फिर जुलाई से अक्टूबर तक उसे देश के विभिन्न राज्यों में बेच देते हैं। उसके बाद जैसे ही यमुना और उसके सहायक नदियों का जल स्तर गिरता है, अवैध खनन का यह सिलसिला उसे रोकने वालों की छत्रछाया में फिर से शुरू हो जाता है। जिसमें उन्हें उन लोगों की मदद भी मिलती है जो इस अवैध खनन को रोकने के लिए जिम्मेदार हैं।

एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आवेदक ने एक घटना का उल्लेख भी किया है, जहां कानपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर औरैया जिले में अनंतराम टोल प्लाजा के पास 13 जून को एक ट्रक को अवैध रेत ले जाते हुए जब्त किया गया था। लेकिन बाद में जब पुलिस उसे हिरासत में लेने के लिए गई तो वह टोल प्लाजा से ही गायब हो गया था।

तटबंध के टूटने में चेक डैम की भूमिका से नहीं किया जा सकता इंकार: समिति रिपोर्ट

सासन पावर लिमिटेड (एसपीएल) की राख डंपिंग साइट के पास बने एक चेक डैम की तटबंध के टूटने में भूमिका है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। यह जानकारी एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) की संयुक्त जांच समिति ने तैयार की है। पूरा मामला सिद्धिखुर्द गांव का है जोकि सिंगरौली की तहसील वैधन, पोस्ट तियारा में स्थित है।

द्वीप 4 पर तटबंध के टूटने का यह मामला 10 अप्रैल, 2020 को हुआ था। यह तब हुआ जब एक पोकलेन तटबंध के शीर्ष को ठीक करने के लिए काम कर रही थी। जोकि नीचे की ओर ढलान पर फिसल गया थी। उस समय इसकी खुदाई करने वाली बाल्टी ने ढलान पर खुद को पकड़ने की कोशिश करते हुए ढलान के एक हिस्से को हटा दिया था। 

आम जनता के फायदे के लिए दी गई पर्यावरण के नियमों में छूट: सरकार

पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी 28 मार्च, 2020 को जारी अधिसूचना के मामले में 6 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी के समक्ष एक हलफनामा दायर किया है। गौरतलब है कि इस अधिसूचना में कुछ गतिविधियों के लिए पहले पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) प्राप्त करने की शर्त में छूट दी गई थी।

गौरतलब है कि इस अधिसूचना को नोबल एम पिकाडा द्वारा अदालत में चुनौती दी गई थी।

इस अधिसूचना से पहले भी पर्यावरण मंत्रालय ने समय-समय पर कुछ कार्यालय ज्ञापन और परिपत्र जारी करके कुछ गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय मंजूरी सम्बन्धी नियम में छूट दी थी। इस अधिसूचना में उन गतिविधियों को स्पष्ट कर दिया था जिसमें पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेने की शर्त को छूट दे दी गई थी।

हलफनामे के अनुसार यह अधिसूचना सार्वजनिक हित में जारी की गई थी और इसका मकसद आम जनता की सहायता करना था । यह अधिसूचना कुम्हारों, किसानों, ग्राम पंचायतों, वंजारा, गुजरात के ओड्स और राज्य सरकार द्वारा घोषित नियमों के तहत सभी गैर-खनन गतिविधियों को सहायता प्रदान करने के लिए जारी की गई थी।

इस अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में पहले भी (सोसाइटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ एन्वायरमेंट एंड बायोडायवर्सिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया / रिट पेटिशन नंबर 631 ऑफ 2020) चुनौती दी गई थी। इस हलफनामे में जानकारी दी गई है कि इस मामले में 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर याचिका को खारिज कर दिया गया था।

बायो मेडिकल वेस्ट के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं यूपी के अस्पताल: कमेटी

उत्तर प्रदेश में बायो मेडिकल कचरे के प्रबंधन पर न्यायमूर्ति एसवीएस राठौर की अध्यक्षता वाली निरीक्षण समिति की एक रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष प्रस्तुत की गई।

रिपोर्ट शैलेश सिंह बनाम शीला अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर और अन्य के मामले में मूल याचिका संख्या 710/2017 में पारित एनजीटी के आदेश के अनुपालन में थी। मामला उत्तर प्रदेश द्वारा जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (बीएमडब्ल्यू नियम, 2016) के प्रावधानों का पालन न करने से संबंधित है।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बीएमडब्ल्यू नियम, 2016 में बीएमडब्ल्यू पर नजर रखने की प्रणाली निर्धारित की गई थी - जिसमें सभी रंगीन बैगों पर बार-कोड लगे होने चाहिए। ट्रकों की आवाजाही पर एक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिए नजर रखी जानी चाहिए। हालांकि लखनऊ में शुरु के छोटे से समय अंतराल में इसका उपयोग हुआ, अब कोई भी ऑपरेटर बार-कोडिंग प्रणाली का उपयोग नहीं कर रहा है। जो उत्पन्न आंकड़ों की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।

स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (एचसीएफ) में बड़े संरचनात्मक कमियां देखी गई हैं। जिसके कारण कई बीएमडब्ल्यू नियमों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं। 100 से अधिक बेड की संचालन क्षमता वाले 530 एचसीएफ में से लगभग 452 एचसीएफ में एसटीपी / ईटीपी नहीं है।

सरकारी सुविधाओं में भी जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) से युक्त 1027 एचसीएफ में से - 564 एचसीएफ में बायो मेडिकल कचरे को एकत्र करने के लिए उचित जगह नहीं है। जहां तक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) का संबंध है, 3620 पीएचसी में से केवल 628 पीएचसी में ही कचरा दबाने के लिए गहरे गड्ढे हैं।

जिला अस्पतालों में ईटीपी निर्माण करने की गति बहुत धीमी थी और इस साल केवल 40 जिला अस्पतालों ने ही ईटीपी का निर्माण किया गया है। 2483 एचसीएफ हैं जिन्होंने बीएमडब्ल्यू नियमों के तहत इजाजत नहीं ली है। इनमें से 441 सरकारी एचसीएफ हैं।

रेडियोधर्मी पदार्थों के निपटान में एक महत्वपूर्ण कमी देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य विभाग को मानक प्रोटोकॉल का विकास करना चाहिए और सभी हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स)  के लिए क्षमता का निर्माण करना चाहिए।

निरीक्षण समिति की रिपोर्ट में हितधारकों में क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया है। अस्पतालों में प्रदूषण एक निरंतर चुनौती है और संक्रमण की प्रकृति और सीमा बदलती रहती है, अभी नई मुसीबत कोविड-19 है। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि क्षमता निर्माण कार्यशालाओं को सभी हितधारकों - डॉक्टरों, पैरामेडिक्स, अन्य अस्पताल कर्मचारियों, प्रयोगशाला कर्मचारियों, रक्त बैंक कर्मचारियों, निजी चिकित्सकों, नर्सिंग होम और एचसीएफ के लिए एक सतत आधार पर आयोजित किया जाना चाहिए।

अवैध खनन मामले में श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के जस्टिस सोनम फिंटसो वांग्दी की पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि ओडिशा के खोरधा में अवैध खदानों को चलाने वाले व्यक्ति के बजाय ट्रकों के ड्राइवरों से पर्यावरणीय मुआवजा कैसे वसूला जा रहा है। इसके अलावा पीठ ने यह भी कहा कि श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन को कानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना तथा पर्यावरण मंजूरी (ईसी) प्राप्त किए बिना खनिज निकालने की अनुमति कैसे दी जा सकती है।

आदेश में कहा गया है कि सरकार द्वारा की गई कवायद गैरकानूनी अपराधियों को बचाने के लिए ट्रिब्यूनल को चकमा देने का प्रयास है और इस मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) मूकदर्शक बना हुआ है। एनजीटी ने संयुक्त समिति को निर्देश दिया कि वह अवैध खनन करने वाले व्यक्तियों की पहचान कर मामले की जांच रिपोर्ट के साथ ही श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन को क्षेत्र में खनन करने की अनुमति देते समय अनिवार्य रूप से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) प्रक्रिया का पालन किया गया था या नहीं, इसकी रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने को कहा गया।

खनन और अन्य पर्यावरणीय कानूनों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का पालन किए बिना रेट होल माइनिंग विधि द्वारा लेटराइट पत्थर के अवैध खनन के बारे में बिदु भूषण हरिचंदन द्वारा एनजीटी में एक याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि ओडिशा के खोरधा जिले में कम से कम 40 अलग-अलग साइटें हैं, जहां इस तरह का खनन चल रहा है, जिसमें 500 एकड़ जमीन शामिल है, जिसमें नजीगढ़ तपंग पंचायत में आने वाले तपंगा, औरा और झिन्कीझारी जैसे गांव शामिल हैं। 

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