पर्यावरण मुकदमों की डायरी: अवैध कार्य को वैध बनाने के लिए नहीं है ट्रिब्यूनल

पर्यावरण से संबंधित मामलों में सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-
पर्यावरण मुकदमों की डायरी: अवैध कार्य को वैध बनाने के लिए नहीं है ट्रिब्यूनल
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पश्चिमी पीठ ने गोवा लेटराइट पत्थर खनन मामले को ट्रिब्यूनल की प्रधान पीठ के पास भेज दिया है। न्यायमूर्ति श्यो कुमार सिंह ने कहा है कि इससे पर्यावरण क्षतिपूर्ति की सही मात्रा को तय करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही यह फैसला संबंधित अधिकारियों को एक निश्चित पैरामीटर अपनाने में भी मदद करेगा।

पूरा मामला गोवा में लेटराइट पत्थर के अवैध खनन से जुड़ा है। इस मामले में अधिकारियों ने पर्यावरण को हुई क्षतिपूर्ति के लिए 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया था। जिसके बारे में दलील दी गई थी कि लेटराइट पत्थर खनन मामले में पर्यावरण क्षतिपूर्ति की गणना करने के लिए कोई निश्चित पैरामीटर नहीं था।

न्यायमूर्ति श्यो कुमार सिंह ने अपने आदेश में कहा है कि यदि बिना क़ानूनी अनुमति के यदि लेटराइट पत्थर का खनन जारी रहता है और बिना क्षतिपूर्ति की गणना के इसी तरह 25,000 का जुर्माना ले लिया जाता है तो यह अप्रत्यक्ष रूप से अवैध कार्य को मंजूरी देने जैसा होगा, जिसे जुर्माना भरने के बाद वैधता दे दी जाए।

एनजीटी ने कहा कि ट्रिब्यूनल अवैध कार्य को वैध बनाने के लिए नहीं है। इसके साथ ही यह पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की गणना करने और उसे वसूल करने का सही तरीका नहीं है। इससे अवैध खनन को रोकने में मदद नहीं मिलेगी।

प्लास्टिक अपशिष्ट और ईपीआर के मामले में पर्यावरण मंत्रालय को मिले आम जनता के सुझाव

पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (पीडब्लूएम नियम), 2016 के तहत उत्पादकों की जिम्मेवारी (ईपीआर) को तय करने से जुड़े फ्रेमवर्क के लिए आम जनता से उनके विचार मांगे थे। इस मामले में विभिन्न संगठनों और लोगों से करीब 160 टिप्पणियां प्राप्त हुई हैं।

यह टिप्पणियां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, अपशिष्ट प्रबंधन पर काम कर रहे संस्थानों, उद्योग, उद्योग संघों, सामाजिक संगठनों और आम लोगों से प्राप्त हुई हैं। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इन टिप्पणियों का संकलन और समीक्षा की जा रही हैं। बाद में जिसका उपयोग ईपीआर फ्रेमवर्क  को अंतिम रूप देने के लिए किया जाएगा।

यह जानकारी अवनि मिश्रा बनाम भारत संघ (मूल आवेदन संख्या 29/2020) के मामले में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सबमिट रिपोर्ट में दी गई है। इस रिपोर्ट को 12 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

गोवा में कैनाकोना राष्ट्रीय राजमार्ग बाईपास का मामला

राष्ट्रीय राजमार्ग -17 पर कैनाकोना राष्ट्रीय राजमार्ग बाईपास बनाने वाले प्रोजेक्ट प्रस्तावक ने उस क्षेत्र में मैन्ग्रोव के वृक्ष लगाए हैं। यह 1 सितंबर, 2019 को इस प्रोजेक्ट के लिए दी गई एनओसी की शर्तों में से एक शर्त थी।

गोवा कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी (जीसीजेडएमए) ने कहा है कि चूंकि परियोजना का एक भाग कछुओं के घोसलों के 300 से 500 मीटर के दायरे में है। ऐसे में वहां प्रकाश की व्यवस्था करने की अनुमति नहीं दी जा सकती साथ ही इस क्षेत्र में हॉर्न नहीं बजाया जा सकता। इसके साथ ही इस क्षेत्र में मैंग्रोव्स लगाने की भी शर्त रखी गई थी।

इस मामले में दत्तप्रसाद प्रभु गोनाकर ने आपत्ति की थी। इसलिए उनके सवालों के जवाब में जीसीजेडएमए ने एनजीटी के समक्ष एक हलफनामा दायर कर निम्नलिखित बातों का जवाब दिया है।

  • तटीय क्षेत्र से जुड़े नियमों (सीआरजेड) की शर्तों को पूरा ने करने के बावजूद 28 सितंबर, 2015 को इस परियोजना को मंजूरी दी गई थी। जिसमें कैनाकोना राष्ट्रीय राजमार्ग बाईपास के निर्माण को दी गई मंजूरी शामिल थी। इसके साथ ही इसमें तलपोना, गलगिबाग नदी और मैक्सिम क्रीक पर 3 पुलों के निर्माण को दी गई मंजूरी शामिल थी।
  • एनओसी में 1 सितंबर, 2017 को रखी गई शर्तों पर अमल नहीं किया गया था। जिसमें मैंग्रोव्स को काटना और माशेम पल पर ध्वनि और प्रकाश को रोकने के लिए अवरोध लगाना शामिल था।
  • इसके साथ ही 30 अप्रैल, 2019 को गल्पीबाग नदी को अस्थायी तौर पर भरने के लिए जो शर्त रखी थी उसका पालन भी नहीं किया गया था।

इस मामले में जीसीजेडएमए ने एनजीटी के समक्ष जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसमें जानकारी दी है कि यह परियोजना 29 नवंबर, 2019 को पूरी हो गई थी। इसके बाद भी जीसीजेडएमए माशीम पल के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए है। परियोजना के प्रस्तावक ने पुल के निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए वहां से मिट्टी को हटाया था।

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