पर्यावरण मुकदमों की डायरी: संत्रगाची झील में प्रदूषण और अतिक्रमण पर अधिकारियों को फटकार

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
पर्यावरण मुकदमों की डायरी: संत्रगाची झील में प्रदूषण और अतिक्रमण पर अधिकारियों को फटकार
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संत्रगाची झील में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, साथ ही उस पर अवैध अतिक्रमण भी जारी है जिसे रोकने में देरी और जरुरी कदम न उठाने के लिए अधिकारियों को जस्टिस सोनम फेंटसो वांग्दी ने कड़ी फटकार लगाई है। इस मामले पर 1 जून, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कोलकाता बेंच (पूर्वी जोन) में सुनवाई की गई थी

यह मामला झील में बढ़ रहे प्लास्टिक, घरेलू कचरे और बिल्डिंग मैटेरियल से हो रहे प्रदूषण से जुड़ा था, जिसके कारण झील लगातार दूषित हो रही है। गौरतलब है कि यह झील हावड़ा में एक प्रमुख पक्षी अभयारण्य भी है। इसके साथ ही यह भी आरोप था कि झील के उत्तरी हिस्से में अवैध अतिक्रमण और निर्माण किया जा रहा था।

एनजीटी ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि ढाई साल पहले इसपर कार्रवाई करने के आदेश दिए गए थे, जिसका अब तक पालन नहीं किया गया है। इसमें सीवेज प्रदूषण को रोकने के लिए एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना था। जिसके लिए जमीन रेलवे को देनी थी, जबकि उसके निर्माण पर जो खर्च आना था, उसे हावड़ा नगर निगम (एचएमसी) और रेलवे द्वारा अपने सीवेज के अनुपात में वहन करना था, इसके साथ ही झील पर किये गए अतिक्रमण को भी हटाने के आदेश दिए गए थे।

कोर्ट को जानकारी दी गई थी कि कार्रवाई में हो रही देरी के लिए एचएमसी और रेलवे के अधिकारी जिम्मेदार हैं। इनकी वजह से ही प्लांट के लिए भूमि का अधिग्रहण नहीं हो सका है। साथ ही लागत के लिए धन भी नहीं मिल पाया है और अतिक्रमण भी जस का तस है, जबकि प्रोजेक्ट के लिए मेसर्स मैकिन्टोश बर्न लिमिटेड जिम्मेदार है।

इसके चलते ट्रिब्यूनल ने 30 दिनों के भीतर निम्नलिखित को रिपोर्ट जमा कराने का आदेश दिया है:

  • द स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल
  • हावड़ा नगर निगम (एचएमसी)
  • मेसर्स मैकिन्टोश बर्न लिमिटेड
  • रेलवे बोर्ड के भूमि और सुविधाएं -1 से जुड़े कार्यकारी निदेशक और
  • कार्यकारी निदेशक, सिविल इंजीनियरिंग / पर्यावरण और हाउसिंग कीपिंग मैनेजमेंट, रेलवे बोर्ड

इस मुक़दमे की अगली सुनवाई 21 जुलाई को की जाएगी।

एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय से मांगा जवाब, पीड़ितों पर क्यों नहीं खर्च की गई 574 करोड़ रुपए की राशि

एनजीटी ने 1 जून 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से 574 करोड़ रुपये की राशि का जवाब मांगा है।

गौरतलब है कि इस राशि को सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम 1991 के तहत विशाखापट्टनम गैस लीक मामले के पीड़ितों पर खर्च की जानी थी। इस राशि को प्रावधानों के तहत एनवायरनमेंट रिलीफ फण्ड मैनेजर पीड़ितों पर खर्च कर सकता है, पर अब तक इस राशि का उपयोग नहीं किया गया है।

आवेदन में कहा गया है कि एनजीटी अधिनियम, 2010 के अंतर्गत पर्यावरण की बहाली और पीड़ितों को मुआवजे के प्रावधानों के तहत उक्त फंड का उपयोग किया जा सकता है।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और श्यो कुमार सिंह ने महसूस किया कि यह जो मुद्दा एक हस्तक्षेप सम्बन्धी आवेदन के रूप में उठाया गया है। उस पर अलग से सुनवाई और कार्यवाही की जा सकती है, इसलिए इस हस्तक्षेप सम्बन्धी आवेदन को एक अलग मूल आवेदन के रूप में पंजीकृत होना चाहिए।

मध्य प्रदेश में रेत खनन का मामला

1 जून को एनजीटी ने रेत खनन नियम 2019 के नियम 26 के उप नियम (2) के संचालन को चुनौती देने वाले आवेदन को खारिज कर दिया है| यह नियम मध्यप्रदेश के खनन सम्बन्धी कार्यों से जुड़ा है| आवेदक ने इस नियम को कोर्ट में चुनौती दी थी जिसके अंतर्गत यदि एक बार किसी प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण मंजूरी और जल एवं वायु सहमति मिल जाती है तो यदि प्रोजेक्ट पूरा करने वाले ठेकेदारों में कोई बदलाव होता है तो उन्हें फिर से तब तक दोबारा मंजूरी लेने की जरुरत नहीं है जब तक उस प्रोजेक्ट में कोई बदलाव या विस्तार न किया जाये| 

आवेदक के वकील के अनुसार सभी वैधानिक मंजूरियों को ट्रांसफ़र करने के लिए नए सिरे से पर्यावरण मंजूरी और सहमति प्राप्त करना जरुरी है।

एनजीटी ने इस आवेदन को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि चूंकि प्रोजेक्ट में किसी तरह का विस्तार नहीं हुआ है न ही उसके क्षेत्र में कोई बदलाव आया है। सिर्फ ठेकेदारों के बदलाव के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की जरुरत नहीं है। लेकिन, यदि खनन के पट्टे की वैधता के दौरान खनन कार्यों में किसी तरह का विस्तार किया जाता है तो उसके लिए फिर से पर्यावरण सम्बन्धी मंजूरी लेना जरुरी होगा| 

त्रिपुरा ने एनजीटी में दायर की जल स्रोतों पर अपनी रिपोर्ट

त्रिपुरा ने एनजीटी में जल स्रोतों पर अपनी रिपोर्ट जमा करा दी है| गौरतलब है कि एनजीटी ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अपने क्षेत्र में मौजूद जल स्रोतों की पहचान, संरक्षण और पुनर्स्थापना करने सम्बन्धी रिपोर्ट मांगी थी|

इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि त्रिपुरा में शहरी क्षेत्रों और सरकारी जमीन पर मौजूद सभी जल स्रोतों की जियो टैगिंग और प्रदूषण के आंकलन के लिए सर्वेक्षण कर लिया गया है| यह इन स्रोतों के मूल्यांकन का पहला चरण है। जिसमें कुल 180 स्रोतों में से 30 को प्राथमिकता दी गई है।

रिपोर्ट के अनुसार इन स्रोतों में प्रदूषण के स्तर (बीओडी) और जल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कार्य योजना तैयार करने की सबसे पहले जरुरत है|  

केरल ने दायर की एनजीटी में जल स्रोतों पर अपनी रिपोर्ट

जल स्त्रोतों पर एनजीटी के आदेश पर केरल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। इससे पहले एनजीटी ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अपने क्षेत्र में मौजूद जल स्रोतों की पहचान, संरक्षण और पुनर्स्थापना करने सम्बन्धी रिपोर्ट मांगी थी। इसी आदेश के अंतर्गत केरल ने अपने राज्य में मौजूद जल स्रोतों की बहाली पर अपनी कार्य योजना' प्रस्तुत कर दी है।

इस रिपोर्ट के अनुसार केरल में 41,036 जल स्रोतों की पहचान की गई है, जिन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मृदा सर्वेक्षण और मृदा संरक्षण विभाग, शहरी मामलों के निदेशालय, पंचायतों और हरिता केरलम मिशन की मदद से संरक्षित किया जा रहा है।

जबकि सिंचाई डिजाइन और अनुसंधान बोर्ड द्वारा करीब 40,000 जल स्रोतों की पहचान की गई है। जिनके लिए विशिष्ट पहचान संख्या चिह्नित की गई है। रिपोर्ट के अनुसार केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) ने जीआईएस की मदद से केरल के सभी 14 जिलों में जल स्रोतों को चिह्नित कर लिया है।

साथ ही इससे जुड़े सभी विभागों की मदद से फील्ड सर्वेक्षण करने की भी योजना बनाई गई है, जिससे यह जांचा जा सके कि उन्हें विभिन्न विभागों द्वारा पहले से कायाकल्प किए गए तालाबों/झीलों में शामिल किया गया है या नहीं।

केएसपीसीबी द्वारा इस फील्ड निरीक्षण दल के गठन का प्रस्ताव अनुमोदन के लिए सरकार को भेजा गया है| इस फील्ड सर्वेक्षण के 31 दिसंबर, 2020 तक पूरा होने का अनुमान है।

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