केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सोन नदी के विभिन्न घाटों पर हो रहे रेत खनन के मामले में अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी है। मामला बिहार के औरंगाबाद और रोहतास जिले का है। जहां मेसर्स आदित्य मल्टीकॉन प्राइवेट लिमिटेड खनन कर रहा था। यह रिपोर्ट 19 फरवरी, 2020 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश पर सबमिट की गई है। जिसे 13 अगस्त 2020 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।
इस मामले में गठित समिति ने सोन नदी पर विभिन्न घाटों का निरीक्षण किया था। समिति ने जिन घाटों का दौरा किया था उनमें में से एक औरंगाबाद जिले का केसो घाट भी था। कई जगहों पर घाटों की सड़कें टूटी और कीचड़ से भरी हुई थीं। खनन साइट पर कोई खंभा या बेंचमार्क भी नहीं देखा गया। जिससे नदी तट के किनारे के वास्तविक विन्यास और रेत खनन के स्थान के बीच की दूरी का पता चल सके। साथ ही बालू खनन से पहले बैंकों के स्तर का पता चल सके।
केसो घाट पर जहां रेत खनन किया जा रहा था, उसके पास अवैध रेत खनन की सूचना मिली थी। घाट पर अवैध रेत खनन के कई निशान भी मिले हैं। जैसे वहां हैवी अर्थ मूविंग मशीनरी के टायरों के निशान दिखाई दे रहे थे। साथ ही सोन नदी के घाट पर अवैध खनन के लिए एक कच्चा फुटपाथ भी बनाया गया था। जिससे मशीनरी को लाया जा सके।
रिपोर्ट के अनुसार बारिश और नदी के पानी के कारण कई स्थानों पर कच्ची पगडंडी टूट गई थी जो पुल के लिए खतरनाक है। टीम ने पाया कि औरंगाबाद और रोहतास को जोड़ने वाले सोन पुल के नीचे कुछ जगह पर जहां पानी का स्तर कम था। वहां पुल के खंभों के नीचे और आसपास भी रेत का खनन किया गया था। यह सीधे तौर पर बिहार मिनरल्स रूल्स, 2019 का उल्लंघन था।
10 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण के मामले में पंजाब सरकार के लिए एक आदेश जारी किया है। जिसमें बायोमास परियोजनाओं पर उसकी रिपोर्ट मांगी है। साथ ही कोर्ट ने पूछा है जहां पर बड़ी मात्रा में पराली जलाई जा रही हैं उनसे इन परियोजनाओं के बीच की दूरी कितनी है।
यह आदेश राज्य द्वारा दायर एक हलफनामे के मद्देनजर आया है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से इस बाबत रिपोर्ट के रूप में स्पष्टीकरण मांगा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख सवाल निम्नलिखित हैं: