नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए एक आदेश जारी किया है| इस आदेश में यह निर्देश दिया गया है कि वह अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाए| मामला पर्यावरण मंजूरी और उसकी निगरानी से जुड़ा है| कोर्ट ने इस निर्देश में मंत्रालय से सतत विकास और जनता के भरोसे से जुड़े सिद्धांतों को ध्यान में रखने की सलाह दी है|
पूरा मामला पर्यावरण संरक्षण (अधिनियम), 1986 के तहत पर्यावरण मंजूरी (ईसी) की शर्तों के अनुपालन से जुड़ा है| जिसके प्रभावी निगरानी तंत्र के लिए उठाए जाने वाले कदमों को 14 सितंबर, 2006 में एक अधिसूचना के जरिए स्पष्ट किया गया था| कोर्ट ने कहा है किसी भी प्रोजेक्ट के एसेस्समेंट के आधार पर पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है| जब तक की उसके पूरा हो जाने तक उसकी निगरानी नहीं की जाती और जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है|
कोर्ट ने कहा है कि निगरानी तंत्र को प्रभावी बनाने के लिए केवल बार-बार प्रस्ताव रखना ही काफी नहीं है इसके लिए जमीन पर भी प्रभावी कदम उठाने जरुरी है| इसके बिना किए जा रहे कामों को संतोषजनक नहीं माना जा सकता|
बैंगलोर विकास प्राधिकरण (बीडीए) और लघु सिंचाई विभाग द्वारा एनजीटी के समक्ष एक हलफनामा दायर किया है| जिसमें उसने बेलंदूर और वरथुर झील पर हो रहे अतिक्रमण और गाद को हटाने के लिए उठाए जा रहे क़दमों का उल्लेख किया है|
यह रिपोर्ट कोर्ट द्वारा 18 दिसंबर, 2019 को जारी आदेश से जुडी है| इस आदेश में कोर्ट ने निर्देश दिया था कि:
रिपोर्ट में कोर्ट को सूचित किया है कि इन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार के विभिन्न विभागों को आदेश जारी कर दिए गए हैं और यह कार्य विकास के विभिन्न चरणों में हैं| उसमें बताया गया है कि 228 स्लम वासियों में से, 128 को कर्नाटक स्लम डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा हटा दिया गया है| उनके लिए कर्नाटक स्लम डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा निर्मित फ्लैटों को आबंटित किया गया है। शेष 100 झुग्गियों को कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम राहत के बाद खाली करा लिया जाएगा।
इसी तरह, बीडीए ने 464 एकड़ भूमि को छोड़कर बाकि बेलंदूर झील पर बाड़ लगाने का काम पूरा कर लिया है। 23 मार्च, 2020 से बेलंदूर और वरथुर झील से गाद निकालने का काम शुरू हो गया है। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि मिट्टी के नमूनों के विश्लेषण पर डिसिल्टिंग कार्य का दायरा निर्भर है। ये नमूने केएसपीसीबी द्वारा परीक्षण किए जाने की प्रक्रिया में हैं| जिनके निष्कर्षों के आधार पर निकाले गए गाद के निपटान का प्रोटोकॉल तय किया जाएगा।
बीडीए ने एनजीटी मॉनिटरिंग समिति को वेटलैंड्स और बायोडायवर्सिटी पार्कों के विकास का प्रस्ताव भी सौंप दिया है।
प्रियंका मॉडर्न सीनियर सेकेंडरी स्कूल ने एनजीटी के समक्ष एक हलफ़नामा दायर किया है| जो उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा दायर निरीक्षण रिपोर्ट के जवाब में है| इस हलफनामे के अनुसार बिजनौर में मेसर्स धामपुर शुगर मिल्स ने प्रदूषण को रोकने के लिए कोई स्थायी दीवार नहीं बनाई है, जो धूल को स्कूल की ओर जाने से रोक सके| इस प्रदूषण के कारण बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है| इसके साथ ही धूल को रोकने के लिए कोई छिड़काव भी नहीं किया गया है|
साथ ही प्रदूषण को रोकने के लिए उद्योग द्वारा कोई ग्रीन बेल्ट भी नहीं बनाई है| डिस्टलरी यूनिट के बॉयलर में हुई दुर्घटना के मामले में भी उद्योग द्वारा कोई सुरक्षा उपाय नहीं किए गए थे। मामला उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में मेसर्स धामपुर शुगर मिल से जुड़ा है| जिसकी डिस्टलरी यूनिट और उसके बॉयलरों के संचालन के खिलाफ शिकायत की गई थी| शिकायत में कहा गया था कि बॉयलरों के कारण आसपास का वातावरण प्रदूषित हो रहा है जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है|
शिकायत के अनुसार यूपीपीसीबी ने जो रिपोर्ट सबमिट की है उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि स्कूल डिस्टिलरी यूनिट से केवल 100 मीटर की दूरी पर है| साथ ही बॉयलर की 84 मीटर ऊंची चिमनी संस्थान से केवल 135 मीटर की दूरी पर है|
जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि कोई भी दुर्घटना घटती है तो उसका खामियाजा स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भुगतना पड़ेगा| बिजनौर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा की गई जांच के अनुसार इस मिल से हो रहे प्रदूषण का असर ने केवल स्कूल के बच्चों बल्कि आसपास रहने वाले लोगों पर भी पड़ रहा है|
एनजीटी के समक्ष दायर अपने हलफनामे में प्रियंका स्कूल ने अनुरोध किया है कि अदालत यूपीपीसीबी को मेसर्स धामपुर चीनी मिल (डिस्टलरी यूनिट) के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दे| साथ ही उद्योग को निर्देश दे कि वह अपनी बॉयलर यूनिट को परिसर में किसी और स्थान पर स्थानांतरित करे।