नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर गठित संयुक्त समिति भूजल, सतह और तटीय जल के नमूनों के विश्लेषण से इस नतीजे पर पहुंची है कि दहेज औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक अपशिष्ट जल का उपचार और प्रबंधन ठीक से नहीं हो रहा है।
गौरतलब है कि इस संयुक्त समिति का गठन एनजीटी ने यह जांचने के लिए किया था कि क्या गुजरात इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (जीआईडीसी) और दहेज औद्योगिक क्षेत्र में मौजूद अन्य उद्योग अपने वेस्ट वाटर का प्रबंधन और उपचार ठीक से कर रहे हैं।
समिति ने जांच में पाया कि पानी के तीनों तरह के नमूने फेनोलिक और अन्य कार्बनिक पदार्थों के कारण प्रदूषित थे। जो दर्शाता है कि इस क्षेत्र के उद्योगों द्वारा अपशिष्ट निर्वहन को लेकर जो मानक और नियम तय है उनका पालन ठीक से नहीं किया जा रहा है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि जहां इस वेस्ट वाटर निपटान का अंतिम पॉइंट हैं वहां निर्वहन मानकों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके साथ ही अंतिम पंपिंग स्टेशन पर भारी कीचड़ का जमा होना और जीआईडीसी जल निकासी लाइनों में चोकिंग / रिसाव की समस्याओं के कारण मैनहोल में जरुरत से ज्यादा प्रवाह भी एक बड़ी समस्या है।
इतना ही नहीं मैनहोल और पंपिंग स्टेशनों से अपशिष्ट जल का लगातार बहना और दूषित पानी का बहाव भी प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। साथ ही उद्योगों से निकलने वाला दूषित जल, वर्षा और सतह पर पानी के निकासी के लिए बनाई नालियों के रास्ते से बह रहा है। यह नालियां इस अपशिष्ट जल को नर्मदा के मुहाने के साथ-साथ समुद्र तक ले जा रही हैं।
10 जून, 2022 को जारी इस संयुक्त समिति रिपोर्ट का कहना है कि वेस्ट वाटर के गैर-जिम्मेदाराना तरीके से किए जा रहे प्रबंधन के चलते दहेज औद्योगिक क्षेत्र में मिट्टी और भूजल दूषित हो सकता है।
रानीपेट, तमिलनाडु में क्रोमियम प्रदूषण रोकने के लिए जरुरी फण्ड की कमी: तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) ने रानीपेट, तमिलनाडु में क्रोमियम प्रदूषण के उपचार में फण्ड की कमी को बाधा बताया है। बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में जो रिपोर्ट सबमिट की है उसमें जानकारी दी है कि तमिलनाडु क्रोमेट्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (टीसीसीएल) साइट को प्रदूषण मुक्त करने के लिए समय-समय पर कई प्रयास किए गए हैं। लेकिन इस तरह के प्रस्तावों की लागत अधिक होने के कारण फंडिंग स्रोत की पहचान नहीं की जा सकी है।
रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी है कि इस बीच प्रदूषण एक बड़े क्षेत्र में फैल रहा है। ऐसे में टीएनपीसीबी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा अनुमोदित अंतरिम उपाय के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है। हालांकि रिपोर्ट में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इस समस्या का स्थाई हल होने और इसके लिए फंडिंग स्रोत की पहचान तक यह केवल एक एक अस्थायी व्यवस्था है।
गौरतलब है कि 17 मई, 2022 को एनजीटी ने एसपीसीबी को मैसर्स तमिलनाडु क्रोमेट्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (टीसीसीएल), रानीपेट में क्रोमियम प्रदूषित साइटों की बहाली के लिए क्या उपचार किए जा सकते है उसके विषय में एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।
टीसीसीएल की यह साइट 1975 से 1995 के बीच चल रही थी। जहां कच्चे माल के रूप में मुख्य रूप से क्रोमेट अयस्क का उपयोग करके सोडियम बायोक्रोमेट, बेसिक क्रोमियम सल्फेट और सोडियम सल्फेट जैसे उत्पादों का निर्माण किया जा रहा था।
इस प्रक्रिया के दौरान करीब 2.2 लाख टन क्रोमियम युक्त खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न हुआ था जिसे परिसर के पिछवाड़े 3 से 5 मीटर की अलग-अलग ऊंचाई में 2 हेक्टेयर क्षेत्र में ऐसे ही खुले में छोड़ दिया गया था। जानकारी मिली है कि इस हानिकारक कचरे के भण्डारण से जो जल रिसाव हो रहा है वो इस क्षेत्र में जमीन और भूजल में क्रोमियम प्रदूषण का कारण बन रहा है।