प्रतिबंधित श्रेणी की मछलियों का नहीं किया जाना चाहिए संवर्धन और विकास: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
प्रतिबंधित श्रेणी की मछलियों का नहीं किया जाना चाहिए संवर्धन और विकास: एनजीटी
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मत्स्य विभाग को यह देखने का निर्देश दिया है कि जयपुर में प्रतिबंधित श्रेणी की मछलियों का संवर्धन और विकास नहीं किया जा रहा है। मामला राजस्थान में जयपुर की चाकसू तहसील के चांदलाई गांव का है।

साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि वहां मछलियों को पकड़ने के लिए प्रतिबंधित जाल का प्रयोग किया जा रहा है, तो उसपर कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। गौरतलब है कि अदालत चंदन शर्मा द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।

उनका आरोप था कि मछली ठेकेदार विदेशी कैटफिश - थाई मागुर की निषिद्ध प्रजाति का प्रजनन और रखरखाव कर रहा था। जो जलीय पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक है क्योंकि यह पानी में पूरी जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। जहां इसके प्रजनन या रखरखाव की अनुमति है।

आवेदक के मुताबिक ठेकेदार तालाब के किनारे मरी हुई मछलियों को डाल रहा था जो तालाब के पानी को भी दूषित कर रहा है। उनका कहना है कि ठेकेदार मछली के प्रतिबंधित जाल 'चेट्टी' का भी उपयोग कर रहा है, जो राजस्थान मत्स्य अधिनियम, 1953 के प्रावधानों के तहत प्रतिबंधित है।

एक हेक्टेयर के पट्टे पर सात हेक्टेयर में किया जा रहा था खनन, जांच के लिए समिति गठित

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 24 मई 2023 को मां दुर्गा स्टोन क्रशर द्वारा किए जा रहे अवैध खनन के खिलाफ जांच के लिए आदेश जारी कर दिए हैं। मामला राजस्थान के चूरू में चडवास गांव का है। जहां एक हेक्टेयर में खनन के लिए पट्टा दिया गया था, लेकिन खनन मालिक अवैध रूप से सात हेक्टेयर क्षेत्र में खनन कर रहा है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी ने जांच के लिए संयुक्त समिति के गठन के निर्देश दिए हैं। इस समिति में चूरू के जिला मजिस्ट्रेट, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला वन अधिकारी शामिल होंगे। वे सभी इस साइट का दौरा करेंगे और साथ ही पर्यावरण को हुए नुकसान का आकलन करने के साथ मामले से जुड़ी प्रासंगिक जानकारी एकत्र करेंगे। कोर्ट ने समिति को जांच के बाद, यदि कोई कार्रवाई की गई है तो उस पर अगले दो महीनों के भीतर रिपोर्ट मांगी है।

आरोप है कि वहां एक हेक्टेयर से कुछ अधिक क्षेत्र में खनन के लिए पट्टा दिया गया था, लेकिन खनन गतिविधियां करीब सात हेक्टेयर क्षेत्र में फैल गई हैं। अधिकारियों से कई बार शिकायत करने के बावजूद इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला यह अवैध खनन का कारोबार अभी भी जारी है।

मामले में आवेदक, कुलदीप सिंह राठौड़ ने दावा किया है कि इस विचाराधीन क्षेत्र से दो लाख मीट्रिक टन से ज्यादा खनिज का अवैध खनन किया गया है।

जयपुर में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के मामले में एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

जयपुर में तारकोल संयंत्र द्वारा सरकारी भूमि पर किए अतिक्रमण की जांच के लिए एनजीटी ने संयुक्त समिति को निर्देश दिए हैं। मामला राजस्थान में जयपुर के पटवार मंडल के रामपुरा का है। कोर्ट ने समिति को अगले दो महीनों के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा है।

इस बारे में एनजीटी में दायर आवेदन में कहा है कि रामपुरा में जो भूमि राजस्व रिकॉर्ड में गैर-मुमकिन नाला के रूप में दर्ज है, उस पर तारकोल संयंत्र द्वारा अतिक्रमण किया गया है। यह संयंत्र भारी मात्रा में दूषित गैसों और धुंए का उत्सर्जन भी कर रहा है। जो इस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता और स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है।

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