नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच ने हुगली नदी सुरक्षा मामले पर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दायर रिपोर्ट पर असंतोष व्यक्त करते हुए उसे अस्पष्ट बताया है। इस बारे में 18 जनवरी 2024 को दिए अपने आदेश में एनजीटी ने कहा है कि इस रिपोर्ट में जानबूझकर या अनजाने में तथ्यों में भारी चूक हुई है।
गौरतलब है कि यह रिपोर्ट हुगली नदी सुरक्षा को लेकर उठाए कदमों के बारे में है। कोर्ट के अनुसार इस रिपोर्ट में हुगली नदी के किनारे स्थित अन्य जिला मजिस्ट्रेटों, नगर निगमों/नगर पालिकाओं या ग्राम पंचायतों की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया है।
ऐसे में कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव की ओर से नया हलफनामा दाखिल करने के लिए राज्य के कानूनी प्रतिनिधि को चार सप्ताह का समय दिया है। इसके साथ ही अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो भी रिपोर्ट या हलफनामा दाखिल किया जाए वो पूर्ण हो और उसमें सभी आवश्यक तथ्यात्मक जानकारी शामिल हो।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां 162.83 एमएलडी सीवेज पैदा हो रहा है और वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में छह सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) हैं। इसके साथ ही हुगली-चिनसुराह में एक एसटीपी निर्माणाधीन है, और दो अन्य जगह बनाए जा रहे हैं। हालांकि इन एसटीपी की कुल क्षमता कितनी है इसका जिक्र इस रिपोर्ट में नहीं किया गया है।
इसकी वजह से यह नहीं कहा जा सकता कि वहां पैदा हो रहे और निपटाए जा रहे सीवेज के बीच कितना अंतर मौजूद है। इसी तरह सेप्टेज प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई है कि मौजूदा एसटीपी में सेप्टेज का नियमित रूप से सह-उपचार किया जा रहा है और उत्तरपाड़ा, भद्रेश्वर और बांसबेरिया में तीन नए फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट्स प्रस्तावित किए गए हैं। हालांकि रिपोर्ट में फीकल स्लज के उपचार की वर्तमान स्थिति का उल्लेख नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि इस बारे में मूल आवेदन सुप्रोवा प्रसाद द्वारा दायर किया गया था, जिसमें उन्होंने हुगली नदी के किनारे कई घाटों पर व्यापक प्रदूषण को उजागर करते हुए शिकायत दर्ज की थी। इन घाटों में अहिरीटोला, निमतला, मेयर, सुतानुति, कुमोर्तुली और कोसिपोर घाट शामिल हैं। इस बारे में सबूत के तौर पर तस्वीरें दाखिल की गई हैं जो घाटों के किनारे फैली गंदगी की मात्रा को दर्शाती हैं।
उत्तर प्रदेश के 26 जिलों ने एनजीटी को सौंपी अपनी जिला गंगा समिति रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के 26 जिलों ने अपनी जिला गंगा समिति रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है। यह रिपोर्ट एनजीटी द्वारा 24 नवंबर, 2023 और चार दिसंबर, 2023 को दिए आदेशों पर सबमिट की गई है। रिपोर्ट दाखिल करने वाले इन जिलों में हरदोई, सीतापुर, श्रावस्ती, संत कबीर नगर, रामपुर, मथुरा, मैनपुरी, कानपुर देहात और जालौन आदि शामिल हैं।
हरदोई की जिला गंगा समिति रिपोर्ट में कहा गया है कि कई नालों में बीओडी, सीओडी, टीएसएस, टीडीएस, भारी धातु और नाइट्रेट जैसे विभिन्न मापदंडों का विश्लेषण नहीं किया गया है। हरदोई, शाहाबाद, बिलग्राम, सांडी और पाली जैसी नगर पालिका परिषदों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं। वहीं बिलग्राम में सीवेज को बिना उपचार के सीधे गंगा में छोड़ दिया जाता है, जिससे उपचार में 100 फीसदी का अंतर आ जाता है।
वहीं जब एनपीपी हरदोई में होटल/आश्रम/धर्मशालाओं की बात आती है तो स्थापना और संचालन के लिए कोई सहमति नहीं ली गई है और कोई एसटीपी स्थापित नहीं किया गया है। वहीं 12 होटलों के डिस्चार्ज प्वाइंट सड़क किनारे बनी नालियां हैं।
पश्चिम बंगाल नहर प्रदूषण मामले में एनजीटी ने नोटिस जारी करने के दिए निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उस शिकायत को गंभीरता से लिया है, जिसमें अधिकारियों पर केस्टोपुर और बागजोला नहरों की सफाई के लिए कार्रवाई न करने का आरोप लगाया गया था। मामला पश्चिम बंगाल की दक्षिण दम दम नगर पालिका से जुड़ा है।
आवेदक का कहना है कि इन नहरों में बड़ी मात्रा में ठोस कचरा डाला जा रहा है और कई पाइपलाइन और खुली नालियां इनमें लगातार गंदा पानी छोड़ रही हैं।
इस मामले में 18 जनवरी 2024 को एनजीटी ने पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, शहरी विकास और नगरपालिका मामलों के विभाग के साथ-साथ दक्षिण दम दम नगर पालिका जैसी संस्थाओं को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। इन सभी को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है।