नियमों को तोड़ कर भोज वेटलैंड और उसके आसपास नहीं होना चाहिए निर्माण: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
नियमों को तोड़ कर भोज वेटलैंड और उसके आसपास नहीं होना चाहिए निर्माण: एनजीटी
Published on

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मध्य प्रदेश के पर्यावरण सचिव को कहा है कि भोज वेटलैंड के आसपास कोई ऐसी गतिविधि नहीं होने चाहिए जो प्रतिबंधित है। मामला वेटलैंड के आसपास स्थाई और अस्थाई निर्माण से जुड़ा है। कोर्ट ने सचिव को वेटलैंड (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम, 2017 को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

एनजीटी को शिकायत मिली थी कि भोपाल नगर निगम, भोज वेटलैंड के चारों ओर स्थाई एवं अर्द्धस्थाई निर्माण के लिए अनुमति दे रहा है, जो वेटलैंड (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत प्रतिबंधित है।

जानकारी मिली है कि यह झील अब खतरे में है। वहां लगातार निर्माण का आरोप लगा है। साथ ही पेड़ों के काटने के साथ स्थाई रूप से खम्बों को लगाने के लिए गहराई तक खोदा गया है जो पर्यावरण नियमों के साथ-साथ रामसर कन्वेंशन का भी उल्लंघन है।

एनजीटी की सेंट्रल जोनल बेंच का कहना है कि आवेदन में जिन गतिविधियों की बात कही गई है, वे वेटलैंड नियम, 2017 के प्रावधानों के पूरी तरह खिलाफ हैं और सक्षम प्राधिकारी से बिना किसी अनुमति के किए गए हैं जो मध्य प्रदेश पर्यावरण विभाग द्वारा 16 मार्च, 2022 को जारी आदेश के खिलाफ भी हैं।

ऐसे में न्यायालय ने अपने निर्देश में कहा है कि क्षेत्र के भीतर पर्यावरण नियमों को तोड़ कर सरकार द्वारा 16 मार्च, 2022 को दिए आदेश में निहित प्रावधानों के विरुद्ध किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

इस मामले में गठित समिति ने कोर्ट को अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि वहां करीब 22 जगह पर खम्बे खड़े करने के लिए संरचना तैयार की है, उनमें से कुछ को जमीनी से ऊपर उठाया गया है।

समिति ने परियोजना स्थल पर पौधों/पेड़ों को काट-छांट के लिए प्राधिकरण से अनुमति नहीं ली थी। साथ ही वहां होने वाली ऐसी गतिविधियों जिनसे साइट के ढलान पर असर पड़ता है न ही उनके लिए अनुमति ली थी। पता चला है कि यह गतिविधियां मध्य प्रदेश के पर्यटन विभाग/निगम द्वारा की गई थी। ऐसे में एनजीटी ने पर्यटन विभाग और मध्य प्रदेश से की गई कार्रवाई का हवाला देते हुए जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

पर्यावरण अनुकूल और किफायती तरीके से है फ्लाई ऐश के निपटान की जरूरत: एनजीटी

एनजीटी का कहना है कि मध्य प्रदेश में फ्लाई ऐश के उपयोग और निपटान को बढ़ाने की तत्काल जरूरत है। इस मामले में सेंट्रल बेंच का कहना है कि राज्य सरकार को इस मामले में जिम्मेवारी तय करनी चाहिए और क्षेत्र के सभी बिजली संयंत्रों से पूछना चाहिए कि वे इस मुद्दे को कैसे हल करेंगे।

कोर्ट का सुझाव है रेलवे वैगनों में गीली फ्लाई ऐश को ले जाया जाना चाहिए। मामला मध्यप्रदेश पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (एमपीपीजीसीएल) के अमरकंटक थर्मल पावर स्टेशन में चचाई राख के तालाब में ऐश डाइक के टूटने से जुड़ा है।

मामला मध्य प्रदेश के अनूपपुर का है। ऐश डाइक टूटने की यह घटना 11 फरवरी, 2022 की सुबह को हुई थी। इस मामले में एनजीटी ने 21 मार्च 2023 को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) को ऐश बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्देश दिया है।

साथ ही कोर्ट का कहना है कि अमरकंटक थर्मल पावर स्टेशन में राख के तालाब से टैंकी नाले में अपशिष्ट जल और पानी के रिसाव को रोकना चाहिए। गौरतलब है कि सोन नदी में इस दूषित पानी को मिलने से रोकने के लिए कोर्ट ने प्लांट को टैंकी नाले पर बड़े आकार के एक स्थाई कंक्रीट चेक डैम बनाने के लिए भी कहा गया है।

साथ ही उद्योग को अगले तीन साल तक ऐश का उपयोग कैसे किया जाएगा, इसके लिए कार्य योजना प्रस्तुत करने और फ्लाई ऐश के परिवहन के लिए स्वचालित कवरिंग सिस्टम वाले वाहनों का उपयोग करने के लिए भी कहा गया है।

साथ ही एनजीटी ने उद्योग से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और संबंधित लागत को राजस्व विभाग द्वारा निर्धारित और घोषित अन्य मुआवजे के साथ जिला कलेक्टर के पास जमा करने के लिए भी कहा है। 

सांभर झील संरक्षण मामले में समिति ने कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट

राजस्थान सरकार को सांभर झील क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होते अतिक्रमण से निपटने के लिए आवश्यक मशीनरी और जनशक्ति के साथ जिला प्रशासन को मजबूत करने की आवश्यकता है। यह बात 7 दिसंबर, 2022 को एनजीटी के आदेश पर गठित संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही है। इसके अलावा, सांभर झील प्रबंधन एजेंसी को वेटलैंड क्षेत्र में बोरवेल की खुदाई को रोकने के लिए सीमाओं पर नाइट विजन के साथ 'पैन-टिल्ट-जूम कैमरा' लगाना चाहिए।

साथ ही समिति ने उद्योग विभाग और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को मिलकर क्षेत्र में नमक रिफाइनरियों और नमक उत्पादकों को विनियमित करने की बात कही है।

रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि नगर परिषद, नवा को सांभर झील में जल निकासी को रोकने के साथ उसके उपचार की बात भी कही है। इसके अलावा राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कचरे के निपटान को ट्रैक करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने के विकल्पों का पता लगा सकता है।

संयुक्त समिति ने राजस्व विभाग को सांभर साल्ट्स लिमिटेड के साथ मिलकर सांभर झील की सीमाओं का नक्शा तैयार करने और उसे डिजिटाइज कर भूमि विवादों के निपटारे में तेजी लाने की बात कही है।

समिति ने कहा है कि राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) को एनओसी के बिना भूजल का दोहन करने वाली नमक रिफाइनरियों पर पर्यावरणीय मुआवजे का आकलन करने को कहा है। यह रिपोर्ट 22 मार्च, 2023 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड की गई है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in