नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पुरी नगर पालिका को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस हलफनामे से यह साबित होना चाहिए कि नगर पालिका ने केंद्रीय भूजल बोर्ड की सिफारिशों का पालन किया है। साथ ही पुरी के तहसीलदार ने बलियापांडा डंपसाइट के पास रहने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए क्या कार्रवाई की है, इसकी भी जानकारी मांगी गई है।
गौरतलब है कि भूजल में हानिकारक पदार्थों के रिसाव के चलते डंप साइट के आसपास रहने वाले लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। कोर्ट ने नगर पालिका को यह हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। इस मामले में आगे सुनवाई 10 मई, 2024 को की जाएगी।
इस बाबत दो जनवरी, 2024 को पुरी नगर पालिका ने एक हलफनामे दायर किया था। इस हलफनामे में राज्य अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि 3,000 परिवार बलियापांडा डंपिंग साइट के आसपास सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर रह रहे हैं।
इस मामले में 18 मार्च 2024 को एनजीटी की पूर्वी बेंच ने कहा था कि केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट बेहद चिंताजनक स्थिति को दर्शाती है। रिपोर्ट के अनुसार हरचंदीशाही से भूजल के दो नमूने लिए गए थे, इनके मुताबिक वहां प्रदूषकों की मात्रा 65.89 पीपीबी है। वहीं गौडाबादसाही में बंगाली कॉलोनी पार्क के भूजल के नमूनों में यह मात्रा 12.02 पीपीबी रिकॉर्ड की गई। यह स्तर पीने के पानी की गुणवत्ता के लिए अधिकतम तय सीमा यानी 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है।
यह भी उल्लेख किया गया है कि पुरी के बलियापांडा में डंप साइट के पास बोरवेल, हैंडपंप और डगवेल से भूजल के 29 नमूने लिए गए थे। इनमें से 16 नमूनों में नाइट्रेट का स्तर बेहद ज्यादा था। वहीं सात नमूने पॉलीन्यूक्लियर एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन से दूषित थे।
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने आशंका जताई है कि इस डंप साइट से नाइट्रेट और पॉलीन्यूक्लियर एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन का रिसाव हो रहा है, जिससे आसपास का भूजल दूषित हो सकता है। ऐसे में बोर्ड ने डंपिंग साइट से निकलते लीचेट को भूजल में मिलने से रोकने के लिए डंपिंग साइट के नीचे और चारों ओर विशेष परतें बनाने की सिफारिश की है। ताकि इस साइट से निकलने वाले प्रदूषित पदार्थों को भूजल में मिलने से रोका जा सके।
अदालत का कहना है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड की सिफारिशों का पालन किया है या नहीं इसका जिक्र पुरी नगर पालिका ने अपने दो जनवरी 2024 को दायर हलफनामे में संबोधित नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया मदुरै में 3,009.84 एकड़ भूमि का विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि वाडीपट्टी गांव में 3,009.84 एकड़ भूमि, जो सिरुमलाई पहाड़ियों का हिस्सा है, अगला आदेश पारित होने तक आरक्षित वन के रूप में बनी रहनी चाहिए। साथ ही, अदालत ने तमिलनाडु सरकार को इस जमीन पर किसी भी तरह के अवैध कब्जे को रोकने की स्वतंत्रता दी है।
इस मामले में अरुल्मिगु मीनाक्षी सुंदरेश्वर देवस्थानम नामक धार्मिक संस्था ने याचिका दायर कर कहा था कि मदुरै में यह जमीन अरुल्मिगु मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर को समर्थन दी गई थी। हालांकि, तमिलनाडु संपदा उन्मूलन अधिनियम 28/1948 पारित होने के बाद, सरकार ने इस भूमि का बिना मूल्यांकन किए इसे बंजर जमीन के रूप में घोषित कर अपने नियंत्रण में ले लिया।
आवेदक का दावा है कि तमिलनाडु सरकार के पास 1948 के अधिनियम 26 के तहत इनाम भूमि को बिना मूल्यांकित किए बंजर भूमि में वर्गीकृत करने का अधिकार नहीं है। उनका यह भी तर्क है कि सरकार इस जमीन को आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में नामित नहीं कर सकती और न ही उसके पास वन विभाग को भूमि का कब्जा सौंपने का कोई अधिकार है।
गौरतलब है कि 12 मार्च 2008 को, मदुरै में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश ने तमिलनाडु सरकार को आवेदक को जमीन देने का आदेश दिया था। लेकिन राज्य द्वारा अपील करने के बाद, मद्रास उच्च न्यायालय ने तीन अप्रैल, 2023 में इस फैसले को पलट दिया और मामले को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय राज्य सरकार द्वारा 1977 में भूमि को आरक्षित वन घोषित करने से सहमत था।
उच्चतम न्यायालय ने अब जवाब के लिए छह सप्ताह की समय सीमा के साथ नोटिस भेजने का निर्देश दिया है।
मवेशियों/गौशालाओं के मामले में एनजीटी ने बिधाननगर नगर निगम से मांगा हलफनामा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बिधाननगर नगर निगम को मवेशियों/गौशालाओं के शेड को हटाने के संबंध में की गई कार्रवाई का ब्योरा देने वाला हलफनामा दाखिल करने को कहा है। इसके लिए 19 मार्च तक का समय दिया है।
आदेश में कहा गया है कि हलफनामे में यह बताना होगा कि शुरुआत में बिधाननगर नगरपालिका क्षेत्र में पशु शेड बनाने की अनुमति क्यों दी गई और नगर निगम ने पहले उन्हें हटाने की कार्रवाई क्यों नहीं की।