नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने स्पष्ट कर दिया है कि सोन नदी पर तब तक खनन नहीं होगा, जब तक कि अधिकारी नदी और उसके जानवरों को बचाने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश पारित नहीं करते। मामला उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में सोन नदी पर होते खनन से जुड़ा है। इस बारे में कोर्ट ने 19 मई, 2023 को निर्देश जारी किए हैं।
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा है कि सोनभद्र के जिला मजिस्ट्रेट और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए की इस निर्देश का पालन किया जा रहा है। कोर्ट ने अवैध खनन और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए सुधाकर पांडेय पर 8.16 करोड़ रुपए और मैसर्स न्यू इंडिया मिनरल्स को 7.08 करोड़ रुपए का जुर्माना भरने का भी आदेश दिया है।
मुआवजे की इस राशि को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के पास जमा करना होगा। साथ ही इस मामले में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और बिहार के पर्यावरण और वन मंत्रालय के साथ भारत के पर्यावरण मंत्रालय को भी उत्तर प्रदेश और बिहार में सोन नदी के हिस्से को वन्यजीव अभयारण्य और घड़ियाल संरक्षण के लिए ईएसजेड क्षेत्र घोषित करने पर विचार करने के लिए कहा है।
कोर्ट का कहना है कि अवैध खनन के मामले में तीन महीने के भीतर बहाली के लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने सोनभद्र सोन नदी तल में खनन के लिए सभी स्वीकृत खनन पट्टों की पुन: जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का भी निर्देश दिया है।
समिति को यह सुनिश्चित करना होगा कि खनन गतिविधियां नदी की धारा और घड़ियाल, कछुए जैसे संरक्षित जीवों को नुकसान नहीं पहुंचा रही हैं। समिति को तीन महीनों के भीतर कानून के दायरे में रहते हुए उचित निर्णय लेने और कारवाई करने के लिए कहा है।
नालों के बहाव में बाधा न डाले एसीसी सीमेंट: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एसीसी सीमेंट को निर्देश दिया है कि वो सलाई बनवा गांव में परियोजना स्थल के पास नालों के प्रवाह में बाधा न डाले। मामला उत्तर प्रदेश के सोनभद्र का है। इस मामले में परियोजना प्रस्तावक एसीसी सीमेंट ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वो ऐसी कोई गतिविधि नहीं करेगा जो नालों को बाधित करे।
जानकारी दी है कि परियोजना को आगे बढ़ाने से पहले चारदीवारी और ह्यूम पाइप को हटा दिया जाएगा और नालियों के दोनों ओर वृक्षारोपण किया जाएगा। अदालत का कहना है कि संयुक्त समिति की रिपोर्ट में रेलवे साइडिंग पर भी उल्लंघन दिखाया गया है।
वहां कोयले की डंपिंग नाले के प्रवाह को बाधित कर रही थी और यह पूरी तरह से पर्यावरण नियमों का उल्लंघन है। ऐसे उल्लंघनों को रोकने और दूर करने के लिए रेलवे जिम्मेवार है। ऐसे में कोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को रेलवे प्रशासन के खिलाफ आगे की कार्रवाई करने और दो महीनों के भीतर क्या कार्रवाई की गई उसपर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि संयुक्त समिति ने अपनी 13 मई 2023 को रिपोर्ट दी थी जिसमें बताया गया था कि एसीसी सीमेंट के परियोजना स्थल के पास प्राकृतिक रूप से बहने वाले दो नाले गुजर रहे हैं। वहीं एसीसी सीमेंट ने चारदीवारी के माध्यम से नाले को पार करने के लिए ह्यूम पाइप लगाए हैं।
यह भी पाया गया है कि “रेलवे साइडिंग क्षेत्र के पास भारी मात्रा में कोयले को अवैज्ञानिक तरीके से डंप किया गया है और स्टेशन अधीक्षक के पास उस क्षेत्र में डंप किए गए कोयले की मात्रा और कौन उसका मालिक है उसके संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं है।
पता चला है कि डंप किए गए कोयले ने इन नालों का रास्ता रोक दिया है। वर्तमान में ये नाले सूखे हैं। हालांकि, यह गतिविधि बारिश के मौसम में पानी के प्रवाह और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।
पाली में इको सेंसिटिव जोन के भीतर नहीं होना चाहिए निर्माण: एनजीटी
एनजीटी ने पाली के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा है कि इको सेंसिटिव जोन के अंदर मौजूद गांव सदरी में कोई निर्माण न हो। मामला राजस्थान के पाली में कुम्भलगढ़ वन्य जीवन अभयारण्य से जुड़ा है। इसके साथ ही कोर्ट ने मुख्य वन्यजीव वार्डन और संभागीय आयुक्त कार्यालय से मामले पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है।
मामले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोर्ट को सूचित किया है कि कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्र की घोषणा के लिए एक ड्राफ्ट अधिसूचना राजस्थान सरकार द्वारा जारी की गई थी, लेकिन इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया। इसके लिए मंत्रालय ने राजस्थान को कई पत्र जारी किए थे, लेकिन उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
मामले में आवेदकों के वकील ने कहा है कि राजस्थान सरकार ने 13 मई, 2016 को आदेश जारी करके कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के एक किलोमीटर के दायरे में खनन, वाणिज्यिक गतिविधियों और भूमि उपयोग में परिवर्तन पर रोक लगा दी थी।