संयुक्त समिति ने 11 जुलाई, 2023 को दायर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पांडवन पारा पहाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संबंधित विभागों ने आवश्यक कार्रवाई की है। वहीं साइट निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में उस स्थान पर कोई सक्रिय खदान नहीं है।
संयुक्त समिति ने 23 अगस्त, 2022 को इस साइट का दौरा किया था। गौरतलब है कि पांडवन पारा, तिरुवनंतपुरम जिले के नेय्याट्टिनकारा में ऊंचे ग्रेनाइट पत्थरों से बनी एक पहाड़ी है। जानकारी दी गई है कि पुरातत्व विभाग ने पांडवन पारा सहित आसपास की 3.15 एकड़ जमीन की सुरक्षा के लिए पहल की शुरूआत की थी।
इस स्थान पर अतीत में खनन की गई कुछ चट्टानें मिली है। हालांकि क्षेत्र का निरीक्षण करने वाले दल को मौजूदा समय में क्षेत्र के पर्यावरण को हुए नुकसान का कोई सबूत नहीं मिला है। क्षेत्र की निगरानी अब पुलिस द्वारा की जाती है और साइट पर जनता का प्रवेश प्रतिबंधित है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि क्षेत्र में खनन और ब्लास्टिंग से जुड़ी कोई गतिविधि नहीं पाई गई।
केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) ने उस स्थान पर खनन परियोजनाओं के लिए कोई मंजूरी नहीं दी है। समिति ने यह भी पाया है कि पांडवन पारा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इसका ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है।
इस मामले में आवेदक, एस उन्नीकृष्णन का आरोप था कि कंपनियां पांडवनपारा के पास भारी विस्फोटक सामग्री का उपयोग कर रही थीं, जिससे उस क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और उसकी सहायक चट्टानें नष्ट हो रही थीं। उनके अनुसार यदि ही चलता रहा तो पांडवनपारा ढह जाएगा।
ऐसे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 11 मई, 2022 को एक संयुक्त समिति से मामले की जांच कर उसपर तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। इस समिति में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, एसईआईएए, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और तिरुवनंतपुरम के कलेक्टर शामिल थे।
कैसे पर्यावरण अनुकूल तरीके से किया जाए फ्लाई ऐश का शत-प्रतिशत उपयोग, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) और बिजली मंत्रालय के सचिवों को एक साथ काम करने और व्यावहारिक समाधान के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फ्लाई ऐश का पूरी तरह से उपयोग किया जा सके।
गौरतलब है कि इस मामले में आवेदक ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 31 दिसंबर, 2021 और 30 दिसंबर, 2022 को जारी दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी थी। चुनौती इस तर्क पर आधारित थी कि ये अधिसूचनाएं फ्लाई ऐश के स्थाई उपयोग, परिवहन और निपटान के संदर्भ में 2016 के हानिकारक अपशिष्ट (प्रबंधन, हैंडलिंग और ट्रांसबाउंड्री मूवमेंट) नियम के खिलाफ हैं।
यह भी दावा किया गया है कि यह अधिसूचनाएं 10 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश का भी उल्लंघन करती हैं। आवेदक ने विद्युत मंत्रालय द्वारा 22 फरवरी, 2022 को जारी की गई सलाह पर भी आपत्ति जताई है। उनका दावा है कि यह पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करती है।