नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अपने 237 पेजों के फैसले में गारे पाल्मा, सेक्टर-2 कोयला खदान परियोजना के लिए दी पर्यावरण मंजूरी (ईसी) को रद्द कर दिया है। गौरतलब है कि यह मंजूरी महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड को दी गई थी। इसके साथ ही एनजीटी ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) को नए सिरे से आम लोगों के साथ परामर्श करने के साथ इस मामले की फिर से जांच करने का निर्देश दिया है।
एनजीटी ने कहा है कि इस परियोजना के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी कई कारणों के चलते कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है, विशेष रूप से इसमें कई बातों पर ध्यान नहीं दिया गया है, जिनमें आम लोगों से परामर्श, आईसीएमआर रिपोर्ट पर विचार न करना, हाइड्रोलॉजिकल स्टडी और वहन क्षमता जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
गौरतलब है कि इस परियोजना के लिए 11 जुलाई, 2022 को महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन नामक कंपनी को पर्यावरण मंजूरी दी गई थी, जिसके खिलाफ कोर्ट में आवेदन किया गया था। इस परियोजना के तहत गारे पाल्मा, सेक्टर-2 नामक क्षेत्र में खनन के लिए मंजूरी ली गई थी। इस परियोजना में दो ओपन कास्ट के तहत हर वर्ष 22 मीट्रिक टन क्षमता के साथ खनन किया जाना था, जबकि 1.6 एमटीपीए के साथ भूमिगत रूप से माइनिंग की जानी था।
यह खनन क्षेत्र छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में टिहली रामपुर, कुंजेमुरा, गारे, सरायटोला, मुरोगांव, राडोपल्ली, पाटा, चितावली, ढोलनारा, झिनका बहल, डोलेसरा, भालुमुरा, सरसमाल और लिबरा गांवों में 2,583.48 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है।
कोटपुतली-बहरोड़ के सरकारी स्कूल में हरे पेड़ों को पहुंचाया गया नुकसान, कोर्ट ने जांच के दिए निर्देश
डूमरोली गांव के एक सरकारी स्कूल परिसर में मौजूद हरे पेड़ों को काटने के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जांच के निर्देश दिए हैं। इसके लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है। गौरतलब है कि मामला राजस्थान की कोटपुतली-बहरोड़ तहसील के नीमराना ब्लॉक का है।
संतोष यादव नामक शख्स ने कोर्ट में आवेदन दायर किया है कि इस स्कूल में पर्यावरण नियमों को ताक पर रखते हुए अधिकारियों या वन विभाग की अनुमति के बिना कई पेड़ो को नुकसान पहुंचाया गया है। ऐसे में कोर्ट ने समिति से मामले की जांच करने के बाद छह सप्ताह के भीतर इस मामले में क्या कार्रवाई की गई है इसपर अपनी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।
यमुना और हिंडन नदी पर रिपोर्ट सौंपने में देरी के लिए गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद के जिलाधिकारियों को भेजा गया समन
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 16 जनवरी, 2024 को गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेटों को अगली सुनवाई पर ट्रिब्यूनल के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 29 जनवरी 2024 को होनी है।
गौरतलब है कि कोर्ट का यह आदेश यमुना और हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र की पहचान और सीमांकन पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने में देरी के मद्देनजर आया है। पूरा मामला ग्रेटर नोएडा और गौतमबुद्ध नगर के लखनावली गांव में यमुना और हिंडन नदियों के बाढ़ क्षेत्र पर अनधिकृत निर्माण से जुड़ा है।
बता दें कि 27 जुलाई, 2023 को अपने आदेश में एनजीटी ने ग्रेटर नोएडा और गौतम बुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट को यमुना और हिंडन नदियों के बाढ़ क्षेत्र क्षेत्रों की पहचान और सीमांकन करने और दो महीने के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
हालांकि 31 अक्टूबर, 2023 को गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट ने इस मामले में एक रिपोर्ट सबमिट की थी, लेकिन ट्रिब्यूनल को उस रिपोर्ट में कमी मिली थी, क्योंकि उसमें यमुना और हिंडन नदियों के लिए बाढ़ क्षेत्र क्षेत्रों का सीमांकन नहीं किया गया था।
जब यह मामला दो नवंबर, 2023 को उठाया गया तो कार्यवाही के दौरान, उत्तर प्रदेश के वकील ने आश्वासन दिया कि संबंधित जिलों के लिए बाढ़ क्षेत्र का सीमांकन दो महीनों के भीतर पूरा कर लिया जाएगा। इस मामले में दाखिल आवेदन में ग्रेटर नोएडा के गांव लखनावली में यमुना और हिंडन नदी के बाढ़ क्षेत्र पर अनधिकृत निर्माण का भी मुद्दा उठाया गया था।
वहीं गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट ने नौ जनवरी, 2024 को दायर स्थिति रिपोर्ट में जानकारी दी है कि हिंडन और यमुना नदी के डूब क्षेत्र का निर्धारण करने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रूड़की से संपर्क किया गया है। संस्थान ने जानकारी दी है कि गौतमबुद्ध नगर में यमुना के अध्ययन के लिए छह महीने और हिंडन के लिए नौ महीने का समय चाहिए होगा।
इस पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ का कहना है कि गंगा नदी (पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016 के मुताबिक, जिला गंगा समिति के अधिकार क्षेत्र के तहत जिला स्तर पर बाढ़ क्षेत्र के सीमांकन की जिम्मेवारी जिला मजिस्ट्रेट की है। अदालत का कहना है कि कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के वकील के पिछले आश्वासन के आधार पर सीमांकन के लिए आवश्यक समय दिया था।