नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा, 29 अप्रैल, 2022 को दिए आदेश के अनुपालन में नियुक्त संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट कर दी है। इस रिपोर्ट में फाल्गुनी नदी में औद्योगिक अपशिष्ट को छोड़े जाने से हो रही मछलियों की मौत के संबंध में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार नदी के दोनों ओर आवासीय और वाणिज्यिक विकास देखा गया है। साथ ही कुछ क्षेत्रों में कोई भूमिगत जल निकासी नहीं है।
क्षेत्र में सीवर की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। वहां छोटे-बड़े तूफानी नालों को नदी से जोड़ा गया है। कुद्रोली, सुल्तान बटेरी, डंबेल, कुलूर चर्च और ईएलएफ गैस क्षेत्रों में बहुत अधिक जैविक भार देखा गया है। इतना ही नहीं जांच के दौरान ठोस कचरा नदी में मिलने वाले तूफानी जल नालियों में तैरता हुआ पाया गया था।
संयुक्त समिति का कहना है कि उद्योगों, होटलों और अन्य आवासीय क्षेत्रों से एकत्र किए गए सीवेज को नदी में छोड़ा जा रहा है, इसके लिए उचित जांच करने की आवश्यकता है। वहीं गुरुपुरा नदी के ऊपर की ओर लगभग 6 किलोमीटर बैकमपाडी औद्योगिक क्षेत्र में एक वेंटेड बांध बनाया गया है जो मारावूरु ग्राम पंचायत के लिए पेयजल का स्रोत है।
जानकारी दी गई है कि इस बांध का निर्माण 2016-17 में किया गया था। इस बांध के निर्माण के बाद से नदी को पर्याप्त पानी नहीं मिलता है और गर्मी के दौरान नदी में मछलियों के मरने की घटनाएं सामने आई हैं। साथ ही नदी प्रवाह में आई गिरावट के कारण जैविक भार बढ़ रहा है जो मछलियों के मरने की वजह बन रहा है। इस रिपोर्ट को 13 अक्टूबर, 2022 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।
गौरतलब है कि एक मीडिया रिपोर्ट में जानकारी दी गई थी कि फाल्गुनी (गुरुपुरा) नदी में सैकड़ों मछलियां मरी पाई गईं थी। जो नदी में औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों छोड़े जाने के कारण मर रही थी। पता चला है कि मैंगलोर के बैकमपदी औद्योगिक क्षेत्र में उद्योगों द्वारा छोड़े जा रहे अपशिष्ट के चलते नदी का रंग काला हो गया है।
राष्ट्रीय राजमार्ग-200 के विकास में पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की याचिका को एनजीटी ने किया स्वीकार
एनजीटी ने प्रताप चंद्र मोहंती द्वारा दायर उस याचिका को स्वीकार कर लिया है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग-200 का विकास पर्यावरण नियमों को ताक पर रख कर किया जा रहा है।
इस मामले में आवेदकों ने कहा है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) एनएच-200 के ओडिशा के दुबुरी से चंडीखोल खंड तक मौजूदा 2-लेन को चार लेन का करने में लगा हुआ है। इसकी कुल लम्बाई 388.376 किलोमीटर से 428.074 किलोमीटर है।
आरोप है कि निजी ठेकेदारों को राजमार्ग परियोजना के निर्माण के दौरान भारी मात्रा में गौण खनिजों जैसे मिट्टी, मोरम, धातु, पत्थर, बजरी, रेत और स्टोन क्रशर से निकली धूल की आवश्यकता होती है। लघु खनिज खुले बाजार में उपलब्ध नहीं हैं और ऐसे गौण खनिजों का व्यापार उड़ीसा लघु खनिज रियायत नियम, 2016 के तहत राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इन लघु खनिजों के परिवहन के लिए उत्खनन और परिवहन के लिए परमिट की आवश्यक होती है। उनका आरोप है कि इन गौण खनिजों का परिवहन अंतिम उपयोगकर्ता एजेंसी द्वारा बिना किसी वैध ट्रांजिट परमिट के किया जा रहा है।
इस मामले में दानागड़ी के तहसीलदार द्वारा आरटीआई के माध्यम से उपलब्ध कराए जवाब का भी हवाला दिया गया है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कि मेसर्स गैमन इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में कोई खदान जारी नहीं की गई है। लिमिटेड मैसर्स गैमन इंफ्रा प्रोजेक्ट (जेवी), एनएचएआई के ठेकेदार, और दानागडी तहसील कार्यालय द्वारा अधिकृत प्रतिनिधि या उप-ठेकेदार के रूप में है। यह भी कहा गया है कि एनएचएआई या निजी ठेकेदारों के पक्ष में कोई रेत सैराट/मोरम सैराट/स्टोन सैराट आवंटित नहीं किया गया है।
ऐसे में एनजीटी ने कहा है कि इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है और कोर्ट ने उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। इनमें ओडिशा सरकार, ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए), ओडिशा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय, भुवनेश्वर, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण शामिल हैं। इन सभी प्रतिवादियों को तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।
अंबरनाथ नगर परिषद ने वर्षों से जमा कचरे के प्रबंधन के लिए 17 लाख का किया भुगतान
महाराष्ट्र में ठाणे की अंबरनाथ नगर परिषद ने एनजीटी को सूचित किया है कि उसने पुराने जमा कचरे के प्रबंधन के लिए 17 लाख रुपए का भुगतान कर दिया है।
इस बारे में नगर परिषद ने 10 अक्टूबर, 2022 को एक अतिरिक्त हलफनामा कोर्ट में दाखिल किया है जिसमें डंपिंग साइट (चिखलोली, सर्वेक्षण संख्या 132) के भीतर आवासीय भवनों के साथ डंपिंग साइट को दिखाते हुए एक स्केल मैप के साथ-साथ गूगल मैप भी दाखिल किया है। साथ ही अंबरनाथ नगर परिषद ने कोर्ट को जानकारी दी है कि नगर ठोस अपशिष्ट नियम, 2016 के तहत बफर जोन बनाने के लिए कोई क्षेत्र उपलब्ध नहीं है।
जानकारी दी गई है कि पहले डंपिंग और आवासीय भवनों के बीच केवल 20 मीटर की दूरी था, लेकिन अब उसे बढाकर 80 मीटर कर दिया गया है। भविष्य में, उसे आवासीय क्षेत्र से लगभग 100 से 120 मीटर तक दूर करने की योजना है। लेकिन इससे आगे आवासीय भवनों से दूरी बढ़ाने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि प्लॉट के दूसरी तरफ एक गौठान क्षेत्र भी मौजूद है, जो वर्ष 2002 से शुरू से ही डंपिंग साइट का विरोध कर रहे हैं।
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा है कि 17 लाख रुपए जमा किए गए हैं। लेकिन वो कहां जहां जमा किए गए हैं यह स्पष्ट नहीं किया गया है। हालांकि इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास जमा करना था। ऐसे में कोर्ट ने अंबरनाथ नगर परिषद को अगली तारीख यानी 22 नवंबर, 2022 तक अपनी जमा की गई राशि का प्रमाण देने का निर्देश दिया है।
फतेहपुर यमुना रेत खनन मामले में एनजीटी ने दो महीनों में मांगा जवाब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) और मैसर्स टेस्मस ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड को यमुना नदी पर चल रही रेत खनन परियोजना पर दो महीने के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में खागा तहसील के घडीवा मझीगावां गांव का है।
यह मामला घडीवा मझीगवां गांव में यमुना नदी क्षेत्र पर रेत खनन परियोजना से जुड़ा है, जिसे लिए मैसर्स टेस्मस ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में पर्यावरण मंजूरी (ईसी) प्रदान की गई थी। इसके तहत 25 हेक्टेयर क्षेत्र में हर वर्ष 2.5 लाख क्यूबिक मीटर रेत खनन के लिए मंजूरी दी गई थी। इस मामले में आवेदक का तर्क है कि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने, खनन योजना, पर्यावरण प्रभाव आकलन, पर्यावरण प्रबंधन योजना और जन सुनवाई जैसी अपेक्षित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।