घोड़ों की आवाजाही के चलते कुफरी में वन क्षेत्र को हो रहा नुकसान, बहाली के लिए एनजीटी ने दिए निर्देश

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
घोड़ों की आवाजाही के चलते कुफरी में वन क्षेत्र को हो रहा नुकसान, बहाली के लिए एनजीटी ने दिए निर्देश
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कुफरी में घोड़ों की आवाजाही से वन क्षेत्र को नुकसान हो रहा है। ऐसे में इसकी रोकथाम और बहाली के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने समिति को जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। मामला हिमाचल प्रदेश में शिमला के कुफरी का है।

साथ ही कोर्ट ने समिति को जिला प्रशासन के साथ बैठक करने का भी आदेश दिया है। इसमें शिमला के प्रभागीय वन अधिकारी, और प्रधान मुख्य वन संरक्षक भी शामिल होंगें। कोर्ट का निर्देश है कि यह प्रक्रिया दो महीनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए, और इस मामले में जो भी कार्रवाइयां की गई हैं उसपर एक रिपोर्ट अगली सुनवाई को कोर्ट के सामने प्रस्तुत की जानी चाहिए। इस मामले में अगली सुनवाई तीन अक्टूबर, 2023 को होगी।

एनजीटी ने मेसर्स मिनरल्स एंड मेटल्स पर लगाया 1.47 करोड़ का जुर्माना, क्या थी इसके पीछे की वजह

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मेसर्स मिनरल्स एंड मेटल्स को मुआवजे के रूप में करीब 1.47 करोड़ रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है। मामला महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में डोडामार्ग तालुका के कलाने गांव में लौह अयस्क खदान की दीवार टूटने से खेत, फसल और घरों को हुए नुकसान से जुड़ा है।

यह जानकारी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 5 सितंबर 2002 को दिए आदेश पर संयुक्त समिति द्वारा सौंपी रिपोर्ट में सामने आई हैं। लौह अयस्क खदान की दीवार टूटने की यह घटना जुलाई 2021 में हुई थी। इसके चलते खदान के गड्ढों में भारी मात्रा में जमा पानी के साथ-साथ हद से ज्यादा मलबा और पत्थर कलाने गांव में खेतों तक पहुंच गया था, साथ ही इससे घरों के निचले हिस्से बह गए थे।

इसकी वजह से काजू, आम, नारियल, सुपारी जैसी बारहमासी फसलें और दक्षिणी में स्थित करीब 15 घर नष्ट हो गए। जांच में पाया गया कि यह उद्योग अयस्क शोधन के बिना लौह अयस्क के खनन में लगा हुआ था। ऐसे में इससे कचरे के उत्पन्न होने की कोई गुंजाइश नहीं है। इस मामले में संयुक्त समिति ने लौह अयस्क खदान और कृषि क्षेत्रों का भी सर्वे किया था।

समिति के अनुसार घटना के बाद, उद्योग ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कई कदम उठाए हैं। उसने पुरानी खदानों के गड्ढों को भरकर समतल कर दिया है। साथ ही खदान की बाहरी सीमा को पहले से कहीं ज्यादा मजबूत कर दिया है। इस नुकसान के मुआवजे के रूप में उद्योग पहले ही 60.7 लाख रुपए का भुगतान कर चुका है। इसमें 14 लोगों के घरों को हुए नुकसान और 49 ग्रामीणों की कृषि भूमि को हुए नुकसान का मुआवजा शामिल है।

समिति की सिफारिश है कि चूंकि उद्योग पहले ही 60,70,300 रुपए का भुगतान कर दिए है, ऐसे में इस राशि को मुआवजे की कुल राशि से घटाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उद्योग को भूमि की बहाली के लिए 25,75,000 रुपए के भुगतान का भी निर्देश देना चाहिए।

समिति ने यह भी सिफारिश की है कि उद्योग, जिला कृषि विभाग और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की देखरेख में एक गहन सर्वेक्षण करे। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य प्रभावित कृषि क्षेत्रों में बड़े पत्थरों या अन्य सामग्री के छिटपुट जमाव की पहचान करना और उन्हें हटाना है।

बरजोला नहर से हुगली में होता प्रदूषण, जांच के लिए एनजीटी ने संयुक्त समिति को दिए निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 12 जुलाई, 2023 को एक पांच सदस्यीय समिति को निर्देश दिया है कि वो बरजोला नहर के जरिए हुगली में गिरते प्रदूषण की जांच करे। बता दें कि बरजोला नहर को सारेंगा नहर के रूप में भी जाना जाता है, जो पश्चिम बंगाल के सिंचाई और जलमार्ग विभाग के आधीन आती है।

इस मामले में कोर्ट ने समिति को उन आरोपों की जांच का काम सौंपा है जिनमें कहा गया था कि सारेंगा नहर के जरिए जहरीले एफ्लुएंट हुगली नदी में मिल रहे हैं। इस बारे में शिकायतकर्ता अंकुर शर्मा का कहना है कि जालान औद्योगिक परिसर में स्थित सैकड़ों औद्योगिक इकाइयां इसके लिए जिम्मेवार हैं।

ऐसे में कोर्ट ने न केवल समिति को उल्लंघन करने वाले उद्योगों की पहचान करने का काम सौंपा है। साथ ही पर्यावरण संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात भी कही है। कोर्ट ने उद्योगों पर पर्यावरणीय मुआवजे के निर्धारण का काम भी समिति को दिया है।

शिकायतकर्ता का कहना है कि उल्लंघन करने वाले उद्योगों में रंगाई और ब्लीचिंग कारखाने, गैल्वनाइजिंग कारखाने, फाउंड्री इकाइयां और रासायनिक विनिर्माण इकाइयां शामिल हैं, जो दूषित और जहरीले अपशिष्ट को सीधे हुगली नदी में बहा रही हैं जिससे हुगली में प्रदूषण होता है।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि नहर विशेषतौर पर अबादा घोड़ाघाट क्षेत्र के साथ आसपास के जल स्रोतों और खेतों में भी अपशिष्ट फैलाती है। यह प्रदूषण न केवल मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा रहा है, साथ ही जहरीले रसायनों के चलते जल स्रोतों का पारिस्थितिक संतुलन भी बाधित हो रहा है।

गौरतलब है कि आवेदक ने कई विभागों और अधिकारियों से इसकी शिकायत की है, लेकिन अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

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