भोपाल गैस पीड़ितों के मामले पर मंगलवार 12 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वो गैस पीड़ितों के मुआवजे में वृद्धि की मांग को लेकर जारी अपनी क्यूरेटिव पिटीशन की याचिका को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है। गौरतलब है कि इस मामले में 715 करोड़ रुपए का मुआवजा यूनियन कार्बाइड पहले ही दे चुका है।
इस बारे में सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है। गौरतलब है कि कई एनजीओ भी इस क्यूरेटिव पिटीशन की याचिका में पक्षकारों के रूप में जोड़े जाने की मांग कर रहे हैं।
इस मामले में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने तर्क दिया है कि "इस याचिका की जांच की जानी चाहिए क्योंकि यह याचिका निर्णय पारित होने के 19 साल बाद और समीक्षा याचिका की प्रक्रिया से गुजरे बिना आई है। वहीं जिन व्यक्तियों ने समीक्षा याचिका दायर की थी और जिन पर आदेश पारित किए गए थे, उन्होंने इस क्यूरेटिव पिटीशन को दायर नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस मामले में निर्देश दिया है कि भारत सरकार भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित व्यक्तियों के दावे का प्रतिनिधित्व करेगी और अटॉर्नी जनरल के कार्यालय और सरकार द्वारा इस मामले में एक संयुक्त संकलन तैयार किया जाना चाहिए। इस संयुक्त संकलन को 56 दिनों के भीतर तैयार किया जाना है। मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी, 2023 को होगी।
गौरतलब है कि क्यूरेटिव पिटीशन एक पक्ष के लिए उपलब्ध अंतिम मौका है, जो अदालत को एक मामले पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है। यह पिटीशन अदालत द्वारा किसी फैसले की समीक्षा करने से इनकार करने के बाद दायर किया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दिसंबर 2010 में, भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि के अलावा 7,400 करोड़ रुपये की मांग करते हुए एक उपचारात्मक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि यूनियन कार्बाइड ने जो मुआवजा दिया है उसके भुगतान में इस त्रासदी में गई जानों, चोटों और नुकसान को ध्यान में नहीं रखा गया था।
इस त्रासदी को करीब 38 साल बीत चुके हैं, इसके बावजूद अभी तक लोग जहरीले रसायनों की चपेट में आने की आशंका से डर रहे हैं। 38 वर्ष पहले 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दर्मियानी रात जेपी नगर के यूनियन काबाईड कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनाट गैस के रिसाव ने हजारों नागरिकों को मौत की नींद सुला दिया था। साथ ही लाखों लोग जन्मजात बीमारियों का शिकार बन गए थे। इनमें से हजारों लोग आज भी उन बीमारियों से लड़ रहे हैं।
जानिए क्यों एनजीटी ने कर्नाटक पर लगाया 500 करोड़ रुपए का जुर्माना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कर्नाटक सरकार को 500 करोड़ रुपए के जुर्माने का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कर्नाटक पर यह जुर्माना चंद्रपुरा झील को होते नुकसान को रोकने के लिए उचित कार्रवाई न करने पर लगाया है।
गौरतलब है कि एनजीटी ने चंद्रपुरा झील को होते नुकसान को दिखाने वाली एक मीडिया रिपोर्ट और उसकी रोकथाम में वैधानिक नियामकों की विफलता के आधार पर इस मामले में संज्ञान लिया था।
इस मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि झील के बफर जोन पर अतिक्रमण किया जा चुका है और कचरे को इस झील में डाला जा रहा है। इस बारे में मुख्य सचिव द्वारा सबमिट रिपोर्ट में भी झील की खराब स्थिति के बारे में जानकारी दी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि झील के कुल 24.27 एकड़ क्षेत्र में सेलगभग दो एकड़ पर निर्माण गतिविधियों का अतिक्रमण हो चुका है।
इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि इस क्षेत्र की झीलों में बढ़ते प्रदूषण के लिए काफी हद तक जिगनी बोम्मासांद्रा औद्योगिक है। जिसमें रेड केटेगरी के उद्योगों की अधिकता है। इस श्रेणी के उद्योगों का प्रदूषण सूचकांक 60 या उससे ज्यादा होता है।
इस औद्योगिक क्षेत्र से बड़ी मात्रा दूषित जल झीलों में डाला जा रहा है जोकि सरकार की लिक्विड डिस्चार्ज नीति का खुले तौर पर उल्लंघन है। इसके तहत झीलों में किसी भी तरह का दूषित जल नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
एनजीटी ने कहा है कि रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि झील को भारी नुकसान पहुंचा है और इस तरह की क्षति के लिए स्पष्ट रूप से राज्य अधिकारियों की निष्क्रियता का परिणाम है।
ऐसे में कोर्ट ने कर्नाटक को 500 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया है जिससे झीलों की पर्यावरणीय सेवाओं को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके। इस मामले में कोर्ट ने निर्देश दिया है कि निगरानी समिति के निर्देश और पर्यवेक्षण के अनुसार छह महीनों के भीतर झील के जीर्णोद्धार के लिए इस राशि का उपयोग किया जाना चाहिए।
देवरिया में सीवेज प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने सरकार पर लगाया 7.5 करोड़ का जुर्माना
देवरिया में सीवेज प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर 7.5 करोड़ का जुर्माना लगाया है। एनजीटी ने इस राशि को एक महीने के भीतर रिंग-फेन्ड खाते में जमा करने का निर्देश दिया है। इस राशि की मदद से देवरिया के लार में नालों में डाले जा रहे दूषित सीवेज को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
इस बारे में कोर्ट ने आदेश दिया है कि सीवेज का ठीक तरह से ट्रीटमेन्ट किया जाना चाहिए और उस पानी को सिंचाई जैसे माध्यमिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। जानकारी दी गई है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट देवरिया के सदस्यों के साथ एसीएस/प्रधान सचिव, शहरी विकास, उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त समिति सदस्य इस राशि के उपयोग की निगरानी करेगी।
इस मामले में प्रमुख सचिव, शहरी विकास द्वारा दायर रिपोर्ट ने अदालत को सूचित किया है कि लार नगर पंचायत के लिए एक व्यापक शहर स्वच्छता कार्य योजना को स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत तैयार किया गया है, जिसमें इसके लिए 7.40 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता का प्रावधान है।
एनजीटी का कहना है कि हालांकि इस क्षेत्र में 7.40 करोड़ रुपए की एक कार्य योजना तैयार की गई है इसके बावजूद अभी भी उल्लंघन जारी है और दूषित सीवेज छोड़ा जा रहा है।