उत्तराखंड: राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण की मंजूरी पर एनजीटी की रोक

उत्तराखंड: राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण की मंजूरी पर एनजीटी की रोक

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) पर रोक लगा दी है। मामला उत्तराखंड में बागेश्वर के नयल बिलाड़ी का है। जहां साबुन पत्थर खनन के लिए एसईआईएए द्वारा पर्यावरण मंजूरी गई थी।

इस मामले में आवेदक सूरज सिंह कार्की का कहना है कि इस पर्यावरण मंजूरी में 14 सितंबर, 2006 की ईआईए अधिसूचना का उल्लंघन किया गया है। एनजीटी को दिए अपने आवेदन में उन्होंने कहा है कि, "इसमें वन्यजीवों के आवासों को होते नुकसान को नजरअंदाज कर दिया गया है और ऐसी गतिविधियां भूकंप क्षेत्र में व्यवहार्य नहीं हैं।"

ऐसे में एनजीटी ने परियोजना प्रस्तावक को राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण के समक्ष दो महीने के अंदर भूकंपीयता पर खनन के प्रभावों और वन एवं वन्यजीवों पर इसके प्रभाव पर अध्ययन करने और रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है जिससे एसईआईएए उस पर विचार कर सके और पर्यावरण मंजूरी देने से पहले सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करते हुए एक उचित आदेश पारित कर सके।"

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि जब तक राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण कोई आदेश पारित नहीं करता तब तक यह मंजूरी निलंबित रहेगी।

एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को दिए डीईआईएए द्वारा जारी खनन पट्टों की जांच के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 7 दिसंबर, 2022 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को खनन पट्टों के बारे में जानकारी एकत्र करने का निर्देश दिया है। इन खनन पट्टों के लिए जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा पर्यावरणीय मंजूरी दी गई हैं और इनकी अवधि अभी समाप्त नहीं हुई है। यह जानकारी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एकत्र की जानी है।

एनजीटी ने एमओईएफएंडसीसी को सुप्रीम कोर्ट (दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य व अन्य, 2012) के निर्देश और 13 सितंबर, 2018 को एनजीटी द्वारा सतेंद्र पांडे बनाम एमओईएफ एंड सीसी व अन्य के मामले में दिए आदेश के अनुसार पर्यावरण मंजूरी के लिए दिए निर्देशों को जारी करने के लिए कहा है।

इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई है इसपर एमओईएफएंडसीसी को अगले दो महीने के अंदर एनजीटी के समक्ष रिपोर्ट सबमिट करनी है।

महाराष्ट्र के दस जिलों में ब्लू और रेड लाइन मार्क करने का काम क्यों नहीं हुआ पूरा, एनजीटी ने मांगा जवाब

एनजीटी ने पुणे सिंचाई विभाग को यह बताने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है कि उसने महाराष्ट्र के दस जिलों में ब्लू और रेड लाइन को मार्क करने का काम क्यों नहीं किया है। साथ ही अत्यंत बाढ़ प्रवाहित क्षेत्रों की लिस्ट में से उनके नाम गायब क्यों हैं, इस पर हलफनामा दायर करें। यह आवेदन सारंग यादवाडकर ने 14 अप्रैल, 2022 को दायर किया था।

इस मामले में सिंचाई विभाग द्वारा दाखिल और 3 अगस्त, 2022 को एनजीटी द्वारा उठाए एक पिछले हलफनामे का उल्लेख किया गया है जिसके मुताबिक महाराष्ट्र में "नदी के 1,188 किलोमीटर के हिस्से का सीमांकन किया जाना है। इन 1,188 किलोमीटर में से 1,071 किलोमीटर हिस्सा रेड और ब्लू लाइन के लिए स्ट्रेच का में पड़ता है।

गौरतलब है कि बाढ़ रेखाएं दो प्रकार की होती हैं, एक लाल और दूसरी नीली। यहां ब्लू फ्लड लाइन्स हर 25 साल में आने वाली बाढ़ के स्तर को चिह्नित करती हैं जबकि रेड फ्लड लाइन्स बाढ़ के उस स्तर को चिह्नित करती हैं जो हर 100 साल में आती हैं।

वहीं दो नीली बाढ़ रेखाओं के बीच के क्षेत्र को "निषेध क्षेत्र" के रूप में जाना जाता है, जहां किसी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं है। वहीं ब्लू फ्लड लाइन और रेड फ्लड लाइन के बीच के हिस्से को "प्रतिबंधात्मक क्षेत्र" के रूप में जाना जाता है जहां कुछ शर्तों के तहत निर्माण की अनुमति दी जा सकती है।

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