चार अक्टूबर, 2023 को एनजीटी के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार के मई, 2020 के उस सर्कुलर पर सवाल उठाया गया है, जिसमें सरकार ने ईंट भट्टों और हाथ से बने मिट्टी के बर्तनों से संबंधित गतिविधियों को पर्यावरणीय मंजूरी लेने की आवश्यकता से छूट दे दी थी। इस सर्कुलर के तहत विशेष रूप से दो मीटर की गहराई तक खनन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी गई थी।
आवेदक ने अन्य बातों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले (दीपक कुमार और अन्य बनाम हरियाणा राज्य) का हवाले किया है, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पांच हेक्टेयर या उससे कम जमीन पर खनिजों के लिए पट्टे देने या उनके नवीनीकरण से पहले पर्यावरण मंत्रालय से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) मंजूरी लेनी होगी।
अदालत की राय है कि कि इस मामले में पर्यावरण कानून और उसके पालन के संबंध में महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले पर 11 दिसंबर 2023 की अगली सुनवाई तक जवाब देने का निर्देश दिया गया है।
क्या फैक्ट्रियों से निकलने वाला केमिकल पानी को बना रहा जहरीला, समिति करेगी आरोपों की जांच
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने चार अक्टूबर 2023 को कोटवन औद्योगिक क्षेत्र में हो रहे प्रदूषण के आरोपों की जांच के लिए एक समिति को निर्देश दिया है। मामला उत्तर प्रदेश में मथुरा के कोसी कलां का है।
कोर्ट के निर्देशानुसार यह समिति सम्बंधित क्षेत्र में फैक्ट्रियों से निकलने वाली पानी के नमूने एकत्र करेगी और अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। समिति अखबार में छापे दावों और कारखानों से निकलने वाले दूषित केमिकल्स के आरोपों की भी जांच करेंगे। इसके अतिरिक्त, जैसा कि आदेश में कहा गया है, यदि पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों का किसी भी प्रकार का उल्लंघन पाया जाता है तो समिति उसकी पुष्टि होने पर उसे रोकने या सुधारने के लिए कार्रवाई करेगी।
गौरतलब है कि चार जून 2022 को अमर उजाला, मथुरा में प्रकाशित एक खबर ने अदालत का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इस खबर में खुलासा किया गया था कि कोटवन नवीपुर औद्योगिक क्षेत्र में कारखानों से निकलने वाला दूषित पानी पीने से 12 भैंसों की मौत हो गई थी। इस रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि अधिकारियों ने जांच के लिए पानी के नमूने एकत्र किए थे। आरोप है कि ये इकाइयां कोसी नाले में दूषित और जहरीले रसायन छोड़ रही हैं, जहां से भैंसों ने पानी पिया था।
बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण के दौरान हुआ अवैध खनन, एनजीटी ने जांच के दिए आदेश
बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण के दौरान किए गए अवैध खनन के आरोपों की जांच के लिए एनजीटी ने संयुक्त समिति के गठन के निर्देश दिए हैं। यह समिति वहां पर्यावरण कानूनों के होने वाले उल्लंघनों की जांच करेगी।
कोर्ट के निर्देशानुसार इस समिति में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के प्रतिनिधि के साथ-साथ लोक निर्माण विभाग के संबंधित अधिशाषी अभियंता और जालौन के जिलाधिकारी शामिल होंगें।
संयुक्त समिति मौके पर ही परियोजना प्रस्तावक द्वारा किए गए अवैध खनन की सीमा, यदि कोई है तो उसका पता लगाएगी। साथ ही वो इस प्रक्रिया के दौरान पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भी जांच करेगी और उस नुकसान की भरपाई कैसे की जा सकती है और उसे कैसे रोका जा सकता है उसकी जानकारी भी कोर्ट को देगी।
मामले में संयुक्त समिति को अगली सुनवाई को 15 दिसंबर, 2023 तक एक रिपोर्ट सबमिट करने के लिए भी कहा गया है। गौरतलब है कि यह मूल आवेदन नारचा गांव के निवासी अरुण तिवारी द्वारा 12 जून, 2023 को पत्र के माध्यम से भेजी याचिका के आधार पर दायर किया गया है। जो उत्तर प्रदेश में जालोन जिले की नुनसाई पोस्ट के रहने वाले हैं।
उनकी शिकायत है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण के दौरान, परियोजना प्रस्तावक, मेसर्स गोवर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों की जमीन पर 10-15 मीटर की गहराई तक अवैध खनन किया था। इसमें उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अधिकारियों पर भी मिलीभगत का आरोप है।
दावा है कि इन अवैध गतिविधियों के चलते कई स्थानों पर सड़क को नुकसान पहुंचा है। इसके अतिरिक्त, यह भी आरोप है कि 2021 में अनुमति आवेदन प्रस्तुत किए जाने के बावजूद, परियोजना के लिए फरवरी 2020 से खनन किया जा रहा था। अवैध तौर पर किए जा रहे इस गहरे खनन के चलते कई मवेशियों की मौत हो गई थी और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा था।
उनके मुताबिक दो मीटर की स्वीकृत गहराई तक खनन करने के बजाय, परियोजना प्रस्तावक ने कृषि क्षेत्रों से 20 से 55 फीट की गहराई तक मिट्टी की खुदाई की थी। इसके अलावा, उन्होंने आवश्यक अनुमति लिए किए बिना कई किसानों के खेतों में अनधिकृत खनन किया था।