दिल्ली एनसीआर सहित देश के लगभग सभी बड़े शहरों में पार्टिकुलेट मेटर यानी पीएम का बढ़ता स्तर बच्चों के लिए जानलेवा बना हुआ है। इस जानलेवा पीएम का असर जानने के लिए डाउन टू अर्थ दिल्ली सहित अन्य शहरों से रिपोर्ट कर रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा: जानलेवा पीएम : बच्चों की अटक रहीं सासें, अस्पतालों में लगी हैं लंबी कतारें । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा: सबसे ज्यादा बेहाल हैं राजधानी के पांच साल तक के बच्चे, अस्पतालों में बढ़ी संख्या। तीसरी कड़ी में आपने गोरखपुर और चौथी कड़ी में फरीदाबाद की रिपोर्ट पढ़ी। आज पढ़ें बिहार के शहरों में क्या है हाल:
बिहार के पटना सहित प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति खराब है। इसके चलते राज्य के सरकारी अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में सांस की बीमारी की वजह से बच्चों, ज्यादातर शिशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। ज्यादातर को श्वसन संक्रमण, सांस फूलने और एलर्जी की शिकायत है, उनका इलाज करने वाले डॉक्टर इसके लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार मान रहे हैं।
बिहार में वायु प्रदूषण की बदतर स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 9 नवंबर (गुरुवार को) को पटना में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 409 दर्ज किया गया, इसके अलावा पूर्णिया में 391, सहरसा में 320, छपरा में 318 और भागलपुर में 302 दर्ज किया गया।
बढ़ते वायु प्रदूषण का सीधा असर 4 से 5 साल तक के बच्चों पर पड़ रहा है। यहां तक कि कुछ नवजात शिशु भी इससे पीड़ित हैं। पटना स्थित सरकार द्वारा संचालित नालंदा मेडिकल कॉलेज (एनएमसीएच) में बाल चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. अतहर अंसारी ने कहा, “वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में एलर्जी बढ़ रही है। हवा में शुद्ध ऑक्सीजन की कमी वयस्कों की तुलना में बच्चों को अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। हम बड़ी संख्या में बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव देख रहे हैं, क्योंकि वे खराब वायु गुणवत्ता का सामना नहीं कर पा रहे हैं।
अंसारी ने बताया कि एनएमसीएच में आने वाले लगभग एक तिहाई बच्चे या शिशु वायु प्रदूषण के कारण सामान्य सांस लेने में कठिनाई और एलर्जी से पीड़ित हैं।
पटना स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) के डॉ. जयंत प्रकाश ने कहा कि वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है और उनमें एलर्जी का खतरा बढ़ गया है।
सरकार द्वारा संचालित पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) के स्त्री रोग विभाग के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि बढ़ते वायु प्रदूषण का असर कुछ गर्भवती माताओं (गर्भवती महिलाओं) और उनके गर्भ में पल रहे बच्चों पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, "हमारे सामने ऐसे कुछ मामले आए हैं जैसे नवजात बच्चे प्रसव के तुरंत बाद नहीं रोते हैं और वायु प्रदूषण के प्रभाव के कारण उनके अति सक्रिय वायु मार्गों में ऑक्सीजन की कमी के कारण उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है।"
हालांकि, सरकार द्वारा संचालित मुजफ्फरपुर स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एसकेएमसीएच) के अधीक्षक डॉ. बीएस झा ने कहा कि गर्भवती माताओं और नवजात बच्चों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के बारे में कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। वायु प्रदूषण के कारण एलर्जी विकार बढ़ रहा है।”
इसी तरह एसकेएमसीएच के बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. गोपाल शंकर साहनी भी झा की बात से सहमत हैं। उन्होंने कहा, ''हमने वायु प्रदूषण से प्रभावित किसी भी नवजात शिशु को नहीं देखा है। लेकिन 2 से 4 या 5 साल की उम्र के बच्चों में एलर्जी, अस्थमा और अन्य बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं और ऐसा लगता है कि यह वायु प्रदूषण का परिणाम है।
बेगुसराय जिले में वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में सांस लेने की समस्या या श्वसन संबंधी बीमारी बढ़ रही है। हालांकि सरकार द्वारा संचालित सदर अस्पताल के अधिकारियों ने इससे संबंधित कोई भी आंकड़े साझा करने से इनकार कर दिया। लेकिन डॉक्टरों ने माना कि साल दर साल ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है।
सदर अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ और चिकित्सा अधिकारी डॉ. कृष्ण कुमार ने कहा, “बढ़ते वायु प्रदूषण और उनके स्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। बच्चों को खराब वायु गुणवत्ता का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इस सप्ताह की शुरुआत में बेगुसराय का एक्यूआई 315 था, जो बहुत खराब है और सभी के लिए चिंताजनक है।''
कुमार ने कहा कि वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप, बच्चे फेफड़ों की बीमारी और अन्य पुरानी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
पिछले तीन से चार वर्षों के दौरान भागलपुर में बड़े पैमाने पर बच्चों में एलर्जी के मामले सामने आए हैं। जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के डॉ केके सिन्हा और भागलपुर के अस्पताल ने कहा, "वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में सांस फूलना, सर्दी और खांसी बढ़ रही है क्योंकि वे अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं।"
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि वायु प्रदूषण का बच्चों पर कितना असर हो रहा है, इसका अब तक कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।