फसलों के अवशेषों को बायोचार में बदलने से वायु प्रदूषण से मिल सकती है निजात

शोध में पाया गया है कि, 12 देशों के पास फसल अवशेषों को बायोचार में बदल कर अपने वर्तमान कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 20 फीसदी से अधिक को अलग करने की तकनीकी क्षमता है।
फोटो साभार : सीएसई
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वर्तमान में देश की राजधानी और एनसीआर के इलाकों को धुंध की चादर ने लपेट लिया है, इसके पीछे का एक कारण फसल के अवशेषों यानी पराली जलाने से निकलने वाला धुआं भी है। फसल के अवशेषों से निपटने के लिए कई तरह के सुझाव और तरीके अपनाए गए लेकिन सम्पूर्ण समाधान अभी तक नहीं मिल पाया है।

अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए एक नया तरीका सुझाया है, जिसे बायोचार कहा गया है। बायोचार फसल के त्यागे गए अवशेषों जैसे कार्बनिक पदार्थों को गर्म करके बनाया गया एक कोयला है, जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को कम करने का एक अहम रास्ता दिखाता है।

वहीं, जलवायु वैज्ञानिकों ने भी चेतावनी दी है कि वायुमंडल में सीओ2 को सीमित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

फसल के अवशेषों के अपनी तरह के पहले उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले वैश्विक डेटासेट से बने नए मानचित्र उन इलाकों को उजागर करते हैं जहां अवशेषों का उपयोग बायोचार के उत्पादन करने के लिए स्थायी रूप से किया जा सकता है।

शोध में पाया गया है कि 12 देशों के पास फसल अवशेषों को बायोचार में बदल करके अपने वर्तमान कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 20 फीसदी से अधिक को अलग करने की तकनीकी क्षमता है। भूटान अपने 68 फीसदी उत्सर्जन को बायोचार के रूप में अलग करने की क्षमता के साथ पहले पायदान पर है, इसके बाद भारत 53 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है।

"फसल अवशेषों से बायोचार कार्बन को अलग करने की क्षमता: एक वैश्विक स्थानीय रूप से स्पष्ट आकलन" नामक अध्ययन, जीसीबी बायोएनर्जी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

सह-अध्ययनकर्ता डोमिनिक वूल्फ ने अध्ययन के हवाले से कहा कि, हम एक अनोखे युग में प्रवेश कर रहे हैं जहां जीवाश्म ईंधन के उपयोग में तेजी से कमी भी जलवायु परिवर्तन से मनुष्यों और पारिस्थितिक तंत्र दोनों को होने वाले गंभीर नुकसान से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। वूल्फ कृषि और जीव विज्ञान महाविद्यालय में स्कूल ऑफ इंटीग्रेटिव प्लांट साइंस मृदा और फसल विज्ञान अनुभाग के शोधकर्ता हैं।

उन्होंने कहा, हमें अतिरिक्त सीओ2 को भी कम करने की जरूरत है। फसल के अवशेषों से बायोचार बनाना हमारे पास मौजूद कुछ उपकरणों में से एक है जो भूमि के लिए प्रतिस्पर्धा किए बिना बड़े पैमाने पर ऐसा किया जा सकता है।

बायोचार न केवल वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में कमी कर सकता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार करता है और पौधों की वृद्धि को लाभ पहुंचाता है। जब इसे मिट्टी में मिलाया जाता है, तो बायोचार सदियों तक मिट्टी में कार्बन को अलग रखता है।

अध्ययन से पता चलता है कि, सैद्धांतिक रूप से, यदि विश्व स्तर पर कृषि द्वारा उत्पन्न फसल अवशेषों की कुल मात्रा को बायोचार में बदल दिया जाता है, तो यह सालाना संग्रहीत अधिकतम एक अरब मीट्रिक टन कार्बन को अलग कर देगा। उस कार्बन का तीन-चौथाई भाग 100 वर्षों के बाद भी अलग रहेगा, जो कृषि से होने वाले सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 80 फीसदी की भरपाई करने के लिए पर्याप्त है।

वुल्फ ने कहा, स्थायी अवशेषों की कटाई और फसल अवशेषों जैसे पशुओं को चारे के रूप में खिलाने के लिए प्रतिस्पर्धी उपयोग की सीमाओं पर विचार करते समय भी वैश्विक बायोचार उत्पादन क्षमता उस मात्रा का लगभग आधा है।

इन सीमाओं पर विचार करते समय, संभावित वैश्विक बायोचार उत्पादन की मात्रा प्रति वर्ष 51 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन है, जिसमें 100 वर्षों के बाद लगभग 36 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन शेष रहता है।

वूल्फ ने कहा, फसल अवशेष उत्पादन और बायोचार अलग करने के उच्च-रिज़ॉल्यूशन मानचित्र बायोचार उत्पादन और बायोचार उत्पादन क्षमता में निवेश से संबंधित अहम जानकारी प्रदान करेंगे और निर्णय लेने में सहायता करेंगे।

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