दूषित होती मिट्टी: शहरी हरियाली जितना ही प्राकृतिक क्षेत्रों में घुल चुका है प्रदूषण का जहर

मिट्टी में मौजूद यह प्रदूषक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं, जिससे अंटार्कटिका जैसे निर्जन क्षेत्र भी सुरक्षित नहीं हैं
फोटो: आईस्टॉक
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आज बढ़ता प्रदूषण सीमाओं के परे पहुंच चुका है, चाहे जल हो या नभ कोई भी प्रदूषण के इस बढ़ते जहर से सुरक्षित नहीं है। ऐसा ही कुछ जीवनदायनी मिट्टी के साथ भी हो रहा है। हालांकि यह माना जाता रहा है कि प्राकृतिक वातावरण इस बढ़ते मृदा प्रदूषण से बचे हुए हैं। लेकिन यह सच नहीं है, अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में मिट्टी में बढ़ते प्रदूषण से प्राकृतिक वातावरण भी शहरों में मौजूद हरे-भरे क्षेत्रों जितना ही त्रस्त हैं।

आज शहरी हरियाली और उसके आसपास मौजूद प्राकृतिक वातावरण दोनों जगहों पर मिट्टी में मौजूद भारी धातुओं, कीटनाशकों, माइक्रोप्लास्टिक्स और एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन का स्तर करीब-करीब एक जितना ही है। देखा जाए तो मिट्टी में मौजूद यह प्रदूषक पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं।

यह जानकारी भारत, स्पेन, चीन, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, चिली, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, फ्रांस, पुर्तगाल, स्लोवेनिया, मैक्सिको, अमेरिका, ब्राजील और इजराइल में अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों से जुड़े 40 से अधिक शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं। इस रिसर्च में हैवी मेटल्स, आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, लेड, मरकरी, निकेल, जिंक, 46 कीटनाशकों और माइक्रोप्लास्टिक्स पर फोकस किया है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े इकोलॉजिस्ट कार्लोस सैंज लाजारो का कहना है कि मृदा प्रदूषण से जुड़ा पर्यावरणीय तनाव, चाहे वो प्राकृतिक हो या मनुष्यों के कारण, जैव विविधता को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है। साथ ही यह प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ पारिस्थितिक तंत्र की सहने की क्षमता को कमजोर कर सकता है।

इसी तरह शहरी क्षेत्रों में बढ़ता मृदा प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए मिट्टी में मौजूद जहरीली धातुएं पानी की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा शहरों में हरियाली से भरे क्षेत्र लोगों के मनोरजंन का महत्वपूर्ण स्थान हैं जहां वो सीधे तौर पर मिट्टी के संपर्क में आते हैं।

वर्तमान में देखें तो मृदा प्रदूषण के लिए वाहनों से होता उत्सर्जन, औद्योगिक प्रक्रियाएं और कीटनाशक के साथ-साथ कचरे का सही तरीके से प्रबंधन न करना जिम्मेवार है। ऐसे में यही माना जाता रहा है कि प्राकृतिक क्षेत्रों की तुलना में शहरों में मौजूद यह हर-भरे क्षेत्र इस प्रदूषण से कहीं ज्यादा प्रभावित होते हैं, जबकि प्राकृतिक क्षेत्र भौगोलिक रूप से इस प्रदूषण से दूर होने के कारण इसके बढ़ते जहर से बचे रहते हैं।

हालांकि रिसर्च के मुताबिक यह सही नहीं है। हैवी मेटल्स, कीटनाशक, माइक्रोप्लास्टिक और एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन जैसे यह जानलेवा प्रदूषक हवा, पानी और कचरे के अनियंत्रित निपटान के कारण प्राकृतिक वातावरण में फैल रहे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक छह महाद्वीपों में इस बात के सबूत मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि वहां शहरों और प्राकृतिक क्षेत्रों में मिट्टी में मौजूद प्रदूषकों की मात्रा करीब-करीब एक बराबर है।

अंटार्कटिका जैसे निर्जन क्षेत्र की मिट्टी में भी मिले हैं माइक्रोप्लास्टिक्स के सबूत

इसी तरह अध्ययन के मुताबिक मनुष्यों द्वारा बनाया माइक्रोप्लास्टिक्स भी न केवल शहरों में बल्कि दुनिया भर के नेचुरल इकोसिस्टम में घुल चुका है। हैरान की बात है कि इसकी मात्रा शहरी हरित क्षेत्रों और प्राकृतिक वातावरण की मिट्टी में लगभग एक जितनी थी। यहां तक की उनका पॉलीमर भी एक जैसा था।

पहले भी रिसर्च से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अक्सर क्षेत्रों में पैदा होने वाले यह प्लास्टिक्स के महीन कण हवा के जरिए दूर-दराज के क्षेत्रों को प्रभावित कर रहे हैं। पेरिस, लंदन और डोंगगुआन (चीन) जैसे शहरों से पैदा हो रहे फाइबर इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। यह फाइबर आमतौर पर सिंथेटिक कपड़े, पॉलिएस्टर और पॉलीप्रोपाइलीन से बने होते हैं।

अंटार्कटिका के निर्जन क्षेत्रों की मिट्टी में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के कण मिले हैं। जो अंटार्कटिका में अनुसंधान स्टेशनों और अन्य महाद्वीपों से समुद्र और हवा के जरिए लाए गए प्लास्टिक के कण हो सकते हैं। इसी तरह और पर्यटन जैसी अन्य गतिविधियों के चलते भी अंटार्कटिका की मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक्स जमा हो रहे हैं।

रिसर्च में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि प्राकृतिक क्षेत्रों की मिट्टी में मिली माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा और विशेषताएं भी दुनिया भर के शहरी पार्कों और उद्यानों की मिट्टी में मिले माइक्रोप्लास्टिक जैसी हैं। देखा जाए तो मिट्टी में घुलता यह जहर इस बात की ओर स्पष्ट तौर पर इशारा करता है कि इस बढ़ते प्रदूषण से दुनिया का कोई भी क्षेत्र सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।  

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