वायु प्रदूषण के चलते दक्षिण एशिया में हर साल साल 349,681 महिलाएं मातृत्व के सुख से वंचित रह जाती हैं, जोकि इस क्षेत्र में गर्भावस्था को होने वाले नुकसान का करीब 7.1 फीसदी है। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे में यदि इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण के स्तर को 40 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूोबिक मीटर के स्तर पर सीमित कर लिए जाता है तो इन अजन्मों का जीवन बचाया जा सकता है।
गौरतलब है कि वायु प्रदूषण का यह स्तर उतना ही है जिसे भारत में पीएम 2.5 के मानक के रूप में मान्यता दी गई है। जिसका मतलब है कि यदि वायु में मौजूद वायु प्रदूषक पीएम 2.5 का स्तर 40 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूोबिक मीटर से कम है तो वो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। यह जानकारी अंतराष्ट्रीय जर्नल लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में सामने आई है।
हालांकि 7.1 फीसदी नुकसान का यह अनुमान भारत के वायु गुणवत्ता सम्बन्धी मानक (40 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूोबिक मीटर के स्तर) पर आधारित है, लेकिन यदि डब्ल्यूएचओ के 10 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूोबिक मीटर मानक को देखें तो यह खतरा 29 फीसदी तक बढ़ जाता है।
भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान पहले ही दुनिया भर में खराब वायु गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में इन देशों में बढ़ता वायु प्रदूषण गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। शोध से पता चला है कि खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने से उनमे स्टिलबर्थ और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।
दुनिया भर में दक्षिण एशिया सबसे ज्यादा घनी आबादी वाला क्षेत्र है। जहां वायु प्रदूषण (पीएम 2.5) का स्तर तय मानकों से कहीं ज्यादा है। साथ ही यहां सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते गर्भावस्था के नुकसान की दर भी दुनिया में सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि यहां प्रदूषण गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। ऐसे में इस क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में आया सुधार यहां मातृ स्वास्थ्य के स्तर में भी सुधार कर सकता है।
मातृत्व के होने वाले नुकसान का यह दर्द न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी महिलाओं को तोड़ देता है। इस शोध से जुडी शोधकर्ता तियानजिया गुआन ने बताया कि "हम जानते हैं कि अपने गर्भस्थ शिशु को खोने से महिलाओं पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक प्रभाव पड़ता है। जिसमें प्रसव के बाद अवसाद और अगली गर्भावस्था के दौरान शिशु मृत्यु का खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसे में गर्भावस्था के इस नुकसान को कम करने से लैंगिक असमानता में भी सुधार किया जा सकता है।"
शोध में क्या कुछ निकलकर आया सामने
यह शोध 1998 से 2016 के बीच स्वास्थ्य पर किए सर्वेक्षणों के आंकड़ों पर आधारित है। जिसमें गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के जोखिम को समझने के लिए उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है। पीएम 2.5 के संपर्क में आने से महिलाओं में गर्भावस्था के नुकसान का खतरा कैसे बढ़ जाता है यह समझने के लिए उन्होने एक मॉडल तैयार किया है। जिसमें उन्होंने गर्भावस्था के दौरान महिला की आयु, तापमान, मौसमी भिन्नता और गर्भावस्था के नुकसान सम्बन्धी दीर्घकालिक रुझानों को भी ध्यान में रखा है।
इसके आधार पर उन्होंने 2000 से 2016 के बीच प्रदूषण के चलते गर्भावस्था को हुए नुकसान का आंकलन किया है। यह आंकलन भारत और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वायु गुणवत्ता को लेकर जारी मानकों को भी ध्यान में रखता है। इस शोध में जिन 34,197 महिलाओं ने अपने अजन्मों को खोया है, उनमें से 77 फीसदी भारत, 12 फीसदी पाकिस्तान और 11 फीसदी बांग्लादेश की हैं। इनमें से 27,480 मामले गर्भपात और 6,717 स्टिलबर्थ के सामने आए थे।
शोध में यह भी पता चला है कि यदि वायु में 10 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूोबिक मीटर पीएम 2.5 की वृद्धि होती है तो उससे जोखिम में 3 फीसदी की वृद्धि हो जाती है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों और अधिक उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं में यह जोखिम शहरों की कम उम्र में मां बनने वाली महिलाओं की तुलना में कहीं ज्यादा था।
दुनिया के लिए बड़ा खतरा है वायु प्रदूषण
वैसे भी वायु प्रदूषण दुनिया के लिए कोई नया नहीं है। वायु प्रदूषण का खतरा कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते असमय मारे जाते हैं। जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रति व्यक्ति तीन साल छीन रहा है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सही नहीं है।
हाल ही में जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते भारत में 2019 में 116,000 से भी ज्यादा नवजातों की मौत हुई, जबकि इसके चलते 16.7 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वैसे भी देश में शायद ही ऐसा कोई शहर है जो इस प्रदूषण के असर से बचा है। जबकि यदि वैश्विक आंकड़ों की बात करें तो इसके चलते 2019 में 476,000 नवजातों की मौत उनके जन्म के पहले महीने के भीतर ही हो गई थी।