पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (डब्ल्यूबीपीसीबी) ने पश्चिम बर्धमान, बराकर स्थित नीमाकलाली रोड स्थित मैसर्स सराफ सिलिकेट्स के मामले में एनजीटी को एक हलफनामा सौंपा।
यह उद्योग महीने में लगभग 300 मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता के साथ सोडियम सिलिकेट के निर्माण में लगा हुआ था। इसके खिलाफ नीमाकलाली मोर निवासी द्वारा अपने आसपास के वातावरण में प्रदूषण फैलाने के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है।
एसपीसीबी ने निरीक्षण के दौरान पाया कि उद्योग के दो कोयले से चलने वाले बॉयलर चालू नहीं थे, टाल (स्टैक) से घने काले धुएं का उत्सर्जन हो रहा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण (एपीसीडी) भट्ठी ठीक से संचालित नहीं हो रही है।
इसके अलावा, इकाई घनी आबादी वाले आवासीय क्षेत्र में स्थित है। इकाई के पास खतरनाक अपशिष्ट से संबंधित अनुमति भी नहीं है।
डब्ल्यूबीपीसीबी द्वारा निरीक्षण के दौरान पर्यावरणीय मानदंडों का पालन न करने के लिए उद्योग को 26 जुलाई, 2019 को सुनवाई के लिए बुलाया गया था। उद्योग के सहायक सुनवाई में उपस्थित हुए और उपर्युक्त अवलोकन से सहमत भी हुए। लेकिन वह पर्यावरणीय मानदंडों का पालन न करने पर कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं कर पाए। इस प्रकार, एसपीसीबी ने इकाई को बंद करने और बिजली काटने के लिए निर्देश जारी किए।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई को उत्तर प्रदेश राज्य को ठोस कचरे और अपशिष्ट स्थल की सफाई को लेकर चेतावनी दी। इसमें कहा गया कि यमुना के किनारों पर ठोस कचरे की अनियंत्रित डंपिंग का सामाधान न करने, वृंदावन के पुराने अपशिष्ट स्थल के वैज्ञानिक तरीके से सफाई न करने से - पर्यावरण और जनता के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के लिए राज्य सरकार पर जुर्माना लगाया जाएगा।
न्यायमूर्ति एस के सिंह की अध्यक्षता वाली निगरानी समिति / निरीक्षण समिति ने 23 जुलाई को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। एनजीटी ने उल्लेख किया कि स्थिति के समाधान के लिए अब तक उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं। निरीक्षण समिति ने पाया कि अपशिष्ट पानी के संग्रह की व्यवस्था नहीं की गई थी, अपशिष्ट पानी की नाली बंद पाई गई। प्रसंस्करण क्षमता हर दिन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त थी लेकिन यह पुराने कचरे से निपटने में असमर्थ थी।
निरीक्षण समिति ने सिफारिश की कि बायो वेस्ट को उपचारित करने में सफल ने होने पर इसे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। विकेन्द्रीकृत (डिसेन्ट्रलाइज) अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र, जैविक अपशिष्ट पौधों के लिए खाद के रूप में आदि का उपयोग राज्य अधिकारियों द्वारा स्वीकार कर इसका अनुपालन किया जाना चाहिए।
शहरी विकास विभाग ने 30 जुलाई, 2020 की अपनी रिपोर्ट में, ट्रिब्यूनल को सूचित किया कि सैनिटरी इंस्पेक्टर और एक कार्यकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की गई है। शहरी स्थानीय निकाय के अध्यक्ष के खिलाफ भी कार्रवाई की गई। एनजीटी ने कहा इस तरह की कार्रवाई शायद ही पर्याप्त है।
एनजीटी ने निरीक्षण समिति को वैज्ञानिक तरीके से कचरा प्रबंधन के लिए निर्देशों के अनुपालन की निगरानी करने और 31 दिसंबर, 2020 तक एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली ने टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड द्वारा खुर्जा, जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश में थर्मल पावर स्टेशन स्थापित करने के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी की वैधता पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
यह रिपोर्ट 04 अगस्त, 2020 को एनजीटी की साइट पर अपलोड की गई थी।
परियोजना के अधिवक्ता द्वारा व्यापक वायु गुणवत्ता के आंकड़ों की यथार्थता पर पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा भरोसा किया गया था।
रिपोर्ट में मैसर्स टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के खुर्जा सुपर थर्मल पावर प्लांट की प्रस्तावित स्थल के आसपास के चार स्थानों पर वायु गुणवत्ता के आंकड़े (एएक्यू) शामिल किए गए थे। इसके अलावा इस बात पर सवाल था कि ऊपरी गंगा नहर के पानी से बहाव को प्रभावित किया गया या नहीं।
समिति ने कहा कि सर्दियों में 31 जनवरी-04 फरवरी, 2020 तक पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता स्थानीय गतिविधियों और मौसम की स्थिति (कम हवा, कम तापमान और घरेलू ईंधन जलाने, विशेष रूप से सुबह के समय) के कारण हो सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रस्तावित परियोजना स्थल पर हवा की दिशा उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व और पश्चिम से पूर्व की ओर है। निकटतम खुर्जा शहर है जो उत्तर पश्चिम में है और प्रस्तावित परियोजना स्थल से ऊपर की दिशा में है। दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जो उत्तर पश्चिम में है, प्रस्तावित परियोजना स्थल से भी उलटी दिशा में है।
समिति की राय थी कि एएक्यू का स्तर प्रकृति में गतिशील है और स्थानीय परिस्थितियों और जलवायु परिस्थितियों से प्रभावित है, जिसे प्रस्तावित परियोजना के मानसून 2012 और ग्रीष्मकालीन 2016 के पर्यावरण प्रभाव आकलन आंकड़े और समिति द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों की तुलना करते समय एक जैसा माना जाना चाहिए।
पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम (पीसीएमसी), पिंपरी द्वारा एनजीटी के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत गई थी जिसमें चिखली (12 एमएलडी), बोफेल (5 एमएलडी) और पिंपल निलख (15 एमएलडी) में 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण के महत्व को समझाया गया था।
रिपोर्ट में पीसीएमसी-पुणे क्षेत्र के अंदर तीन प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थानों का उल्लेख किया गया है। पीसीएमसी क्षेत्र के अंदर एसटीपी के निर्माण को शुरू करने की अनुमति मांगी गई है। पीसीएमसी की सीमा में तीन नदियां बह रही हैं - मुला, इंद्रायणी और पवना। चिखली और अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में नाले सीधे इंद्रायणी नदी में मिल रहे हैं। अनुपचारित पानी का कुछ हिस्सा इंद्रायणी नदी के किनारे, अलंदी तक बहता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चिखली में एसटीपी का निर्माण करना बेहद आवश्यक है, जो अनुपचारित पानी को उपचारित करेगा और इसे इंद्रायणी नदी में मिलने से रोकेगा।
पीसीएमसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चिखली में एसटीपी का निर्माण 'कानूनी और उचित' है और किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। एसटीपी का निर्माण नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित नहीं करेगा क्योंकि नदी के उच्च बाढ़ स्तर (एचएफएल) को देखते हुए योजना बनाई गई थी। एसटीपी के निर्माण से नदी के क्रॉस सेक्शन में भी बदलाव नहीं होगा।
यह रिपोर्ट 04 अगस्त को एनजीटी की साइट पर अपलोड की गई थी।