भारत में उद्योगों से निकलने वाले 75 करोड़ टन कचरे का किया जा सकता है पुनः उपयोग: सीएसई रिपोर्ट

सीएसई रिपोर्ट में औद्योगिक कचरे के दोबारा उपयोग की संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है। 2030 तक भारत में करीब 5.25 करोड़ टन स्टील स्लैग पैदा हो सकता है, जिसमें से चार करोड़ टन का उपयोग सीमेंट बनाने में किया जा सकता है
कचरे का बढ़ता पहाड़; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत में उद्योगों से निकलने वाले करीब 75 करोड़ टन कचरे का दोबारा उपयोग किया जा सकता है। इसमें स्टील स्लैग, कचरे से पैदा ईंधन (आरडीएफ), फ्लाई ऐश, रेड मड और बायोमास आदि शामिल हैं। इससे न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबाव को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही तेजी से बढ़ते उत्सर्जन पर भी लगाम लगाई जा सकेगी।

रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक कचरे के पुनः उपयोग से जहां कोयला, जिप्सम जैसे 45 करोड़ टन प्राकृतिक संसाधनों को बचाया जा सकेगा। साथ ही पांच से नौ करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को भी रोका जा सकेगा।

"गुड प्रैक्टिस इन इंडस्ट्रियल वेस्ट सर्कुलेरिटी" नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक सर्कुलर इकॉनमी कचरे के उचित प्रबंधन से कहीं अधिक है। यह प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के साथ-साथ बढ़ते कार्बन उत्सर्जन को भी कम करने में मददगार साबित हो सकती है। मतलब की यह पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन रोकथाम में भी मदद कर सकती है।

गौरतलब है कि अपनी रिपोर्ट में सीएसई ने इस बात को उजागर किया है कि 2030 तक उद्योग अपने कचरे का पुनः उपयोग कैसे कर सकते हैं। इसमें प्राकृतिक संसाधनों की बचत, कार्बन उत्सर्जन और लागत में कमी जैसे लाभों पर प्रकाश डाला है।

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इस विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संवाद में बोलते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा: "उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 30 फीसदी से अधिक का योगदान देते हैं। यह बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं,  साथ ही कचरे के साथ-साथ बड़ी मात्रा में उत्सर्जन भी कर रहे हैं।"

उनके मुताबिक आज देश दुनिया की नजरें सर्कुलरिटी पर टिकी हैं। यह इस विचार पर आधारित है कि अपशिष्ट केवल कचरा नहीं, बल्कि एक  मूल्यवान संसाधन है। यह मौजूदा सामग्रियों और उत्पादों के जीवन चक्र को बढ़ाने के लिए उन्हें साझा और पुनः उपयोग करने पर जोर देता है। साथ ही यह पुराने संसाधनों की मरम्मत और उनमें नयापन लाने के साथ उनके पुनर्चक्रण को भी प्रोत्साहित करता है।

आज देश दुनिया की नजरें सर्कुलरिटी पर टिकी हैं। यह इस विचार पर आधारित है कि अपशिष्ट केवल कचरा नहीं, बल्कि एक  मूल्यवान संसाधन है।

सुनीता नारायण, महानिदेशक, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)

औद्योगिक कचरे को लेकर एक नए दृष्टिकोण की है दरकार

नारायण ने आगे कहा, "औद्योगिक कचरे के प्रबंधन में एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हमें जहरीले पदार्थों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने से बचना चाहिए। इसकी जगह एक उद्योग से निकलने वाले कचरे का दूसरे में संसाधन के रूप में उपयोग करना चाहिए। औद्योगिक गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण को सीमित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके लिए एक बेहतर सर्कुलर सिस्टम को अपनाया जाना चाहिए।"

उनके मुताबिक सीएसई का काम दर्शाता है कि सर्कुलरिटी गेम-चेंजर साबित हो सकती है। इससे देश में संसाधनों का कहीं अधिक कुशलता से इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी।

सीएसई में औद्योगिक प्रदूषण कार्यक्रम के निदेशक निवित यादव ने बताया कि “यह संवाद इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे सर्कुलरिटी अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार ला सकती है, साथ ही कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकती है। यह संसाधनों की बचत के साथ-साथ लागत में भी कटौती कर सकती है।“

“इस कार्यक्रम में भारत में औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए सर्वोत्तम प्रथाओं का भी प्रदर्शन किया गया है। इसमें औद्योगिक कचरे के सर्कुलर भविष्य से जुड़े दृष्टिकोण को भी रेखांकित किया गया है।“

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सीएसई अध्ययन के निष्कर्ष साझा करते हुए सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण कार्यक्रम के प्रबंधक, शोभित श्रीवास्तव ने कहा, "कई भारतीय उद्योग पहले ही इस दिशा में सुधार के लिए कदम उठा रहे हैं। उन्होंने इस दिशा में कई बेहतर काम किए हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।"

 उनके मुताबिक गुजरात, गोवा और कर्नाटक जैसे राज्यों ने सर्कुलरिटी की दिशा में पहल की है, लेकिन और अधिक राज्यों को इसका अनुसरण करने की आवश्यकता है।

सीएसई रिपोर्ट में औद्योगिक कचरे के दोबारा उपयोग की संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है। इसके मुताबिक 2030 तक भारत में करीब 5.25 करोड़ टन स्टील स्लैग पैदा हो सकता है, जिसमें से 3.53 से 4.1 करोड़ टन का उपयोग सीमेंट बनाने में किया जा सकता है। इसी तरह, पैदा होने वाली 43.7 करोड़ टन फ्लाई ऐश में से 20.8 से 23.1 करोड़ टन फ्लाई ऐश का उपयोग सीमेंट उद्योग में किया जा सकता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीमेंट संयंत्रों में कचरे से बनने वाले ईंधन (आरडीएफ) और थर्मल पावर प्लांट में बायोमास का उपयोग किया जा सकता है। इससे 2030 तक 4.66 से 8.56 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है।

श्रीवास्तव कहते हैं, "थर्मल पावर प्लांट में बायोमास का उपयोग कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है। वहीं  नए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2024 से उद्योगों में आरडीएफ और बायोमास के उपयोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।"

संवाद में भाग लेने वाले सतीश उपाध्याय ने कहा, "सर्कुलरिटी को सफल बनाने के लिए हमें मजबूत आर्थिक समर्थन और निवेश की आवश्यकता है।" गौरतलब है कि सतीश उपाध्याय नेशनल मिशन ऑन यूज ऑफ बायोमास इन पावर प्लांट के मिशन निदेशक हैं।

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सीएसई रिपोर्ट में भारत में औद्योगिक कचरे को ट्रैक और रिकॉर्ड करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। सर्कुलरिटी को बढ़ावा देने के लिए, उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। साथ ही सरकार को विभिन्न क्षेत्रों के लिए कचरे के पुनर्चक्रण से जुड़ी नीतियां बनानी चाहिए।

वहीं यादव जोर देकर कहते हैं, भारत को औद्योगिक कचरे के चक्रीकरण के लिए एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण और मिशन की तत्काल आवश्यकता है।" उनके मुताबिक विभिन्न उद्योगों के लिए विशिष्ट रणनीतियों के साथ एक चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी कार्य योजना समय की मांग है।

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