धातु खनन से प्रदूषित नदियों और बाढ़ के मैदानों से 2.3 करोड़ लोगों के प्रभावित होने के आसार

अध्ययन के मुताबिक, लगभग 2.848 करोड़ लोग बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं, यह 57.2 लाख पशुओं का निवास स्थान और चरागाह हैं और 65,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक सिंचित भूमि को कवर करते हैं
फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन ने दुनिया भर में नदियों और बाढ़ के मैदानों पर धातु खनन के प्रदूषण से भारी असर पड़ने के बारे में खुलासा किया है। अध्ययन में इस बात की आशंका जताई गई है कि, 2.3 करोड़ लोगों पर जहरीले कचरे की भारी मात्रा का बुरा असर पड़ सकता है।

यह अध्ययन, लिंकन विश्वविद्यालय, यूके में लिंकन सेंटर फॉर वॉटर एंड प्लैनेटरी हेल्थ के निदेशक, प्रोफेसर मार्क मैकलिन और क्रिस थॉमस के नेतृत्व में किया गया। इसमें विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के डॉ. अमोघ मुदभटकल ने सहयोग किया है। यह अध्ययन धातु खनन गतिविधियों से जुड़ी पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य की चुनौतियां को उजागर करता है। 

टीम द्वारा एकत्रित 185,000 धातु खदानों के एक नए वैश्विक डेटाबेस का उपयोग करते हुए और प्रक्रिया-आधारित मॉडलिंग और अनुभव आधारित परीक्षण के आधार पर, अध्ययन ने नदी प्रणालियों में धातु खनन प्रदूषण के वैश्विक स्तर और मानव आबादी और पशुधन पर पड़ने वाले इसके प्रभावों का आकलन किया।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में सभी ज्ञात सक्रिय और निष्क्रिय धातुओं को खनन स्थलों से लेकर एक प्रदूषण का मॉडल तैयार किया गया, जिसमें खदान के कचरे को संग्रहित करने के लिए उपयोग की जाने वाली अवशेष भंडारण सुविधाएं भी शामिल हैं। सीसा, जस्ता, तांबा और आर्सेनिक जैसे हानिकारक संदूषकों को देखा गया, जो खनन कार्यों से नीचे की ओर बह जाते हैं, जो अक्सर लंबे समय तक नदियों और बाढ़ के मैदानों में जमा रहते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य के प्रोफेसर मार्क मैकलिन ने कहा, दुनिया भर में नदी प्रणालियों में खदान कचरे के फैलाव का पूर्वानुमान लगाने की हमारी नई विधि सरकारों, पर्यावरण नियामकों, खनन उद्योग और स्थानीय समुदायों को एक उपकरण प्रदान करती है। यह पहली बार, उन्हें खनन के से दूसरी जगहों या ऑफसाइट और नीचे की और बहने वाले पानी के प्रभावों का आकलन करने में सक्षम बनाएगी।

उन्होंने उम्मीद जताई है कि इससे ऐतिहासिक और वर्तमान खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना आसान हो जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समुदायों पर भविष्य में होने वाले खनन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही खाद्य और जल सुरक्षा की भी रक्षा होगी।

स्वच्छ या ग्रीन ऊर्जा की मांगों को पूरा करने के लिए धातुओं और खनिजों की बढ़ती मांग के खिलाफ जारी किए गए, नए परिणाम संदूषण की व्यापक पहुंच को उजागर करते हैं, जो वैश्विक स्तर पर लगभग 479,200 किलोमीटर नदी चैनलों को प्रभावित करता है और 164,000 वर्ग किलोमीटर बाढ़ के मैदानों को कवर करता है।

निष्कर्षों के अनुसार, लगभग 2.848 करोड़ लोग बाढ़ के इन प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं, यहां 57.2 लाख पशुओं का निवास स्थान और चरागाह हैं जो 65,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक सिंचित भूमि को कवर करते हैं। कई देशों के उपलब्ध आंकड़ों की कमी के कारण, अध्ययन करने वाली टीम का मानना है कि ये संख्याएं एक समान्य अनुमान हैं।

मनुष्यों के लिए इन दूषित धातुओं के संपर्क में आने के विभिन्न रास्ते मौजूद हैं, जिनमें त्वचा के संपर्क के माध्यम से सीधे संपर्क,  दूषित धूल में सांस लेना और दूषित पानी और दूषित मिट्टी पर उगाए गए भोजन का सेवन शामिल है।

यह कम आय वाले देशों और इन नदियों और बाढ़ के मैदानों पर निर्भर लोगों में शहरी और ग्रामीण समुदायों के स्वास्थ्य के लिए एक अतिरिक्त खतरा पैदा करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जो पहले से ही पानी से संबंधित बीमारियों के बोझ से दबे हुए हैं।

ब्रिटेन और अमेरिका सहित पश्चिमी यूरोप के औद्योगिक देशों में, यह प्रदूषण पानी और खाद्य सुरक्षा के लिए एक प्रमुख और बढ़ती समस्या है, महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए खतरनाक है और पर्यावरण में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को बढ़ा सकता है।

विश्लेषण और मॉडलिंग की अगुवाई करने वाले प्रोफेसर क्रिस थॉमस ने कहा, यदि दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा की ओर ले जाना है तो वैश्विक धातु खनन में तेजी से भारी वृद्धि होगी।

उन्होंने कहा, हमने जो अनुमानित वैश्विक प्रदूषण का मानचित्रण किया है, वह औद्योगिक युग की विरासत है, पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देने के लिए आधुनिक खनन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। हमारे तरीके, जो स्थानीय स्तर पर भी काम करते हैं,  इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण नया नजरिया जोड़ते हैं।

थॉमस ने बताया कि, इस क्षेत्र के साथ काम करने के लिए हमने अपने शोध केंद्र 'जल और ग्रहीय स्वास्थ्य विश्लेषिकी' की एक अनुप्रयुक्त इकाई स्थापित की है।

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के सस्टेनेबल मिनरल्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डियाना केम्प, ने परिणामों को काफी खतरनाक बताया। केम्प ने कहा, बुनियादी स्तर पर, ये निष्कर्ष हमें याद दिलाते हैं कि खनन से लंबी अवधि में नीचे की और के हिस्सों का भारी नुकसान हो सकता है।

बहुत से लोग खनन और धातुओं से लाभान्वित होते हैं, लेकिन हमें प्रभावित क्षेत्रों में रहने और काम करने वाले लोगों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को समझने और रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए।

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