पराली, पटाखों और बदलते मौसम के बीच कैसे रहेगा दिल्ली-एनसीआर में हवा का हाल

क्या वायु प्रदूषण में गिरावट का जो सिलसिला महामारी के दौरान शुरू हुआ था, वो इन सर्दियों में भी जारी रहेगा, यह एक बड़ा सवाल है
पराली, पटाखों और बदलते मौसम के बीच कैसे रहेगा दिल्ली-एनसीआर में हवा का हाल
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दिल्ली-एनसीआर में गुलाबी सर्दियों की शुरूआत हो चुकी है। उसके साथ ही वायु गुणवत्ता में गिरावट का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। लेकिन अभी ही यह देखा जाना बाकी है कि क्या वायु प्रदूषण में गिरावट का जो सिलसिला महामारी के दौरान शुरू हुआ था, वो इन सर्दियों में भी जारी रहेगा।

इस बारे में ग्लोबल थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा सर्दियों में वायु गुणवत्ता को लेकर जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि इस बार सर्दियों की शुरूआत तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा साफ-सुथरी थी, जिसके लिए सितंबर-अक्टूबर में हुई बारिश को वजह माना है।

गौरतलब है कि इस साल अक्टूबर के पहले दो हफ्तों में दिल्ली में 115 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जिसकी फायदा दिल्ली में वायु गुणवत्ता के रूप में पहुंचा। जब 2018 में व्यापक पैमाने पर निगरानी शुरू होने के बाद से यह सर्दियों की सबसे साफ-सुथरी शुरुआत थी। 

अक्टूबर के पहले दो सप्ताह के दौरान दिल्ली में पीएम2.5 का औसत स्तर 43 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जोकि इस अवधि के लिए 2020 में दर्ज किए गए स्तर के आधे से भी कम है। इस अक्टूबर में, अब तक, बेहतर वायु गुणवत्ता वाले पांच दिन दर्ज हो चुके हैं, जो पिछले आठ सर्दियों के मौसमों में सबसे अच्छा रिकॉर्ड है।

लेकिन इसके बाद वायु गुणवत्ता ने एक बार फिर करवट लेना शुरू की। 16 अक्टूबर को दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया था। यह पिछली बार से कम है, लेकिन रिपोर्ट में अंदेशा जताया गया है कि यह बहुत तेजी से बढ़ जाएगा। यदि 19 अक्टूबर की बात करें तो दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 228 दर्ज किया गया था, जोकि वायु गुणवत्ता के 'खराब' स्तर को दर्शाता है।

हर दिन के साथ दूषित हो रही है हवा

देखा जाए तो पराली जलाने से होने वाला धुआं इसमें मददगार रहा है। सफर के मुताबिक, इस धुएं ने 17 अक्टूबर को दिल्ली के पीएम2.5 के स्तर में करीब 3 फीसदी का योगदान दिया था।

वर्ष के इस समय के लिए यह तुलनात्मक रूप से कम है। लेकिन यह अब तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि पंजाब-हरियाणा-दिल्ली में आगजनी की गतिविधियां तेज हो गई हैं। वहीं यदि पिछले वर्षों के आधार पर देखें तो यदि यही स्थिति आगे भी जारी रहती है तो वायु गुणवत्ता बहुत जल्द खराब हो सकती है।

गौरतलब है कि हर वर्ष, साल के इस दौरान हवा दमघोंटू हो जाती है, जिसके लिए कई कारण जिम्मेवार होते हैं। वाहनों, उद्योगों आदि से निकलने वाला धुंए के साथ त्योहारों के मौसम में यातायात और पटाखों के कारण स्थानीय तौर पर प्रदूषण में वृद्धि होती है। जो मौसम की ठंड से भी प्रभावित होती है।

साल के इस समय में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। साथ ही पीछे लौटता हुआ मानसून अपने साथ इस धुंए और प्रदूषण को गंगा के मैदानी इलाकों में ले जाता है।

इसकी वजह से इस क्षेत्र में शहरों की हवा जानलेवा हो जाती है। देखा जाए तो लम्बे समय तक पड़ने वाली बारिश इस प्रदूषण को कम कर सकती है लेकिन वो केवल अस्थाई राहत है। इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि वायु गुणवत्ता के मामले में इस साल मानसून का मौसम पिछले आठ वर्षों में सबसे साफ था।

महामारी से पहले की तुलना में वायु गुणवत्ता में आया है 20 फीसदी का सुधार

2015 से 18 की सर्दियों की तुलना में देखें तो रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली-एनसीआर में महामारी के समय और बाद में पीएम 2.5 के औसत स्तर में 20 फीसदी का सुधार आया है लेकिन वायु गुणवत्ता में आते इस सुधार की गति अब थम गई है। इसी तरह 2021-22 में सर्दियों के दौरान दिल्ली एनसीआर के शहरों में पीएम2.5 का औसत स्तर 2020-21 की तुलना में 30 फीसदी तक कम था। इसमें भी गाजियाबाद और फरीदाबाद का प्रदर्शन सबसे खराब रहा था।  

गौरतलब है कि पिछले साल पंजाब-हरियाणा-दिल्ली में पराली जलाने की घटनाओं और उनकी तीव्रता में वृद्धि दर्ज की गई थी। विश्लेषण से पता चला है पिछले सात वर्षों में पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं 2021 में दर्ज की गई थी।

मोडिस द्वारा 2021 में अक्टूबर से नवंबर के बीच पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं में 10 फीसदी वृद्धि को दर्ज किया था। वहीं 2020 की तुलना में 5 फीसदी वृद्धि देखी गई थी। इसी तरह आग लगने की इन घटनाओं से पैदा होने वाला विकिरण मोडिस के अनुसार 2020 की तुलना में 13 फीसदी ज्यादा था। देखा जाए तो 2019 के बाद से आग की इन घटनाओं के मामलों और तीव्रता में लगातार वृद्धि हो रही है। हालांकि यह देखना बाकी है कि इस साल क्या होता है।

दीवाली पर सुधरेंगें या बिगड़ेंगें हालत   

दीवाली की रात प्रदूषण का स्तर क्या रहता है यह हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। देखा जाए तो दिल्ली-एनसीआर में पिछले कई वर्षों से यह ज्यादा ही रहा है।  विश्लेषण के अनुसार पिछले साल दिवाली की रात (रात 8 बजे से सुबह 8 बजे) पीएम2.5 का स्तर 747 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था जोकि 2020 में दीवाली की रात की तुलना में 22 फीसदी ज्यादा है।

2021 दिवाली की रात में वायु गुणवत्ता का स्तर दिवाली से पहले के सप्ताह की तुलना में 4.5 गुना ज्यादा था। यह देखा जाता है कि हर घंटे वायु प्रदूषण का स्तर कितना होता है और क्या वो 1,000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के आंकड़ों को पार करता है। पिछले साल दीपावली के दिन दिल्ली और उसके आसपास 38 में से 26 ऑपरेशनल मॉनिटरिंग स्टेशनों ने 1,000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की इस आंकड़े को पार कर लिया था। वहीं 2020 में दीवाली को इस आंकड़े को छूने वाले स्टेशनों की संख्या 23 और 2020 दीपावली की रात 22 थी।

वहीं यदि इस साल दीवाली की बात करें तो वो अपेक्षाकृत रूप से जल्द पड़ रही है, जिसका मतलब है कि मौसम में गर्माहट और हवा की स्थिति प्रदूषण को कम करने में मददगार होगी। देखा जाए तो पिछले दो वर्षों के विपरीत, पराली जलाने से होने वाले धुंए ने भी अब तक इस क्षेत्र की वायु गुणवत्ता को अब तक बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं किया है।

साथ ही अक्टूबर की शुरुआत में हुई बारिश ने हवा को साफ रखने में मदद की है।  पिछले वर्षों के आंकड़ों के आधार पर देखें तो इस साल दीवाली को वायु गुणवत्ता 300 से 600 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच रह सकती है। हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि दीवाली के दौरान और बाद में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ती हैं या नहीं।

हालांकि अनुमान है कि जिस तरह से पराली जलाने का सिलसिला इस बार देर से शुरू हुआ है उसके चलते इनकी गतिविधियां बढ़ सकते है और क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर बढ़ सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं की मानें तो वायु गुणवत्ता की बेहद खराब स्थिति से बचने के लिए प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

इस बारे में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि सर्दियों में प्रदूषण की तीव्रता और धुंध की गंभीरता इस बात पर निर्भर करेगी कि दिल्ली एनसीआर में वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए लम्बे समय से क्या प्रयास किए जा रहे हैं।

साथ ही समय की गंभीरता को देखते हुए वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। उनके अनुसार महामारी के बाद सर्दियों की वायु गुणवत्ता में गिरावट का जो सिलसिला थम गया था वो सुधरेगा या आगे स्थिति और खराब हो जाएगी यह वायु प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों को निशाना बनाने वाले उपायों की प्रभावशीलता पर निर्भर करेगा।

गौरतलब है कि केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) के पूर्वानुमानों के बाद सीएक्यूएम समिति ने बुधवार को एक आपातकालीन बैठक बुलाई थी, जिसमें बताया गया था कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 22 अक्टूबर तक 'बेहद खराब' स्तर पर पहुंच सकता है।

आशंका है कि यह सिलसिला अगले छह दिनों तक जारी रहेगा। ऐसे में दिल्ली-एनसीआर में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में डीजल जनरेटर के साथ लकड़ी, कोयले आदि के उपयोग पर रोक लगा दी है।

देश में वायु गुणवत्ता की ताजा जानकारी आप एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं 

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