हिमालयी राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में बादल फटने की घटनाओं को देखते हुए डॉप्लर रेडार लगाने की घोषणा की गई थी, लेकिन अब तक उत्तराखंड और हिमाचल में एक-एक रेडार ही लग पाया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के प्रति कितनी गंभीर हैं।
हिमालयी राज्यों में बादल फटने की घटनायें पिछले कुछ सालों में बढ़ी है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, बादल फटने की घटनायें सबसे ज्यादा प्री मानसून और मानसून में होती है। ऐसा इसलिये, क्योंकि ये ही ऐसा वक्त होता है, जब दो विक्षोभों के आपस में टकराने की घटनायें सामान्य तौर पर ज्यादा होती है और जानमाल का बड़ा नुकसान होता है।
2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में हुए ऐसे ही एक घटना में दस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। ऐसे हादसे भविष्य में दोबारा न हो, इसके लिये उत्तराखंड और हिमाचल में तीन-तीन और जम्मू-कश्मीर में दो डॉप्लर रेडार लगाने की घोषणा की गई थी।
हिमाचल प्रदेश मौसम विभाग के निदेशक सुरेंद्र पाल बताते हैं कि हिमाचल में तीन एक्स बैंड डाप्लर रेडार लगाये जाने हैं। जिसमें चंबा और मंडी में प्रस्तावित है जबकि शिमला के नजदीक कुफरी में लगाया गया डॉप्लर रेडार काम करने लगा है।
उन्होंने बताया कि डॉप्लर रेडार से मध्य और पश्चिमी हिमालय के वायुमंडल बदलाव संबंधी डाटा एकत्रित किया जाएगा और भारी से बहुत भारी बारिश होने की पहले ही संकेत मिल जांएगे। ये रेडार वांछित लक्ष्य को माइक्रोवेव सिग्नल के माध्यम से लक्षित करता है और विश्लेषण कर बादलों के विकास प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं। ये रेडार बादलों में मौजूद पानी के कणों का आकंलन कर सटीक डाटा देता है। जिससे पूर्वानुमान लगाया जाता है कि कितने मिलीमीटर तक बारिश हो सकती है।
उत्तराखंड में मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि उत्तराखंड में मुक्तेश्वर में डॉप्लर रेडार लग चुका है। जबकि लैंसडाउन और मसूरी के समीप सुरकंडा देवी मंदिर की पहाड़ी में लगाया जाना प्रस्तावित है। उन्होंने बताया डॉप्लर रेडार 100 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसम के बदलाव की जानकारी दे सकता है। यह वातावरण में फैले अति सूक्ष्म तरंगों को भी कैच करने में क्षमता रखता है। इसके साथ ही वातावरण में तैर रही पानी की बूंदों को पहचानने और उसकी दिशा का भी पता लगाने में सक्षम होता है। इस उपकरण के माध्यम से किस क्षेत्र में कितनी बारिश होगी, इसका पता लगाया जा सकता है। इसके साथ ही तेज तूफान की जानकारी भी देता है।
मौसम विभाग, कश्मीर के निदेशक सोनम लोटस कहते हैं कि जम्मू में जमीनी काम पूरा हो चुका है और केवल डॉप्लर को वहां पर कमिशन किया जाना है। इसके अलावा कश्मीर में बनीहाल में एक डॉप्लर रेडार लगाया जाना प्रस्तावित है। जबकि करगिल या लेह की तरफ अभी प्रस्तावित नहीं है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि डॉप्लर रेडार सौ फीसद बादल फटने की घटनाओं को पहले ही बता देते हैं। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक और वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक बिक्रम सिंह बताते हैं कि डॉप्लर रेडार कुछ घंटों के अंतराल में स्कैन पिक्चर जारी करते है। कई बार ऐसा भी होता है कि डाटा में बीस सेंटीमीटर तक की बारिश का आकलन होता है, लेकिन जमीन पर पहुंचने तक हवाओं की स्पीड उसे बिखरा देती है। जिससे जमीन पर पांच सेमी तक पानी गिर पाता है। इसलिये डाप्लर रेडार की निरंतर डाटा लेकर उसका आकंलन वैज्ञानिक करते हैं। लेकिन इसके आकंलन सबसे ज्यादा सटीक होते हैं और तेज पानी बरसने के आधे घंटे पहले भी ये सटीक डाटा दे सकता है। जिसको आपदा प्रबंधन विभाग को देकर जानमाल का बड़ा नुकसान बचाया जा सकता है।