उत्तराखंड में भारी बीतता है मॉनसून, चार साल में आई 183 आपदाएं

एक अध्ययन में कहा गया है कि 2020 से 2023 तक की अवधि में उत्तराखंड में जल संबंधी आपदाओं में 213 लोग मारे गए
उत्तराखंड में आपदा के कारण तबाह हुआ क्षेत्र, फोटो: ट्विटर
उत्तराखंड में आपदा के कारण तबाह हुआ क्षेत्र, फोटो: ट्विटर
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उत्तराखंड को भू-जल विज्ञान संबंधी आपदाओं के लिहाज से सबसे कमजोर बताया गया है। स्प्रिंगर की पत्रिका 'नेचुरल हैजर्ड्स' में प्रकाशित एक अध्ययन में देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ के जिलों को भू-जल विज्ञान संबंधी आपदाओं के लिए सबसे अधिक संवेदनशील माना गया है, जिनमें भूस्खलन, अचानक बाढ़, बादल फटना, मलबा बहना, चट्टानों का गिरना, चरम मौसम और भूमि का जलमग्न होना शामिल है।

अध्ययन में कहा गया है कि इस तरह की घटनाएं हिमालयी राज्य उत्तराखंड में बहुत सक्रिय तथा अक्सर होती हैं, मुख्य रूप से मॉनसून के दौरान ये घटनाएं और अधिक सक्रिय हो जाती हैं।

इसके अलावा अध्ययन में आपदा की भयावहता के आकलन करने की भी बात कही गई है और आपदा हॉटस्पॉट वाले जगहों की पहचान कर उनका  मानचित्रण भी किया गया है। वहीं अध्ययन में कहा गया है, इसे संचालित करने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों दृष्टिकोणों का उपयोग किया गया है।

उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में आपदाओं को देखें तो, इस साल की शुरुआत में चमोली जिले के जोशीमठ में भूमि धंसने के कारण यह इलाका सुर्खियों में रहा, जिसकी वजह से सैकड़ों परिवारों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा। उत्तरकाशी जिले में हाल ही में सिल्कयारा सुरंग के ढहने की घटना ने पिछले महीने लोगों का ध्यान इस और आकर्षित किया। पिथौरागढ़ जिले में भी नियमित रूप से भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं, खासकर मॉनसून के दौरान इनमें बढ़ोतरी देखी जा सकती है।

शोध के हवाले से मिजोरम विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती द्वारा एक अध्ययन किया गया। जिसमें उन्होंने 2020 से 2023 तक भू-जल विज्ञान संबंधी खतरों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें उत्तराखंड के बंदाल घाटी और सोंग नदी घाटी, दोनों पर आपदाओं के प्रभाव पर एक अनुभव आधारित अध्ययन भी शामिल है।

अध्ययन के मुताबिक, ये दोनों घाटियां बादल फटने के कारण अचानक आई बाढ़ और मलबे के प्रवाह से बुरी तरह प्रभावित हुई। वहीं, बंदाल घाटी के तीन गांवों में भारी बाढ़ और मलबा बहने से हुए नुकसान का घरेलू स्तर पर सर्वेक्षण किया गया।

अध्ययन के निष्कर्षों में कहा गया है कि 2020 से 2023 तक की चार साल की अवधि में, हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भारी नुकसान हुआ, जिसमें 213 लोग हताहत हुए, 5,275 लोग प्रभावित हुए, 553 पशु मारे गए, 301 घर ढह गए, 68 गांव प्रभावित हुए, 40 पुल ढह गए और 4,990 मीटर सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई।

साथ ही आंकड़ों के विश्लेषण और मानचित्रण के आधार पर उत्तराखंड हिमालय को आपदा हॉटस्पॉट और बार-बार घटने वाली प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर विभाजित किया गया।

अध्ययन के हवाले से अध्ययनकर्ता ने बताया कि इस अध्ययन में, आर्कजीआईएस का उपयोग मानचित्र बनाने के लिए किया गया और गूगल अर्थ इमेजरी और उपग्रह सेंटिनल 1-एसएआर से लिए गए चित्रों का भी उपयोग किया गया।

अध्ययन में कहा गया है कि 2020 से 2023 तक, विशेष रूप से मॉनसूनी मौसम के तीन महीनों, जुलाई, अगस्त और सितंबर  के दौरान आपदा की घटनाओं से संबंधित आंकड़ों को देखें तो कुल 183 घटनाएं सामने आई। इनमें से, सबसे अधिक घटनाएं 2022 में हुई थी, उसके बाद 2023, 2020 और 21 में हुई थीं। जिनमें भूस्खलन के 34.4 फीसदी मामले, उसके बाद अचानक बाढ़ के 26.5 फीसदी और बादल फटने के 14 फीसदी मामले सामने आए।

आपदाओं से बचने और निपटने के लिए सुझाव 

अध्ययन में सबसे अधिक आपदा-प्रवण क्षेत्रों, नदी घाटियों के किनारे और नाजुक ढलानों पर बस्तियों, बुनियादी ढांचे और मार्गों के निर्माण पर रोक लगाने की सिफारिश की गई है। वहीं यहां रहने वाले लोगों को प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिए तैयार करने में मदद करने के लिए पर्यावरण-आपदा खतरे को कम करने के उपाय, जैसे कि जंगलों और आर्द्रभूमि के संरक्षण के साथ-साथ नदी के किनारों और ढलानों जैसे नाज़ुक क्षेत्रों में वृक्षारोपण अभियान का भी सुझाव दिया गया है।

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