आपदा प्रदेश उत्तराखंड: पहले भूकंप से उजड़े, अब मलबे में दबे गांवों की कहानी

चमोली के नंदा नगर इलाके के तीन गांव 18-19 सितंबर की रात हुई अतिवृष्टि से तबाह हो गए थे। ग्रामीणों के पास अब सवाल यह है कि अब वे कहां बसें?
उत्तराखंड के चमोली जिले के गांव फाली लगा साउनटनोला में तबाही का दृश्य। फोटो : राजू सजवान
उत्तराखंड के चमोली जिले के गांव फाली लगा साउनटनोला में तबाही का दृश्य। फोटो : राजू सजवान
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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के गांव सेमी की विमला देवी की तरह चमोली जिले के गांव फाली लगा साउनटनोला की विमला देवी भी राज्य में हो रही आपदाओं का शिकार हैं। फर्क इतना है कि सेमी की विमला अभी अपने घर में ही रह रही है, लेकिन आपदा ने साउनटनोला की विमला देवी व उसके परिवार के सिर से छत ही छीन ली है। 

18-19 सितंबर 2025 की रात हुई भारी बारिश के कारण उनके घर के तीन तरफ से आफत आई। उनके घरों के नीचे से बह रही चुफला गाड में पहले एक झील बनी, जो कुछ देर बाद अचानक फट गई। अभी नीचे गाड़ में जल स्तर बढ़ ही रहा था कि ऊपर से अचानक दो तरफ से मलबा आना शुरू हो गया। 

आसपास के घरों में हड़कंप मच गया और रात के करीब 2 बजे लगभग डेढ़ दर्जन लोग अपने अपने घरों को छोड़ कर ऊपर की ओर एक बड़े पेड़ की आड़ में दुबक गए। सुबह हुई तो उनका पूरा घर गाड़ में समा चुका था। घर में कुछ नहीं बचा। साउनटनोला के लगभग डेढ़ दर्जन दर्जन भर घर पूरी तरह से क्षति ग्रस्त हो चुके थे। 

अपने उजड़े घर को निहारती विमला देवी। फोटो : राजू सजवान
अपने उजड़े घर को निहारती विमला देवी। फोटो : राजू सजवान

दरअसल चुफला गाड़ नन्दानगर (जिसे पहले घाट कहा जाता था) में नन्दाकिनी नदी से मिल जाती है। नंदानगर उत्तराखंड के चमोली जिले का एक ब्लॉक है और नन्दाकिनी नदी नन्दादेवी पर्वत श्रृंखला से निकलकर नन्द प्रयाग में अलकनन्दा से मिल जाती है। नन्द प्रयाग उत्तराखंड के पांच प्रयागों में से एक है।

यहां के तीन गांवों में  तबाही हुई है, जो ग्राम पंचायत फाली और सैंती से जुड़े हैं। विमला देवी के गांव (तोक) का नाम फाली लगा साउनटनोला है। इसके अलावा कुंतरी लगा फाली और कुंतरी लगा सैंती है। इन तीन गांवों में सात लोग मारे गए। इनमें मां की गोद से चिपटे दो जुड़वा बच्चे भी शामिल हैं। 

लगभग एक किलोमीटर के दायरे में बसे इन तीन गांवों के ऊपर पहाड़ी से छह जगह मलबा आया था। इनमें से दो तो बड़े नाले थे, लेकिन यहां पानी कम रहता था, बाकी चार जगह पिछले कई दशक से लोगों ने बरसाती पानी या मलबा आते नहीं देखा था। 

सैंती लगा कुंतरी निवासी 72 वर्षीय चंद्रमणि सती कहते हैं, “उनके जीवन काल में कभी भी ऊपर से इतना पानी नहीं आया। ये नाले पूरी तरह सूख चुके थे, लेकिन इस साल इतनी बारिश आई कि जगह-जगह से इतनी तेजी से बारिश के साथ मलबा आया कि अपनी जान बचाने के लिए हम सब घर छोड़ कर भागना पड़ा।”

ये लोग पहले अपने प्राचीन गांव फाली व सैंती में रहते थे, लेकिन मार्च 1999 को उत्तराखंड के चमोली जिले में आए 6.8 तीेव्रता के भूकंप के कारण इन गांवों में भूधंसाव शुरू हुआ तो ये परिवार सुरक्षित जगह की तलाश में चुफला गाड़ के दूसरी ओर बस गए, लेकिन आपदा ने इस साल उन्हें यह से विस्थापित कर दिया। इन परिवारों के सामने बड़ा सवाल यह है कि अब कहां जाएं? 

कुंतरी लागी फाली गांव के इन घरों में हंसते खेलते परिवार रहते थे। फोटो: राजू सजवान
कुंतरी लागी फाली गांव के इन घरों में हंसते खेलते परिवार रहते थे। फोटो: राजू सजवान

दो दर्जन से अधिक परिवार एक आश्रम में रह रहे हैं, जहां लगभग दो सप्ताह तक प्रशासन की ओर से भोजन मुहैया कराया गया, लेकिन अब ये परिवार अपने हाल में रह रहे हैं। 

विमला देवी के देवर व ग्राम प्रधान रह चुके राजू लाल बताते हैं कि प्रशासन अनुसूचित जाति के परिवारों को मुआवाजा तक नहीं दे रहा है, क्योंकि भूकंप के वक्त जब उनके परिवार यहां आए थे तो ग्राम पंचायत ने उन्हें यह बसने को कहा था और लिखित में भी दिया था, लेकिन प्रशासन का जवाब है कि जिस जमीन पर वे बसे थे, वो उनकी जमीन नहीं है, जबकि उनके पास पंचायत द्वारा हस्तारित वह प्रस्ताव अभी भी है, जिसमें उन्हें यहां बसने को कहा गया था। 

फाली लगे कुंतरी के कुछ परिवारों को मुआवजा मिल गया है। उत्तराखंड सरकार ने घोषणा की थी कि जिन परिवारों को नुकसान हुआ है, उन्हें तत्काल पांच लाख रुपए दिए जाएंगे, लेकिन इन परिवारों के सामने सवाल यही है कि वे इस पैसे का क्या करेंगे? न तो इतनी राशि से घर बनेंगे और अगर वे लोग कर्ज आदि का इंतजाम कर भी लेंगे तो मकान कहां बनाएं। उन्हें कौन बताएगा कि यह जमीन सुरक्षित है, वहां मकान बना सकते हैं। प्रशासन की ओर से इस बारे में कोई स्पष्ट जवाब अब तक नहीं मिला। 

बर्बादी की एक ओर तस्वीर। फोटो: राजू सजवान
बर्बादी की एक ओर तस्वीर। फोटो: राजू सजवान

गांव के लोगों के मकान ही नहीं टूटे हैं, बल्कि पशु-मवेशी भी मर गए हैं। साथ ही, खेत-बगीचे भी उजड़ गए हैं। कांता प्रसाद बताते हैं कि उनके माल्टे और नींबू का बगीचा था, जो उनकी आमदनी का एक बड़ा जरिया था। पिछले साल ही उन्होंने दो क्विंटल माल्टा बेचा था। अब बगीचे का नामोनिशान नहीं है। कांता प्रसाद कहते हैं, “घर तो किसी तरह कर्ज लेकर बना लेंगे, लेकिन आमदनी का जरिया ही नहीं रहा तो आगे पेट कैसे पालेंगे?”

सैंती लगी कुंतरी के इस घर में मलबा इस कदर गिरा कि छत ही बैठ गई। फोटो : राजू सजवान
सैंती लगी कुंतरी के इस घर में मलबा इस कदर गिरा कि छत ही बैठ गई। फोटो : राजू सजवान

इसके अलावा इसी इलाके के धूर्मा गांव में भी इसी दिन तबाही हुई थी। यहां भी भूकंप की वजह से 1999 में जिन लोगों के घर टूटे थे। कोई दूसरी जगह न मिलने के कारण उन्होंने वहीं घर बना लिए, लेकिन 18-19 सितंबर 2025 की अतिवृष्टि में फिर से उनके घर टूट गए। यहां दो लोगों की मौत हुई है। 

इन गांवों के लोगों की चिंता अब यही है कि दो बार आपदा की वजह से अपना सब कुछ गंवा चुकने के बाद अब कहां अपना आशियाना बनाएं कि उन्हें अगली आपदा का सामना न करना पड़े।

आगे पढ़े आपदा की एक ओर दास्तां

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