आपदा प्रदेश उत्तराखंड: केदारनाथ त्रासदी का शिकार गांव एक और विस्थापन को तैयार

बीते मानसून में आपदाओं ने हिमालयी राज्य उत्तराखंड में भारी तबाही मचाई है। इसके चलते पिछले सालों की तरह इस साल भी कई गांव रहने लायक नहीं रहे। पिछले दिनों डाउन टू अर्थ ऐसे कुछ गांवों तक पहुंचा, जहां लगातार विस्थापन हो रहा है। एक ऐसे ही गांव का आंखों देखा हाल-
रुद्रप्रयाग जिले के गांव सेमी में भूधंसाव की वजह से उमा देवी के मकान में दरारें आ रही हैं। फोटो: राजू सजवान
रुद्रप्रयाग जिले के गांव सेमी में भूधंसाव की वजह से उमा देवी के मकान में दरारें आ रही हैं। फोटो: राजू सजवान
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केदारनाथ आपदा के वक्त जून 2013 में तबाही का मंजर झेल चुके सेमी (तल्ली) गांव में लगभग 12 साल बाद भी वीरानी पसरी है। मंदाकिनी नदी के तट पर बसे रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ ब्लॉक का यह गांव केदारनाथ मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग 107) से लगा है। राजमार्ग के ठीक नीचे बने एक घर में बैठी विमला देवी एक और विस्थापन की चिंता से डरी हुई हैं।

जून 2013 की केदारनाथ में विमला देवी का घर टूट गया था। प्रशासन ने पूरी तरह क्षतिग्रस्त न मानते हुए उनके पति मनोहर लाल को सवा चार लाख रुपए का मुआवजा दिया और घर छोड़ कर कहीं और रहने का फरमान सुनाया।

कई साल तक उनका परिवार गांव के पास एक टिन शेड में रहता रहा, लेकिन दो साल पहले वे गांव में ही  अपनी बची जमीन पर दो कमरे बनाकर रहने लगे, परंतु इस साल 28-29 अगस्त 2025 की रात को एक और बड़ी मुसीबत आई। रात को हुई भारी बारिश के बाद उनके नए घर में भी दरारें आने लगी। 

विमला देवी का मकान को बने अभी दो साल नहीं हुए हैं, लेकिन घर के भीतर दरारें दिखने लगी हैं। फोटो: राजू सजवान
विमला देवी का मकान को बने अभी दो साल नहीं हुए हैं, लेकिन घर के भीतर दरारें दिखने लगी हैं। फोटो: राजू सजवान

विमला बतातीे हैं, “मुआवजे के अलावा कर्ज लेकर ये दो कमरे बनाए थे, लेकिन अब तो यहां रहते भी डर लगता है।” अब जब भी तेज बारिश होती हो तो केदारनाथ तबाही की याद आते हैं उनका परिवार सिहर जाता है।

सड़क के ठीक ऊपर उमा देवी ने भी नया घर बनाया था। उनके घर में भी दरारें आने लगी हैं। उनके पति अंकित लाल का पुश्तैनी मकान भी केदारनाथ आपदा के दौरान ढह गया था। उमा कहती हैं, “हमने भी मुआवजे के अलावा कर्ज लेकर यह मकान बनाया था, लेकिन अब इसमें भी दरारें आ रही हैं।”

सेमी तल्ली व पास के गांव भैंसारी को मिलाकर लगभग 60 घरों में दरारें आ रही हैं। इन दोनों गांवों को हाल ही में नगर पंचायत में शामिल किया गया है, जो वार्ड चार में आते हैं। वार्ड चार से सभासद चुनी गई पूनम बिष्ट के पति विपिन बिष्ट ने डाउन टू अर्थ को बताया, “हमारे गांव के लोगों के समक्ष एक बार फिर से विस्थापन का संकट मंडरा रहा है। 2013 की आपदा में लगभग सभी घरों को नुकसान पहुंचा था, इसलिए ज्यादातर लोगों ने नए मकान बनाए थे, परंतु अब उन घरों में भी दरारें आ रही हैं।”

केदारनाथ आपदा के बाद अब इन गांवों में तबाही का बड़ा कारण सिंगोली भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना को बताया जा रहा है। जून 2013 में केदारनाथ क्षेत्र में बादल फटने और ग्लेशियर झील फटने से अचानक आई भीषण बाढ़ और भूस्खलन ने हजारों लोगों की जान ले ली और उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सैकड़ों गांवों, सड़कों और जलविद्युत परियोजनाओं को भारी नुकसान पहुंचाया था।

इन परियोजनाओं में सिंगोली भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना भी शामिल थी, जो मंदाकिनी नदी पर निर्माणाधीन थी। यह परियोजना सेमी और भैंसारी  गांव के ठीक नीचे है। 99 मेगावाट क्षमता वाली इस परियोजना का स्वामित्व एलएंडटी पावर डेवलपमेंट के पास था, जिसे बाद में एलएंडटी ने रिन्यू पॉवर का बेच दिया। 

केदारनाथ आपदा के बाद जब 2015 में इसका निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ तो सेमी, भैंसारी गांव के लोगों ने विरोध किया और परियोजना स्थल पर धरने पर बैठ गए। तब 14 जुलाई 2015 को हुए एक समझौते में परियोजना प्रबंधक ने आश्वास्त किया था कि परियोजना के जलभराव क्षेत्र के अंतर्गत तकनीकी रूपरेखा के अनुसार माह अप्रैल 2016 के उपरांत उचित निर्माण कार्य प्रारंभ किया जाएगा।

ग्रामीणों की संघर्ष समिति, विधायक व परियोजना प्रबंधक के बीच हुए समझौते में कहा गया कि परियोजना विकासकर्ता द्वारा आपदा राहत कार्यों के लिए माननीय मुख्यमंत्री राहत कोष में राशि जमा कराई गई है और जलभराव के बाद परियोजना के जलभराव क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा के अतिरिक्त किसी परियोजना जनित कार्य से क्षति होती है तो उसके लिए परियोजना उत्तरदायी होगी।

ग्रामीण बताते हैं कि कंपनी प्रबंधन ने कहा था कि भूधंसाव को रोकने के लिए मंदाकिनी के किनारों पर सुरक्षा दीवार बनाई जाएगी। इसके लिए लगभग 99 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। इसमें से 65 फीसदी राशि सुरक्षा दीवार बनाने पर खर्च की जानी थी, जबकि 35 फीसदी राशि राजमार्ग की मरम्मत पर खर्च की जानी थी।

ग्रामीणों का आरोप है कि यह हाइवे केदारनाथ तक जाने वाला एकमात्र हाइवे है। यही वजह है कि केदारनाथ यात्रा में बाधा न आए, प्रशासन ने सुरक्षा दीवार की बजाय यात्रा सीजन में सड़क के निर्माण को प्राथमिकता दी और वहां पैसा खर्च कर दिया गया। ग्रामीणों ने यहां तक आरोप लगाया कि सुरक्षा दीवार के लिए जो पत्थर आए थे, वह पत्थर भी सड़क के साथ लगा दिया गया। यही वजह है कि अब केदारनाथ राजमार्ग में धंसाव शुरू हो गया है। इस साल 2025 में हुई भारी बारिश की वजह से घरों में दरारें आने लगी हैं। प्रशासन ने लगभग एक किलोमीटर लंबी सड़क पर दोनों ओर भूधंसाव क्षेत्र के बोर्ड लगा दिए हैं।

केदारनाथ धाम जाने वाले एकमात्र हाइवे का लगभग एक किलोमीटर लंबा हिस्सा भूधंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। फोटो: राजू सजवान
केदारनाथ धाम जाने वाले एकमात्र हाइवे का लगभग एक किलोमीटर लंबा हिस्सा भूधंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। फोटो: राजू सजवान

सेमी की पूर्व प्रधान रह चुकी कुंवरी बर्त्वाल कहती हैं, “हमारी मांग है कि नदी किनारे स्टेप-वाइज दीवारें बनाकर सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। वरना अगली बारिश में ये इलाका फिर से खतरे में होगा।”

विपिन कहते हैं, “घरों में दरारों की शिकायत प्रशासन से की गई है, लेकिन अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है और लोगों में एक बार फिर से विस्थापन का डर सता रहा है।” हालांकि पिछले दिनों क्षेत्र के एसडीएम ने गांव का दौरा किया था। ग्रामीणों को उम्मीद है कि प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई की जाएगी।  

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