गंगा बेसिन में पहले से आधी रह जाएगी उष्णकटिबंधीय तूफानों की संख्या, लेकिन बढ़ जाएगी तीव्रता

भारत के पूर्वी तट के साथ, बांग्लादेश में निचले क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है क्योंकि वो अपनी सीमित अनुकूलन क्षमता के चलते ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं
तूफान के बाद अस्त-व्यस्त जीवन; फोटो: आईस्टॉक
तूफान के बाद अस्त-व्यस्त जीवन; फोटो: आईस्टॉक
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रिसर्च से पता चला है कि 2050 तक गंगा बेसिन में आने वाले उष्णकटिबंधीय तूफानों की संख्या घटकर पहले से आधी रह जाएगी। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने मेकांग बेसिन में भी पहले से कम उष्णकटिबंधीय तूफानों की भविष्यवाणी की है, लेकिन साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी चेताया है कि अगले कुछ वर्षों में इन बेसिन में आने वाले तूफान पहले से कहीं ज्यादा शक्तिशाली होंगें।

न्यूकैसल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं। इन तूफानों के कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चला है कि 2010 की शुरूआत तक इन दोनों ही नदी बेसिनों में आने वाले उष्णकटिबंधीय तूफानों की आवृत्ति बढ़ गई थी।

हालांकि हाई रिजॉल्यूशन के जलवायु मॉडलों द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि अगले 27 वर्षो में इनकी आवृत्ति औसतन 50 फीसदी से अधिक घट जाएगी, जबकि 2050 तक गंगा बेसिन में आने वाले तूफान पहले से करीब 19.2 फीसदी ज्यादा शक्तिशाली होंगें।   

गौरतलब है कि गंगा और मेकांग बेसिन एशिया की दो महत्वपूर्ण नदी प्रणालियों का हिस्सा है, जो इस क्षेत्र में रहने वाले करोड़ों लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बेसिन कृषि, जल आपूर्ति और परिवहन के नजरिए से बेहद अहम हैं।

यदि गंगा बेसिन को देखें तो वो भारत, तिब्बत (चीन), नेपाल और बांग्लादेश में करीब 10,86,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। जो भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली को कवर करता है।

जलवायु में आते बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील है गंगा बेसिन

देखा जाए तो यह दोनों ही बेसिन, जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। जो बारिश के पैटर्न में आते बदलावों, मौसम की चरम घटनाओं और समुद्र के बढ़ते स्तर के चलते खतरे में है।

अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में हर साल औसतन 90 उष्णकटिबंधीय तूफान आते हैं। यदि इनमें से कोई जमीन से टकराता है, तो वो जान-माल के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। रिसर्च की मानें तो तेज रफ्तार से आता शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय तूफान सबसे विनाशकारी प्राकृतिक घटनाओं में से एक हैं, जिससे जीवन, इमारतों और बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान होता है।

भारत के पूर्वी तट के साथ, बांग्लादेश और वियतनाम में निचले डेल्टा क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है क्योंकि वो अपनी सीमित अनुकूलन क्षमता के चलते ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं

इन तूफानों के बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर हैदर अली का कहना है कि, "उष्णकटिबंधीय तूफान दुनिया की सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक हैं, जिनके परिणामस्वरूप जीवन, बुनियादी ढांचे और संपत्ति को भारी सामाजिक और आर्थिक नुकसान होता है।" उनके मुताबिक इनकी वजह से गंगा और मेकांग बेसिन जैसे निचले डेल्टा वाले क्षेत्रों को विशेष तौर पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

वहीं अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता हेले फाउलर ने इस बारे में जारी प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "अध्ययन में सामने आए निष्कर्ष अटलांटिक बेसिन में आने वाले उष्णकटिबंधीय तूफानों और चक्रवातों के लिए पाए गए परिणामों के अनुरूप हैं। जिनकों लेकर अनुमान था कि इन तूफानों की संख्या में गिरावट आ जाएगी, लेकिन साथ ही यह समय के साथ शक्तिशाली तूफानों की आवृत्ति बढ़ जाएगी।"

उनके मुताबिक इन शक्तिशाली तूफानों की वजह से रहने वाले लोगों को तेज हवाओं, भारी बारिश और अन्य महत्वपूर्ण प्रभावों का सामना करना पड़ेगा, जिनमें बाढ़ भी शामिल है। ऐसे में इन बदलावों की बेहतर समझ हमें भविष्य की घटनाओं के लिए बेहतर तैयारी करने में मदद करेगी।"

वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में जिस तरह के शक्तिशाली तूफानों के आने की आशंका बढ़ रही है, उसके देखते हुए उनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी जरूरी है। यह समझ हमें जलवायु में आते बदलावों का सामना करने, उनसे निपटने की योजनाएं बनाने के साथ-साथ समुदायों और इंफ्रास्ट्रक्चर को बचाने में मददगार हो सकती है।

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