
पंजाब की मौजूदा आई बाढ़ इतिहास की सबसे भयावह बाढ़ों में से एक है। पंजाब शहरी विकास प्राधिकरण के सेवानिवृत सलाहकार जीत कुमार गुप्ता बाढ़ और बरसात के अतिरिक्त पानी को एक अवसर के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि यह पानी संजोकर जल संकट का समाधान किया जा सकता है, खासकर पंजाब जैसे जल संकट वाले राज्यों को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
वह मानते हैं कि हमें पानी निकालने की आदत से बचना चाहिए और उसके संचयन के लिए व्यापक योजनाएं बनानी चाहिए। उन्होंने पंजाब की बाढ़ के कारणों और अवसरों पर डाउन टू अर्थ से लंबी बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
पंजाब के शहरी क्षेत्रों में अनियोजित और अनियंत्रित विकास बहुत है। पंजाब में 169 टाउन हैं लेकिन मास्टरप्लान केवल 40 टाउन का ही है। निचले क्षेत्रों में भी शहरीकरण हो रहा है जिससे पुरानी ड्रेनेज लाइन और जलनिकाय पर अतिक्रमण हो गया है। बाढ़ का पानी ठहरने की यह एक मुख्य वजह है।
पंजाब में इस वक्त वाटर मैनेजमेंट का कोई सिस्टम नहीं है। पंजाब की सतलुज, व्यास और रावी पाकिस्तान जाती हैं। ये सभी नदियों बंधी हुई हैं। अब ये नदियां सदानीरा नहीं हैं। बांध से जितना जरूरी होता है, उतना पानी छोड़ते हैं।
डाउनस्ट्रीम में लोगों को पता ही नहीं है कि नदी की चौहद्दी कहां तक है। नदी में 6-8 महीने पानी नहीं रहता, अगर रहता भी है तो उसके 20-25 प्रतिशत हिस्से में ही न्यूनतम पानी रहता है। इससे लोग समझने लगते हैं कि यह बिल्कुल खाली है। नदी में पानी कम रहने पर अतिक्रमण और खनन हो रहा है।
लोग नदी की जमीन पर ही खेती और निर्माण करने लगते हैं। अचानक पानी आने पर यह पूरा क्षेत्र डूब जाता है। इसलिए नदी का प्रबंधन बहुत जरूरी है। सरकार को नदी के क्षेत्र को चिन्हित करने नोटिफाई करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई बसावट उसकी हद में न हो। नदी की क्षमता को मेंटेन करने रखना चाहिए। साथ ही बांधों प्रबंधन भी स्पष्ट होना चाहिए। अचानक 20-25 हजार क्यूसेक से 2-2.5 लाख क्यूसेक पानी छोड़ने पर तो उसे हैंडल करना संभव नहीं है।
पानी को लेकर सोच
पानी को लेकर हमारी सोच बहुत गड़बड़ है। हम पानी को समस्या समझ रहे हैं, इसलिए हम उसे निकालने की कोशिश करते हैं। असल में पानी बहुत बड़ा संसाधन है। पानी को रोकना बहुत जरूरी है। शहर, संस्थानाों और कृषि क्षेत्र में इसे रोकने की बड़ी क्षमता है। शहर के पानी को शहर में रोकना चाहिए।
हिंदुस्तान में केवल 4 प्रतिशत पानी है जबकि 18 प्रतिशत आबादी और 55 करोड़ जानवर हैं। इनके लिए पानी पहले ही कम है। जब पानी आता है तो हम परेशान हो जाते हैं। जब नहीं होता, तब भी परेशान होते हैं। इसे आपदा के स्थान पर संसाधन के रूप में देखने की जरूरत है। सिटी को जीरो वाटर वेस्ट बनना चाहिए और जरा भी पानी शहर के बाहर नहीं जाना चाहिए। हमारे पास इसे रोकने की क्षमता होनी चाहिए।
इसके काम के लिए स्कूल, यूनिवर्सिटी, बड़ी बड़ी इंस्टीट्यूशन को लगाना चाहिए। इनके पास बड़ी भूमि है। आप पंजाब यूनिवर्सिटी में मुश्किल से 15 प्रतिशत ही कवर है जबकि 85 प्रतिशत हिस्सा खुला है। इसका इस्तेमाल वर्षाजल संचयन में हो सकता है। संस्थानों को हर वक्त पानी चाहिए और ये भूमिगत जल निकाल रहे हैं। अगर ये पानी रोकेंगे तो भूजल बचा रहेगा।
हर सोसायटी को जीरा वाटर वेस्ट के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्हें पानी बचाने के लिए प्रॉपर्टी टैक्स में छूट मिलनी चाहिए। इससे नगरपालिकों को दूर-दूर से पानी पंप करके लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। न ही उसे ट्रीट करके सप्लाई करना पड़ेगा।
भूजल रीचार्ज लंबा काम है और इसमें समय लगता है लेकिन वर्षा जल संचलन बहुत आसान काम है। इसमें बस पानी का कलेक्शन करना है। इससे शहर की 40 प्रतिशत पानी का आवश्यकता पूरी की जा सकती है। लेकिन यह काम व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि सामूहिक और संस्थागत स्तर पर होना चाहिए।
हमें पानी निकालने की संस्कृति से बचकर पानी रोकने की संस्कृति विकसित करनी होगी। अमेरिका में ऐसे शहर हैं जहां वर्षा का पानी निकलने पर टैक्स देना पड़ता है। पानी बचाना इसलिए भी जरूरी है कि 69 करोड़ लोगों के पास शौचालय नहीं और 24 करोड़ लोगों के पास पीने का पानी नहीं है। वर्षा जल से सुरक्षित कोई दूसरा पानी नहीं है। हमारे जल संकट का कारण वर्षाजल की बर्बादी ही है।
बाढ़ रोकने के काम पर अब तक किसी योजना में ध्यान नहीं दिया गया है। अगर प्लानिंग प्रक्रिया में यह शामिल नहीं है तो परेशानी होना तय है। इसलिए पानी का प्रबंधन सिटी की योजना और विकास प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए।
हमारी समस्या यह है कि शहर की योजना बनाते वक्त हमने कभी यह मैप नहीं कि प्राकृतिक ड्रेनेज और प्राकृतिक संसाधन कहां हैं। अगर ये मार्क कर दिए जाएं तो वे बने रहेंगे और वे विकास की भेंट नहीं चढेंगे। पानी को ड्रेन करने में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
सुखना झील रेनवाटर हार्वेस्टिंग का अच्छा उदाहरण है जिससे पानी की समस्या का समाधान तो हो ही रहा है, साथ ही यह बहुत बड़ी पर्यटन स्थल भी बन गई है। अगर आप कैपिटल कॉम्प्लेक्स में जाएंगे तो आपको हाईकोर्ट और विधानसभा मिलेगी। इन्होंने रेन वाटर को हार्वेस्ट करने के लिए दोनों तरफ दो टैंक बना दिए हैं। इनमें पानी को रोका जा रहा है। कोई भी इमारत बनाते यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वर्षा जल संचलन उनके आंतरिक योजना में हो।
बारिश की बाढ़ से हर शहर परेशान है और भविष्य में इसके बढ़ने की ही आशंका है। वर्षा जल का संचयन शहरों को बाढ़ से बचाने का भी काम करेगा। जलवायु परिवर्तन के दौर में शहरी बाढ़ रोकने के लिए हमें लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म रणनीतियां बनानी होंगी।
दिल्ली में 10 प्रतिशत पार्किंग एरिया है। इसे पोरस कंक्रीट से बना दिया जाए तो उससे पानी सीधे नीचे चला जाएगा जिससे भूजल रिचार्ज होगा। हमें जितना और जहां संभव हो सके, बारिश का पानी बचाने की कोशिश करनी चाहिए।
शहरी बाढ़ की समस्या के समाधान के लिए चीन ने स्पंजी शहरों की अवधारणा विकसित की जिसमें शहर में बड़े हरित क्षेत्र होते हैं। इसकी मदद से अधिकांश चीनी कस्बे बाढ़ मुक्त हो गए। भारत बाढ़ की चुनौतियों से निपटने के लिए चीनी अनुभव से निश्चित रूप से सीख सकता है।