नीति राजनीति: जन प्रतिनिधियों की नजर में असम बाढ़

इस साल मॉनसून में अतिशय बारिश ने सबको स्तब्ध किया है। देश के बड़े हिस्से बाढ़ की त्रासदी झेली है। असम में तो बाढ़ ने लगभग पूरे राज्य को अपनी जद में ले लिया। राज्य के कुल 33 में से 32 जिलों के 5,817 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए और 90 से अधिक लोग जान गंवा बैठे। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में बाढ़ का प्रकोप लगातार बढ़ा रहा है। बारपेटा जिला बाढ़ की सर्वाधिक त्रासदी झेलने वाले जिलों में शामिल है। बाढ़ की समस्या को बारपेटा के जनप्रतिनिधि किस नजर से देखते हैं, यह जानने के लिए भागीरथ और उमेश कुमार राय ने उनसे बात की
रॉयटर्स
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असम में बाढ़ नई बात नहीं है, लेकिन इस बार इसका तेवर कुछ ज्यादा ही तल्ख था। दरअसल, बाढ़ के बाद की स्थिति ज्यादा खतरनाक होती है, क्योंकि नदियों का कटाव काफी बढ़ जाता है। इससे हजारों लोगों के बेघर होने का खतरा मंडराने लगता है। बारपेटा के लिए बाढ़ नहीं, बल्कि नदी का कटाव बड़ी समस्या है और इसलिए मैंने सरकार से अपील की है कि इसके लिए सही तरीके से योजना बनाई जाए ताकि नदियों के कटाव को नियंत्रित किया जाए। असम में बाढ़ दो वजहों से आती है। एक तो यहां अधिक बारिश हो जाती है और दूसरा भूटान से भी पानी छोड़ा जाता है। कुरिछु हाइड्रोपावर प्लांट से भूटान अगर बारिश के सीजन में पानी छोड़ता है, तो यहां बाढ़ विकराल रूप धारण कर लेती है क्योंकि मॉनसून के सीजन में यहां बारिश भी खूब हो जाती है। भूटान की तरफ से इस बार भी पानी छोड़ा गया था। पूर्व में जो भी सरकारें बनीं, उन्होंने बाढ़ की विभीषिका को कम करने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की, इसलिए यह समस्या अब गंभीर बन चुकी है। हालांकि यह भी सच है कि बाढ़ को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता। बस आप इससे बच सकते हैं। और ज्यादा से ज्यादा इससे होने वाले जानमाल के नुकसान को कम कर सकते हैं। बाढ़ के समय मैंने कई इलाकों का दौरा किया, लेकिन केवल एक जगह राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीम को बाढ़ के दौरान राहत कार्य करते देखा। बाढ़ के बाद पीड़ितों को राहत व उनके पुनर्वास को लेकर गंभीरता से काम नहीं होता। बाढ़ के प्रकोप को कम करने के लिए असम की नदियों में जमी गाद को निकालकर उन्हें गहरा करने की जरूरत है, ताकि नदियां अधिक से अधिक पानी को समेट सकें। इसके अलावा सरकार को अतिरिक्त जल संग्रहण की व्यवस्था भी करनी चाहिए ताकि पानी का समुचित इस्तेमाल हो सके।

1991 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी। जब हम लोगों ने इस बारे में सुना तो टेलीविजन पर समाचार देखने पैदल ही ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी किनारे स्थित लाइब्रेरी पहुंच गए क्योंकि उस वक्त वहीं टेलीविजन था। उस वक्त लाइब्रेरी और ब्रह्मपुत्र का किनारा हमारे घर से छह किलोमीटर दूर था, लेकिन अब यह एक किलोमीटर से भी कम दूर रह गया है। नदी का दायरा बढ़ा, तो समय-समय पर लाइब्रेरी को भी शिफ्ट करना पड़ा। अब यह लाइब्रेरी ब्रह्मपुत्र के बांध पर है। इस स्थिति की वजह बाढ़ है। इस बार भी असम में बाढ़ आई और मेरा गांव डूबा। पहले बाढ़ का पानी कम आता था, लेकिन अब हर साल बाढ़ के पानी में 4 फीट का इजाफा हो रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी में इस बार पानी सामान्य से 15 फीट अधिक रहा। बाढ़ का पानी अब ज्यादा दिनों तक गांव में ठहर रहा है। इस साल की बाढ़ अन्य बाढ़ों की तुलना में इस मायने में अलग रही कि बहुत जल्दी गांव में पानी घुस आया। इस बार बारिश भी ज्यादा हुई और भूटान ने पानी भी अधिक छोड़ा जिससे यहां बाढ़ का प्रभाव ज्यादा रहा। पहले राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, जो कहती थी कि केंद्र सरकार ही बाढ़ पर नियंत्रण के लिए कोई कदम उठा सकती है। उधर केंद्र सरकार ने भी कोई कदम नहीं उठाया। अगर कांग्रेस की सरकार ने पहले ही ध्यान दिया होता, तो असम में बाढ़ पर काफी हद तक नियंत्रण हो गया होता। अब बीजेपी सरकार भी कांग्रेस के ही नक्शेकदम पर चल रही है। सरकारों ने कभी स्थायी समाधान के बारे में सोचा ही नहीं। अगर ब्रह्मपुत्र के दोनों तरफ बांधों को मजबूत कर दिया जाए, तो राहत मिलेगी। सरकार को चाहिए कि बोल्डर आदि डालकर बांध को मजबूत कर दे और बांध पर रेलवे लाइन या रोड बना दे। इससे बांध भी स्थायी व मजबूत बनेगा और साथ ही ये क्षेत्र रेल या सड़क मार्ग से जुड़ जाएगा।

“नीति राजनीति” में हम किसी स्थानीय समस्या को लेकर संबंधित क्षेत्र के ग्राम प्रतिनिधि/पार्षद और लोकसभा/राज्यसभा सदस्य से बातचीत करते हैं। यह किसी समस्या को स्था‍नीय प्रतिनिधियों के नजरिए से देखने का प्रयास है।

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