ताड़ के पेड़ों की कटाई और बिजली गिरने से मौतों के बीच संबंध को लेकर एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

बिहार में 2,000 से ज्यादा बिजली से होने वाली मौत संबंधी एक रिपोर्ट के बाद हरित अधिकरण ने स्वतः संज्ञान लिया, केंद्र और राज्यों को नोटिस
भारत में हर साल औसतन 1,876 मौतें होती हैं, बदलती जलवायु परिस्थितियों के कारण बिजली गिरने की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता ने पिछले कुछ सालों में देश में मौतों में तेजी की बढ़ोतरी की है।
भारत में हर साल औसतन 1,876 मौतें होती हैं, बदलती जलवायु परिस्थितियों के कारण बिजली गिरने की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता ने पिछले कुछ सालों में देश में मौतों में तेजी की बढ़ोतरी की है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स,ओरेगन परिवहन विभाग
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बिहार में बिजली गिरने से लगातार हो रही मौतों और ताड़ के पेड़ों की कटाई के बीच संबंध की खबर पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है। एनजीटी ने फिलहाल इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार के प्राधिकरणों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।

एनजीटी में जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और एक्सपर्ट मेंबर ए सेंथिल वेल की पीठ ने 5 जून, 2025 को इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है।

एनजीटी की पीठ ने 29 मई 2025 को एक अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर मामले का स्वतः संज्ञान लिया। इस रिपोर्ट में सवाल उठाया गया था कि क्या गायब होते ताड़ के पेड़ राज्य में बिजली गिरने से हो रही मौतों की वजह बन रहे हैं।

एनजीटी ने गौर किया कि रिपोर्ट में तथ्य दिए गए हैं कि 2016 से अब तक बिहार में बिजली गिरने की घटनाओं में 2,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

वहीं, आर्थिक सर्वेक्षण और राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार यह आंकड़ा अप्रैल 2025 तक 2,446 तक पहुंच चुका है, जबकि लाइटनिंग रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार 2014 से 2024 के बीच 2,937 लोगों की जान गई। इस दौरान गया, औरंगाबाद, रोहतास, पटना, नालंदा, कैमूर, भोजपुर और बक्सर जैसे जिले सबसे ज्यादा प्रभावित पाए गए हैं।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि बिजली गिरने की अधिकतर घटनाएं दोपहर 12:30 से 4:30 बजे के बीच होती हैं, जब ग्रामीण लोग खेतों या खुले में काम कर रहे होते हैं। कई मामलों में ये घटनाएं उन इलाकों में हुईं, जहां पहले ताड़ के पेड़ सामान्य रूप से पाए जाते थे लेकिन अब उनकी संख्या में तेज गिरावट आई है।

दरअसल, ताड़ी निकालने पर पाबंदी लगने के बाद इन पेड़ों का पारंपरिक आर्थिक महत्व लगभग खत्म हो गया। इसका सीधा असर पासी समुदाय पर पड़ा, जो पीढ़ियों से ताड़ी उत्पादन से जुड़ा रहा है। समुदाय के सदस्यों ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में ताड़ के पेड़ों की खेती लगभग 40 फीसदी तक घट गई है और नए पौधे लगाने की परंपरा भी समाप्तप्राय हो गई है।
रिपोर्ट में यह संकेत मिला है कि ताड़ के पेड़ बिजली को जमीन तक सुरक्षित पहुंचाने में मदद करते हैं और इनके कटने से बिजली गिरने की घटनाएं अधिक घातक हो गई हैं।

एनजीटी ने माना कि यह मामला पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत सुनवाई योग्य है। एनजीटी ने बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय (रांची), बिहार आपदा प्रबंधन विभाग और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस मामले में पक्षकार बनाया है और इन सभी से इस मुद्दे पर जवाब दाखिल करने को कहा है।

पीठ ने कहा कि, चूंकि यह मामला पूर्वी भारत से संबंधित है, इसलिए इसे कोलकाता स्थित ईस्टर्न जोन बेंच को स्थानांतरित किया जाएगा।

मामले की अगली सुनवाई 7 अगस्त 2025 को कोलकाता में होगी।

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